BY: Yoganand shrivastva
इंदौर, : देशभर में मेडिकल कॉलेजों की मान्यता को लेकर चल रहे कथित घोटाले की जांच में नया मोड़ आया है। सीबीआई ने इंडेक्स मेडिकल कॉलेज के चेयरमैन सुरेश भदौरिया और DAVV (देवी अहिल्या विश्वविद्यालय) के पूर्व कुलपति व यूजीसी के पूर्व चेयरमैन डी.पी. सिंह को आरोपी बनाया है। जांच एजेंसी का कहना है कि भदौरिया कॉलेजों को नियमों के विपरीत मान्यता दिलाने में मध्यस्थ की भूमिका निभा रहे थे और इसके बदले में भारी रिश्वत वसूली जाती थी।
गोपनीय जानकारी मिलती थी मंत्रालय से
एफआईआर के अनुसार, भदौरिया को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय से जुड़े एक अधिकारी चंदन कुमार द्वारा निरीक्षण संबंधी गुप्त जानकारियां समय से पहले दे दी जाती थीं। इनमें शामिल थीं—टीम के आने की तिथि, सदस्यों के नाम, और निरीक्षण का शेड्यूल। इससे पहले से सारी तैयारियां कर ली जाती थीं ताकि एनएमसी (नेशनल मेडिकल कमीशन) को भ्रमित किया जा सके।
झूठे दस्तावेज़, फर्जी उपस्थिति और करोड़ों की डील
भदौरिया पर यह भी आरोप है कि उन्होंने निरीक्षण के वक्त अस्थायी डॉक्टरों को स्थायी स्टाफ के रूप में पेश किया। इसके लिए फिंगरप्रिंट क्लोनिंग से बायोमेट्रिक हेरफेर की गई और झूठी उपस्थिति दर्शाई गई। वह कथित तौर पर 3 से 5 करोड़ रुपये तक की घूस लेकर कॉलेजों को मान्यता दिलवाते थे, चाहे वे एनएमसी के मानकों पर खरे न उतरते हों।
डीपी सिंह की भूमिका
डीपी सिंह, जो वर्तमान में TISS (टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज) के चांसलर हैं, पर आरोप है कि उन्होंने रावतपुरा सरकार मेडिकल कॉलेज के लिए एनएमसी की सकारात्मक रिपोर्ट तैयार करवाने में मदद की थी। इससे पहले वे बीएचयू और DAVV में कुलपति रह चुके हैं।
देशभर में फैला फर्जीवाड़ा नेटवर्क
जांच की शुरुआत रावतपुरा सरकार मेडिकल कॉलेज से हुई थी, लेकिन अब यह 40 से अधिक कॉलेजों तक फैल चुका है। इस नेटवर्क में एक बड़ा दलाल गिरोह सक्रिय था, जिसमें रविशंकर महाराज (रावतपुरा सरकार) और भदौरिया की साझेदारी सामने आई है। दोनों भिंड के लहार क्षेत्र से ताल्लुक रखते हैं।
इंडेक्स ग्रुप के अंतर्गत मेडिकल, डेंटल, फार्मेसी, पैरामेडिकल और मैनेजमेंट कॉलेज आते हैं, जो मालवांचल यूनिवर्सिटी से संबद्ध हैं। यह यूनिवर्सिटी और मयंक वेलफेयर सोसायटी भी भदौरिया द्वारा संचालित हैं।