कानून के घेरे में राजनीति: ये हैं दोषसिद्ध और आरोपी का चुनावी अधिकार
दिल्ली: देश की राजधानी में दंगे के आरोपी ताहिर हुसैन की जमानत याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि जेल में बंद सभी लोगों को चुनाव लड़ने से रोका जाना चाहिए। जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की बेंच के सामने सोमवार को केस लिस्ट था, लेकिन सुनवाई हो नहीं सकी।
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले प्रचार के लिए अंतरिम जमानत की मांग करने वाली ताहिर हुसैन की याचिका पर सुनवाई 22 जनवरी तक के लिए स्थगित कर दी है. असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) ने आम आदमी पार्टी (आप) के पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन को मुस्तफाबाद निर्वाचन क्षेत्र से उम्मीदवार बनाया है. लेकिन वो दंगे के आरोप में जेल में बंद है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी राजनीति को लेकर ये पहली बार सुझाव दिया हो ऐसा नहीं है। इसके पहले भी सुप्रीम चुनाव सुधार की बात कह चुका है। सवाल ये है कि आखिर सुप्रीम कोर्ट को ये सुझाव क्यों देना पड़ रहे हैं। अपराधियों और सजायाफ्ता कैदियों के लिए क्या कानून है, इस कानून में क्या खामियां हैं, जिनमें सुधार की गुंजाइश है। इस लेख में विस्तार से जानिए..
1. वर्तमान कानून
भारतीय संविधान और Representation of the People Act, 1951 (जनप्रतिनिधित्व अधिनियम) इस विषय से संबंधित हैं।
- धारा 8 (आरपी अधिनियम):
- यदि किसी व्यक्ति को किसी अपराध में 2 साल या उससे अधिक की सजा सुनाई गई है, तो वह व्यक्ति अपनी सजा पूरी होने और उसके बाद 6 साल तक चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य हो जाता है।
- लेकिन, यदि कोई व्यक्ति जेल में है (सजा काट रहा है) या हिरासत में है, तो वह मतदाता सूची से हट जाता है और इस आधार पर चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य हो सकता है।
- अपवाद: यह नियम उन लोगों पर लागू नहीं होता, जो पुलिस हिरासत में हैं, लेकिन अभी तक दोषी सिद्ध नहीं हुए हैं।
2. ऐसे भी समझें: अंडर-ट्रायल बनाम सजा याफ्ता, मुख्य अंतर
पैरामीटर | गिरफ्तार आरोपी (अंडर-ट्रायल) | सजा याफ्ता कैदी |
---|---|---|
कानूनी स्थिति | दोषसिद्ध नहीं हुआ है (निर्दोष माना जाता है)। | दोषसिद्ध हो चुका है। |
चुनाव लड़ने का अधिकार | चुनाव लड़ सकता है। | चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य। |
मतदान का अधिकार | जेल में रहने पर मतदान का अधिकार नहीं। | मतदान का अधिकार नहीं। |
अयोग्यता का आधार | कानून में कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं। | Representation of the People Act, 1951 की धारा 8। |
3. पहले के संशोधन
- 2002 में एक महत्वपूर्ण संशोधन आया, जब सुप्रीम कोर्ट ने “यूनियन ऑफ इंडिया बनाम एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स” केस में आदेश दिया कि उम्मीदवारों को अपने आपराधिक रिकॉर्ड, संपत्ति, और शिक्षा का विवरण देना होगा।
- 2013 में “लिली थॉमस बनाम यूनियन ऑफ इंडिया” मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि दोषी ठहराए जाने के तुरंत बाद सांसदों और विधायकों की सदस्यता समाप्त हो जाएगी।
4. सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां
सुप्रीम कोर्ट ने कई बार चुनावी सुधारों की जरूरत पर जोर दिया है।
- पृथ्वी राज चव्हाण बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों का राजनीति में प्रवेश रोकने के लिए सख्त कदम उठाने चाहिए।
