रिपोर्ट – मंगेश रजक, EDITED BY: Vijay Nandan
बीना : सुभाष वार्ड की ग्वालटोली में शुक्रवार की रात को ग्वाल समाज द्वारा लट्ठमार होली का आयोजन किया गया। यह आयोजन देर रात तक चलता रहा, और इसे देखने के लिए नगर और ग्रामीण क्षेत्रों से बड़ी संख्या में लोग पहुंचे।
मथुरा के बरसाना में खेली जाने वाली होली की परंपरा के अनुसार बीना में भी वर्षों से यह परंपरा चली आ रही है, जिसमें महिलाएं पुरुषों को लट्ठों से मारती हैं। लट्ठमार होली को देखने के लिए सैकड़ों लोग ग्वालटोली पहुंचते हैं। इस होली का आयोजन स्थानीय महिलाओं और पुरुषों का एक साल भर से इंतजार होता है, और होली आते ही वे इस आयोजन का आनंद लेते हैं।
यहां की होली में रंग-गुलाल तो सभी खेलते हैं, लेकिन लट्ठमार होली का मजा कुछ खास ही होता है। इस खेल में महिलाएं पुरुषों को लट्ठों से मारती हैं, और पुरुष तौलिया या अन्य वस्तुओं से अपनी रक्षा करते हैं। लट्ठमार होली खेलने वालों का मानना है कि इस प्रकार की होली से आपस में प्रेम और भाईचारे को बढ़ावा मिलता है। कई बार पुरुष बचाव नहीं कर पाते, जिससे उन्हें चोट भी आती है, लेकिन इसके बावजूद वे वापस होली खेलने के लिए लौटते हैं।

ग्वाल यादव समाज द्वारा यह लट्ठमार होली लंबे समय से आयोजित की जा रही है, और यह भगवान कृष्ण की परंपरा के अनुरूप है। इस दौरान समधन-समधी पर, सरहज-नंदोई पर, साली-जीजा पर और भाभी-देवर पर अवसर मिलने पर महिलाएं इन पर लाठियां बरसाकर अपने प्रेम का प्रदर्शन करती हैं। इस आयोजन के दौरान फाग गीत भी गाए जाते हैं, जो इस परंपरा को और भी खास बनाते हैं।

मथुरा की बरसाना की लट्ठमार होली की संस्कृति
मथुरा जिले के बरसाना गांव में हर साल लट्ठमार होली का आयोजन बड़े धूमधाम से किया जाता है, जो भारत की होली परंपराओं में एक अनोखा और प्रसिद्ध उत्सव है। यह होली मथुरा के आसपास के गांवों में खेले जाने वाली होली के मुकाबले पूरी तरह से अलग होती है, और इसे देखने के लिए दूर-दूर से पर्यटक और श्रद्धालु आते हैं।
लट्ठमार होली की परंपरा का संबंध भगवान श्री कृष्ण और उनकी साथी राधा से जुड़ा हुआ है। मान्यता के अनुसार, भगवान कृष्ण अपनी मित्रों के साथ राधा और उनके साथियों के पास होली खेलने के लिए बरसाना आए थे। यहां पर राधा और उनकी सहेलियों ने कृष्ण और उनके साथियों को लाठियों से पीटा था। उसी घटना को याद करते हुए हर साल बरसाना में यह होली खेली जाती है।
इस अनोखे उत्सव में महिलाएं पुरुषों को लठ्ठ (डंडे) से मारती हैं, और पुरुष अपनी रक्षा करने के लिए तौलिया या अन्य वस्तुओं का इस्तेमाल करते हैं। इस खेल में महिलाओं का आक्रमण और पुरुषों का बचाव बहुत ही जोश और हंसी-मजाक के साथ होता है। हालांकि यह होली कुछ हद तक तीव्र और जोशपूर्ण होती है, लेकिन इसमें सामूहिक प्रेम और भाईचारे का प्रदर्शन भी होता है।
बरसाना की लट्ठमार होली को देखने के लिए हर साल हजारों लोग मथुरा और आसपास के क्षेत्रों से यहाँ आते हैं। यह उत्सव रंग और खुशी से भरपूर होता है। यहां के लोग इसे पूरे जोश और उत्साह के साथ मनाते हैं, और इस दिन विशेष रूप से ‘फाग गीत’ गाए जाते हैं, जो इस उत्सव की रंगीनता को और बढ़ा देते हैं।
लट्ठमार होली की एक खासियत यह है कि यह महिला प्रधान होती है, क्योंकि महिलाएं इस दौरान पुरुषों पर लाठियां बरसाती हैं। हालांकि यह एक पारंपरिक उत्सव है, लेकिन इस खेल के माध्यम से लोग आपस में प्रेम, भाईचारा और मित्रता की भावना को और मजबूत करते हैं।
यह होली न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का भी एक अहम हिस्सा है, जो हर साल लाखों लोगों को आकर्षित करता है।
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