जब अपराधी बनता है नेता और फिर ‘लोकप्रिया’
उत्तर प्रदेश की राजनीति में “बाहुबली” सिर्फ एक शब्द नहीं, बल्कि एक सत्ता-संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता है — जिसमें अपराध, भय, जाति और ‘लोकप्रियता’ का अजीब सा मेल होता है।
लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि —
👉 कैसे एक गैंगस्टर कुछ सालों में जनता की नजरों में ‘जननायक’ बन जाता है?
👉 इसमें मीडिया की क्या भूमिका होती है?
इस लेख में हम इन्हीं सवालों का विश्लेषण करेंगे — केस स्टडी के साथ।
📺 मीडिया और बाहुबली: रिश्ते की शुरुआत
1. Breaking News के भूखे चैनल
आजकल की मीडिया TRP और क्लिक की भूखी है। और जब कोई गैंगस्टर पुलिस से भागता है, गोलीबारी होती है या जेल से चुनाव लड़ता है –
📰 मीडिया इसे ‘क्राइम थ्रिलर’ की तरह कवर करती है।
“मुख्तार अंसारी का काफिला यूपी-बिहार बॉर्डर पर!”
“अतीक अहमद के बेटे की लव स्टोरी और हत्या!”
“डॉन बना विधायक: जानिए कैसे!”
इन हेडलाइंस में डर भी है और आकर्षण भी। यहीं से बनती है पहली परत:
👉 “खौफ और करिश्मे की छवि”
🧠 छवि निर्माण की प्रक्रिया: एक गैंगस्टर से जननायक तक
1. जाति और समुदाय का संरक्षण
बाहुबली नेता आमतौर पर किसी खास जाति या धार्मिक समुदाय के हितैषी के रूप में खुद को पेश करता है।
उदाहरण:
- अतीक अहमद – मुस्लिम मतदाता समूह में लोकप्रिय
- मुख्तार अंसारी – पासी, मुस्लिम और कुछ दलित जातियों में प्रभाव
📌 “वो हमारा आदमी है, चाहे जैसा भी हो!” — यही सोच बाहुबली को सुरक्षा देती है।
2. स्थानीय मीडिया और PR टीम का खेल
कई बाहुबली खुद की PR टीम रखते हैं जो सोशल मीडिया, लोकल न्यूज़पेपर और यूट्यूब चैनलों पर एक खास छवि गढ़ते हैं:
- “गरीबों का मसीहा”
- “सिस्टम से लड़ने वाला”
- “रॉबिनहुड नेता”
⚠️ उनके खिलाफ दर्ज मुकदमों को “राजनीतिक षड्यंत्र” बताया जाता है।
3. मुफ्त भोजन, शादी-विवाह में मदद, और बाहरी दिखावा
वो सामाजिक कार्य भी करते हैं — चाहे वह
- गरीबों को दवाइयां देना हो,
- स्थानीय मंदिर-मस्जिद में दान देना,
- या किसी की बेटी की शादी में 1 लाख रुपये देना।
मीडिया इन्हें दिखाती है और जनता में संदेश जाता है:
👉 “जो सरकार नहीं कर पाई, ये कर रहा है”
🔍 केस स्टडी: अतीक अहमद और मुख्तार अंसारी
नेता | मुकदमे | मीडिया छवि | जन समर्थन |
---|---|---|---|
अतीक अहमद | 100+ | अपराधी + Robinhood | मुस्लिम युवाओं में भारी समर्थन |
मुख्तार अंसारी | 50+ | विधायक + गरीबों का नेता | स्थानीय पूर्वांचल क्षेत्रों में प्रभाव |
📌 अतीक अहमद की “मर्सिडीज में घूमते डॉन” वाली छवि हो या मुख्तार अंसारी की “बीमार लेकिन विद्वान” कहानी – मीडिया ने इसे बेचा।
💣 क्या मीडिया को दोष देना सही है?
मीडिया पूरी तरह दोषी नहीं है, लेकिन वह
“सेंसेशनलिज्म” और “नैरेटिव बिल्डिंग” के बीच का फर्क भूल जाती है।
उदाहरण:
- किसी नेता की मौत के बाद “पूरा इलाका रो पड़ा” दिखाया जाता है।
- वीडियो में भीड़ के रोते लोग, पुष्प वर्षा, और गाने वाले भजन — ये सब एक ‘नायक’ की अंतिम यात्रा की तरह दिखाते हैं।
इससे होता है:
- नए युवाओं में गलत संदेश
- अपराधी को ‘नायक’ समझने की प्रवृत्ति
- कानून का डर खत्म होना
🧹 बदलाव कैसे लाएं?
✅ 1. न्यूज प्लेटफॉर्म्स को ज़िम्मेदार बनाना
- सिर्फ क्राइम रिपोर्टिंग ही नहीं, पृष्ठभूमि की गहराई दिखाएं
- TRP से आगे सोचें
✅ 2. जनता की मीडिया साक्षरता बढ़ाएं
- क्या देखा, क्या सुना – उसे तथ्य से मिलाएं, सोशल मीडिया पर आंख मूंदकर भरोसा न करें
✅ 3. लोकल मीडिया का कायाकल्प
- पंचायत स्तर पर अच्छे पत्रकारों को बढ़ावा दें
- बाहुबलियों से भयमुक्त कवरेज जरूरी
🧾 निष्कर्ष: बाहुबली या जननायक – कौन तय करेगा?
“अपराध” अगर “लोकप्रियता” से बड़ा हो जाए, तो लोकतंत्र की नींव हिलती है।
बाहुबली नेता का नायक बनना केवल मीडिया की गलती नहीं — ये हम सबकी चूक है।
✍️ “जनता जब डर के बजाय अधिकार की भाषा में वोट देगी, तभी असली बदलाव आएगा।”