- 2020 में कोर्ट ने संसद से कहा कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने से रोकने के लिए सख्त कानून बनाए।
5. महत्वपूर्ण कानूनी और न्यायिक निर्णय
- लिली थॉमस बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2013):
- सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि दोषसिद्ध सांसदों, विधायकों और अन्य जनप्रतिनिधियों की सदस्यता तुरंत समाप्त होगी।
- यह निर्णय राजनीति में आपराधिक तत्वों को हटाने के लिए मील का पत्थर साबित हुआ।
- प्रकाश सिंह बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2020):
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राजनीति के अपराधीकरण को रोकने के लिए कठोर नियम बनाए जाने चाहिए।
- सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि वह राजनीतिक दलों को उम्मीदवारों के आपराधिक रिकॉर्ड सार्वजनिक करने के लिए बाध्य करे।
6. “जेल से चुनाव लड़ने” पर विशिष्ट मुद्दा
- चुनौतियां:
- वर्तमान में, यदि कोई व्यक्ति जेल में है लेकिन दोषसिद्ध नहीं हुआ है, तो वह चुनाव लड़ सकता है। यह “निर्दोषता की धारणा” (Presumption of Innocence) के तहत आता है।
- कई मामलों में देखा गया है कि प्रभावशाली व्यक्ति जेल से चुनाव लड़ते हैं और जीतते भी हैं।
- सुप्रीम कोर्ट का रुख:
सुप्रीम कोर्ट ने कई बार यह सुझाव दिया है कि जेल में रहने वाले व्यक्तियों को चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, चाहे वे दोषी ठहराए गए हों या न हों।
7. संभावित सुधार और सुझाव
सुप्रीम कोर्ट के सुझाव और विशेषज्ञों की राय के अनुसार:
- संविधान में संशोधन:
संसद को आरपी अधिनियम में संशोधन करके यह प्रावधान करना चाहिए कि जेल में रहने वाले व्यक्ति चुनाव नहीं लड़ सकते। - तेजी से सुनवाई:
चुनाव लड़ने वाले व्यक्तियों के आपराधिक मामलों की सुनवाई तेजी से होनी चाहिए। - चुनावी आयोग की भूमिका:
चुनाव आयोग को यह अधिकार दिया जाना चाहिए कि वह गंभीर आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों की उम्मीदवारी खारिज कर सके।
जेल में रहते हुए चुनाव लड़ने की अनुमति वर्तमान में कानूनन संभव है, जब तक कि व्यक्ति दोषसिद्ध नहीं हो जाता। हालांकि, यह विषय लगातार विवादों और सुधार की मांग में रहा है। सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग बार-बार संसद से इस पर ठोस कानून बनाने की अपील कर चुके हैं। अपराध के सिलसिले में गिरफ्तार आरोपी (जिन्हें दोषसिद्ध नहीं किया गया है) और सजा याफ्ता कैदी (दोषसिद्ध व्यक्ति) के चुनाव लड़ने को लेकर भारतीय कानून में स्पष्ट प्रावधान हैं, जो मुख्य रूप से जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (Representation of the People Act, 1951) और सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न निर्णयों के आधार पर तय होते हैं। इन प्रावधानों का उद्देश्य राजनीति में आपराधिक तत्वों को प्रवेश से रोकना है। लेकिन देश के वर्तमान राजनीति परिदृश्य में ज्यादातर पार्टियों में दागी या अपराध में शामिल लोग चुनावी राजनीति में हैं, वह कहा जाता है ना कि जब राजनीति के हम्माम में सब नंगे हों तो किससे चुनाव सुधार की उम्मीद की जा सकती है। लेकिन फिर करोड़ों भारतीयों को देश की न्यायिक व्यवस्था पर पूरा भरोसा है। जो समय समय पर भारतीय लोकतंत्र की रक्षा के लिए संजीदा और कठोर फैसले सुनाने से पीछे नहीं हटती है।
ये भी पढ़िए: राहुल गांधी को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत, मानहानी केस में लगी रोक