श्योपुर: कूनो नेशनल पार्क से चीता संरक्षण को लेकर एक और बड़ी उपलब्धि दर्ज की गई है। दक्षिण अफ्रीकी मादा चीता ‘वीरा’, जिसने फरवरी 2025 में दो शावकों को जन्म दिया था। आज मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने तीनों को खुले जंगल में रिलीज किया। अब अपने लगभग नौ माह के दोनों शावकों के साथ वीरा पूरी तरह खुले जंगल में सफलतापूर्वक विचरण कर रही है। रिलीज़ किए जाने के बाद वीरा और उसके शावक ने प्राकृतिक आवास में स्वतंत्र रूप से मूव करना शुरू कर दिया है।

मुक्त वन क्षेत्र में अब 19 चीते सक्रिय
कूनो में अब तक 16 चीते खुले जंगल में घूम रहे थे। वीरा और उसके दोनों शावकों के शामिल हो जाने के बाद यह संख्या बढ़कर 19 हो गई है। कूनो में फिलहाल कुल 29 चीते मौजूद हैं —
8 वयस्क
21 शावक
वहीं गांधी सागर अभयारण्य में तीन चीते मौजूद हैं।
यह आंकड़े बताते हैं कि कूनो में चीता आबादी लगातार मजबूत हो रही है और प्रोजेक्ट स्थिर गति से आगे बढ़ रहा है। मुख्यमंत्री: “कूनो की उपलब्धि ऐतिहासिक पर्यटन को मिली अंतरराष्ट्रीय पहचान” चीता दिवस के अवसर पर कूनो पहुंचे मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने इस सफलता को ऐतिहासिक करार दिया। मुख्यमंत्री ने कहा “कूनो आज पर्यटन के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय पहचान बना रहा है। हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आभारी हैं जिन्होंने चीतों के पुनर्जीवन के लिए मध्यप्रदेश की धरती को चुना। चीता प्रोजेक्ट ने स्थानीय क्षेत्र में रोजगार और जागरूकता दोनों बढ़ाए हैं।
कूनो का चीता मुरैना से लेकर शिवपुरी तक दौड़ लगाता है और राजस्थान की धरती पर घूम-फिरकर लौट आता है।#InternationalCheetahDay pic.twitter.com/ISRKXWfz2p
— Dr Mohan Yadav (@DrMohanYadav51) December 4, 2025
- कई नई सुविधाओं और प्रकाशनों का लोकार्पण
- कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री द्वारा निम्न महत्वपूर्ण पहलें शुरू की गई—
- कूनो आधारित विशेष कैलेंडर (2026)
- फ्री-रेंजिंग चीता के क्लीनिकल मैनेजमेंट पर पुस्तक
- कूनो सोवेनियर शॉप का लोकार्पण
- इनसे पार्क के वैज्ञानिक प्रबंधन, फील्ड मॉनिटरिंग और पर्यटन विकास को नई गति मिलने की उम्मीद है।
- प्रोजेक्ट की प्रगति का मजबूत संकेत
- वीरा और उसके शावकों का खुले जंगल में सफलतापूर्वक स्थापित होना यह दर्शाता है कि—
- चीतों की अनुकूलन क्षमता मजबूत है
- कूनो का पर्यावरण इनके लिए अनुकूल है
- संरक्षण परियोजना अपने लक्ष्यों की ओर प्रभावी ढंग से आगे बढ़ रही है
- कूनो में यह उपलब्धि भारत के वन्यजीव संरक्षण इतिहास में एक और महत्वपूर्ण अध्याय जोड़ती है।






