मध्य प्रदेश के भोपाल में एक सरकारी नौकरी के लिए झूठा शपथ-पत्र प्रस्तुत करने के मामले में सौरभ शर्मा और उनकी मां उमा शर्मा पर आरोप लगे हैं। हालांकि, परिवहन विभाग और पुलिस मुख्यालय (PHQ) को जांच रिपोर्ट मिलने के बावजूद अब तक इस मामले में FIR दर्ज नहीं हो सकी है। सवाल उठ रहा है कि आखिर क्या वजह है कि सौरभ शर्मा के खिलाफ कार्रवाई में देरी हो रही है और निष्पक्ष जांच का रास्ता क्यों नहीं खुल रहा?

विस्तार
मध्य प्रदेश के परिवहन विभाग में पूर्व आरक्षक रहे सौरभ शर्मा पर आरोप है कि उन्होंने अपनी मां उमा शर्मा के माध्यम से एक फर्जी शपथ-पत्र प्रस्तुत कर अनुकंपा नियुक्ति हासिल की थी। इस मामले का खुलासा पहले ही हो चुका है, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। परिवहन विभाग की जांच में पाया गया कि सौरभ की मां द्वारा दिया गया शपथ-पत्र असत्य था। इसमें दावा किया गया था कि उनके पति के आश्रित परिवार में कोई भी सरकारी नौकरी में नहीं है, जबकि सौरभ का बड़ा भाई छत्तीसगढ़ में सरकारी सेवा में कार्यरत है। इस आधार पर सौरभ अनुकंपा नियुक्ति के लिए पात्र नहीं थे।
परिवहन विभाग ने अपनी रिपोर्ट में सौरभ और उनकी मां के खिलाफ जालसाजी और कूटरचित दस्तावेजों के आधार पर प्रकरण दर्ज करने की सिफारिश की थी। यह रिपोर्ट गृह विभाग को भेजी गई, जिसने आगे की कार्रवाई के लिए इसे पुलिस मुख्यालय को प्रेषित कर दिया। इसके बावजूद न भोपाल पुलिस ने कोई केस दर्ज किया और न ही लोकायुक्त ने इस मामले में कोई कदम उठाया। लोकायुक्त, जो इस मामले की जांच कर रही है, भी फर्जीवाड़े का प्रकरण दर्ज कर सकती थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अब सवाल यह है कि जांच रिपोर्ट के आधार पर भी सौरभ और उनकी मां के खिलाफ FIR क्यों दर्ज नहीं हो रही?
मामले की पृष्ठभूमि
सौरभ शर्मा के पिता स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत थे। उनके निधन के बाद सौरभ ने अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन किया था। शपथ-पत्र में उनकी मां ने तथ्यों को छिपाया, जिसे परिवहन विभाग ने संदिग्ध माना। इस बीच, सौरभ का नाम पिछले साल दिसंबर में लोकायुक्त के छापों में भी सामने आया था। 18-19 दिसंबर 2024 को लोकायुक्त ने सौरभ और उनके सहयोगियों चेतन सिंह गौर और शरद जायसवाल के ठिकानों पर छापेमारी की थी। इस दौरान चेतन की इनोवा कार से 54 किलो सोना और 10 करोड़ से अधिक की नकदी बरामद हुई थी, जिसका उपयोग सौरभ करता था। इसके बाद प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने भी सौरभ के ठिकानों से 33 करोड़ की संपत्ति जब्त की थी। 41 दिन की फरारी के बाद सौरभ ने कोर्ट में आत्मसमर्पण किया था।
सोना और नकदी का क्या होगा?
चेतन सिंह गौर की कार से मिले 54 किलो सोने और 11 करोड़ रुपये की नकदी पर सौरभ और उनके सहयोगियों ने कोई दावा नहीं किया है। आयकर विभाग अब इसे बेनामी संपत्ति घोषित करने की तैयारी में है और इसे सरकारी खजाने में जमा कराया जाएगा। इस मामले में आयकर विभाग की बेनामी विंग भी जांच कर रही है।
निष्कर्ष
सौरभ शर्मा के मामले में जांच एजेंसियां सक्रिय हैं, लेकिन झूठे शपथ-पत्र से जुड़े मूल मामले में कार्रवाई की सुस्ती सवाल खड़े कर रही है। क्या इस देरी के पीछे कोई दबाव है या प्रशासनिक लापरवाही? यह जांच का विषय बना हुआ है।
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