क्या इस्लामिक देश पाकिस्तान को दे रहे आर्थिक मदद?
BY: VIJAY NANDAN
2025 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध की आशंका ने उपमहाद्वीप में तनाव की एक नई लकीर खींच दी है। जहां भारत अपनी कूटनीतिक मजबूती, सैन्य ताकत और आर्थिक स्थिरता के बल पर पूरी तरह तैयार नजर आ रहा है, वहीं पाकिस्तान की हालत दयनीय है। उसकी अर्थव्यवस्था पतन की कगार पर है और महंगाई, बेरोजगारी, आतंरिक अस्थिरता और विदेशी कर्ज ने उसे पूरी तरह से तोड़कर रख दिया है। ऐसे में पाकिस्तान अब युद्ध लड़ने के लिए भी भीख मांगने पर उतर आया है।
पाकिस्तान की मौजूदा आर्थिक स्थिति:
- विदेशी मुद्रा भंडार: मात्र कुछ हफ्तों के आयात लायक ही बचा है।
- महंगाई दर: रिकॉर्ड स्तर पर, खासकर पेट्रोल-डीजल और खाद्यान्नों की कीमतें आसमान पर।
- बेरोजगारी: युवा वर्ग खासतौर पर पूरी तरह हताश, हिंसा की ओर बढ़ रहा है।
- आईएमएफ और वर्ल्ड बैंक से राहत पैकेज: पाकिस्तान पहले से ही कर्ज में डूबा है और अब कर्ज लौटाने की स्थिति में नहीं है।
- कंगाली की हालत में एक बार पाक को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने उसे राहत देते हुए करीब ₹12,000 करोड़ (लगभग $1.1 बिलियन) की मदद दी है। यह मदद 7 बिलियन डॉलर के स्टैंडबाय सहायता कार्यक्रम के तहत दी गई है, जिसमें से अब तक $2 बिलियन से अधिक की राशि डिस्बर्स हो चुकी है।
भारत की तीखी प्रतिक्रिया:
भारत ने IMF के इस फैसले पर असंतोष व्यक्त किया है और स्पष्ट कहा है कि
“ऐसे देश को मदद देना खतरनाक है जो आतंकवाद को राज्य नीति के रूप में अपनाए हुए है। IMF को सतर्क रहना चाहिए कि यह धन आतंकवादी गतिविधियों में उपयोग न हो।” भारत ने इस रिव्यू वोटिंग में शामिल न होकर एक प्रकार से मौन विरोध दर्ज कराया है।

युद्ध के लिए पाकिस्तान का “भीख अभियान”
जब अपने संसाधनों से युद्ध लड़ना असंभव लगने लगा, तब पाकिस्तान ने दुनिया भर के देशों से आर्थिक मदद मांगनी शुरू कर दी है।
1. इस्लामिक देशों से अपील:
पाकिस्तान ने इस्लाम के नाम पर ‘जिहाद’ का हवाला देते हुए निम्नलिखित देशों से सहायता मांगी:
- सऊदी अरब: कड़े शर्तों के साथ सीमित मदद दी गई है, जिसमें तेल की आंशिक आपूर्ति शामिल है।
- कतर और यूएई: कुछ फंड दिए गए हैं लेकिन वो मुख्यतः पाकिस्तान में निवेश सुरक्षा के तहत हैं।
- तुर्किये और ईरान: सांकेतिक समर्थन मिला है लेकिन आर्थिक मदद ना के बराबर।
2. चीन से उम्मीदें और हकीकत:
चीन पाकिस्तान का तथाकथित रणनीतिक साझेदार है, लेकिन इस बार चीन ने बहुत सीमित समर्थन ही दिया है क्योंकि CPEC (चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर) पहले से घाटे में है और चीन खुद आर्थिक दबाव झेल रहा है।
3. अमेरिका और पश्चिमी देश:
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अमेरिका ने पाकिस्तान को कड़ी चेतावनी दी है कि वह आतंकवाद को संरक्षण देना बंद करे। आर्थिक मदद तो दूर, अमेरिका अब पाकिस्तान पर अतिरिक्त प्रतिबंध लगाने की तैयारी में है।

पाकिस्तान के मीडिया चैनलों पर “युद्ध-फंड” की अपील:
पाकिस्तान में अब न्यूज़ चैनलों पर बाकायदा युद्ध के लिए चंदा इकट्ठा किया जा रहा है। टेलीथॉन, बैंक अकाउंट नंबर और QR कोड के जरिए आम जनता से पैसे मांगे जा रहे हैं।
विडंबना यह है कि जिस देश में गरीब एक वक्त की रोटी को तरस रहे हैं, वहां सरकार लोगों से टैंक और मिसाइलों के लिए पैसा मांग रही है।
क्या युद्ध के बहाने पाकिस्तान आर्थिक सुधार की उम्मीद कर रहा है?
पाकिस्तान की यह रणनीति कहीं न कहीं अंतरराष्ट्रीय सहानुभूति बटोरने और ‘विक्टिम कार्ड’ खेलने की है। युद्ध के बहाने:
- वह अंतरराष्ट्रीय मंच पर मदद जुटाना चाहता है।
- घरेलू असफलताओं से ध्यान हटाना चाहता है।
- आतंकी संगठनों और कट्टरपंथी वर्ग से फंडिंग चाहता है।
लेकिन यह योजना दीर्घकालिक नहीं है। युद्ध के परिणामस्वरूप:
- विदेशी निवेश पूरी तरह बंद हो जाएगा।
- देश के अवसंरचनात्मक ढांचे को भारी नुकसान होगा।
- अंतरराष्ट्रीय कर्जदाता भी मदद से कतराने लगेंगे।
- आंतरिक अस्थिरता और गृहयुद्ध जैसी स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है।
भारत की स्थिति:
भारत अपनी मजबूत अर्थव्यवस्था, वैश्विक कूटनीति और सैन्य तैयारियों के कारण आत्मविश्वास से भरा है।पाकिस्तान अगर यह सोच रहा है कि वह युद्ध के नाम पर इस्लामी भावनाओं को भड़काकर और भीख मांगकर अपनी अर्थव्यवस्था को सुधार लेगा, तो यह उसकी सबसे बड़ी भूल है। भारत के साथ युद्ध न केवल उसे सामरिक रूप से हरा देगा, बल्कि उसकी बची-खुची अर्थव्यवस्था और सामाजिक ताने-बाने को पूरी तरह तोड़कर रख देगा। ऐसे में बेहतर होगा कि पाकिस्तान युद्ध के नाम पर ढोंग करना बंद करे और अपने देश के वास्तविक मुद्दों को सुलझाने की ओर ध्यान दे। क्या पाकिस्तान इस जंग से सबक लेगा या खुद को पूरी तरह बर्बाद कर देगा? यह सवाल आज पूरी दुनिया के सामने खड़ा है।
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