BY: Yoganand Shrivastva
रूसी संसद के निचले सदन, स्टेट ड्यूमा ने मंगलवार को भारत और रूस के बीच हुए रक्षा समझौते ‘RELOS’ को मंजूरी दे दी है। इस समझौते के तहत दोनों देशों की सेनाएं एक-दूसरे के सैन्य बेस, फैसिलिटीज और संसाधनों का उपयोग कर सकेंगी। इसमें विमान, वॉरशिप का ईंधन भरना, बेस पर डेरा डालना और अन्य लॉजिस्टिक सुविधाओं का इस्तेमाल शामिल है। इस पर होने वाला खर्च दोनों देशों के बीच बराबर बांटा जाएगा।
यह मंजूरी रूस के राष्ट्रपति पुतिन के भारत दौरे से दो दिन पहले दी गई है। RELOS समझौता 18 फरवरी 2025 को भारत और रूस के बीच किया गया था। रूसी प्रधानमंत्री मिखाइल मिशुस्तिन ने इसे संसद में मंजूरी के लिए भेजा था।
रूसी संसद के स्पीकर ने कहा कि यह समझौता भारत और रूस के मजबूत रिश्तों को और सुदृढ़ करेगा। रूसी सरकार ने बताया कि इससे दोनों देशों की सैन्य साझेदारी मजबूत होगी और जरूरत पड़ने पर एक-दूसरे की मदद करना आसान होगा। इसके बाद भारत ऐसा पहला देश बन जाएगा, जिसका अमेरिका और रूस दोनों के साथ सैन्य इन्फ्रास्ट्रक्चर साझा करने का समझौता होगा।
हालांकि, इस समझौते के तहत युद्ध या किसी सैन्य संघर्ष के दौरान सैन्य बेस का इस्तेमाल नहीं किया जा सकेगा। यह केवल लॉजिस्टिक सपोर्ट और शांति काल में मिलिट्री सहयोग के लिए है। लॉजिस्टिक सपोर्ट का मतलब है, जरूरत पड़ने पर ईंधन, सामान और मरम्मत जैसी मदद देना। शांति काल में सेनाओं की संयुक्त ट्रेनिंग और सहयोग को पीस-टाइम मिलिट्री कोऑपरेशन कहा जाता है।
RELOS (रेसिप्रोकल एक्सचेंज ऑफ लॉजिस्टिक सपोर्ट) समझौते को दोनों देशों की रणनीतिक साझेदारी में महत्वपूर्ण रक्षा समझौता माना जा रहा है। इसके तहत भारत और रूस के सैन्य बल एक-दूसरे के एयरफील्ड, बंदरगाह और सप्लाई पॉइंट का इस्तेमाल कर सकेंगे। इसका उपयोग ईंधन भरने, मरम्मत, स्टॉक रिफिल, मेडिकल सपोर्ट, ट्रांजिट और मूवमेंट जैसे कामों के लिए किया जाएगा।
भारत ने इससे पहले अमेरिका (LEMOA), फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर और दक्षिण कोरिया जैसे देशों के साथ ऐसे ही समझौते किए हैं, और अब रूस भी इस सूची में शामिल हो गया है।





