BY: Yoganand Shrivastva
दिल्ली सरकार ने राजधानी के निजी स्कूलों में फीस वसूली की मनमानी पर लगाम लगाने के लिए एक बड़ा कदम उठाया है। राज्य कैबिनेट ने मंगलवार को “दिल्ली स्कूल एजुकेशन ट्रांसपेरेंसी इन फिक्सेशन एंड रेगुलेशन ऑफ फीस एक्ट 2025” को अपनी मंजूरी दे दी है। इस कानून के लागू होने के बाद अब निजी स्कूलों को मनमानी तरीके से फीस नहीं बढ़ाने दी जाएगी, जिससे हजारों अभिभावकों को राहत मिलेगी।
कैबिनेट बैठक में लिया गया अचानक निर्णय
यह प्रस्ताव कैबिनेट एजेंडा में शामिल नहीं था, लेकिन शिक्षा मंत्री आशीष सूद ने टेबल एजेंडा के रूप में इसे पेश किया। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इसे हरी झंडी देते हुए कानून को मंजूरी दी।
सीएम ने की थी अभिभावकों की शिकायतों की सुनवाई
शिक्षा मंत्री के मुताबिक, हाल के दिनों में मुख्यमंत्री ने फीस वृद्धि को लेकर कई अभिभावकों की शिकायतें सुनी थीं, जिसके बाद कई स्कूलों को नोटिस भी जारी किए गए। हालांकि, स्थायी समाधान के लिए कानून की जरूरत महसूस की गई।
1677 स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को होगा लाभ
सरकार ने महज 65 दिनों के भीतर इस विधेयक को तैयार कर पास किया है। इससे राजधानी के 1677 निजी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों और उनके परिवारों को राहत मिलेगी। इससे पहले 1973 के एक्ट में फीस नियंत्रण को लेकर कोई विशेष प्रावधान नहीं था।
तीन-स्तरीय समिति करेगी फीस निर्धारण पर निगरानी
नए कानून के तहत फीस निर्धारण और उसमें वृद्धि की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिए तीन स्तरों पर समितियों का गठन होगा:
- स्कूल स्तरीय समिति:
- कुल 10 सदस्य होंगे, जिसमें स्कूल प्रबंधन, 5 अभिभावक, एक महिला और एक अनुसूचित जाति वर्ग का प्रतिनिधि शामिल होगा।
- समिति स्कूल की सुविधाएं, इमारत, और 18 अन्य बिंदुओं पर मूल्यांकन कर फीस पर निर्णय लेगी।
- हर साल 21 जुलाई तक यह समिति गठित कर दी जाएगी और 21 दिनों में रिपोर्ट देगी।
- समिति का निर्णय अगले तीन वर्षों तक मान्य रहेगा।
- जिला स्तरीय समिति:
- शिक्षा विभाग के उप निदेशक की अध्यक्षता में कार्य करेगी।
- यदि स्कूल स्तरीय समिति कोई निर्णय नहीं देती या 15% अभिभावक उससे असहमति जताते हैं, तो यह समिति मामले को देखेगी।
- राज्य स्तरीय समिति:
- इसमें सात सदस्य होंगे और यदि जिला समिति भी निर्णय नहीं लेती है तो मामला यहां पहुंचेगा।
कड़ी सजा का प्रावधान
- यदि कोई स्कूल नियमों का उल्लंघन करता है तो उस पर एक लाख से दस लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
- बार-बार नियम तोड़ने पर स्कूल की मान्यता रद्द की जा सकती है और प्रबंधन को सरकार अपने नियंत्रण में ले सकती है।
- यदि कोई स्कूल फीस न देने पर बच्चे को प्रताड़ित करता है, तो 50,000 रुपये का जुर्माना लगेगा और 20 दिनों में समाधान न होने पर जुर्माना तीन गुना कर दिया जाएगा।