भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) खुद को दुनिया की सबसे बड़ी और ‘पार्टी विद डिफरेंस’ बताती है। लेकिन अंदरूनी हालात कुछ और ही कहानी बयान कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की जोड़ी पर जिस तरह का शिकंजा आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) कस रहा है, उसने पार्टी के भविष्य को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
बीजेपी में गुजरात लॉबी का दबदबा और नाराज़ आरएसएस
बीजेपी में लंबे समय से गुजरात लॉबी यानी नरेंद्र मोदी और अमित शाह का वर्चस्व रहा है। छोटे से बड़े सभी फैसले वही लेते रहे हैं। लेकिन अब यह वर्चस्व आरएसएस को खटकने लगा है। सूत्रों के मुताबिक, आरएसएस को इन प्रमुख मुद्दों पर सख्त आपत्ति है:
- मोदी की अंतरराष्ट्रीय छवि कमजोर पड़ना
- भारत के भीतर मोदी का राजनीतिक जादू फीका होना
- पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र का खत्म होना
- दो साल बाद भी बीजेपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष तय न हो पाना
मोदी की विदेश नीति पर ट्रंप का हमला
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर मोदी की विदेश नीति का मजाक उड़ाया। ट्रंप ने दावा किया कि उन्होंने भारत-पाकिस्तान के बीच व्यापार रोकने की धमकी देकर युद्ध टलवाया। यह बयान भारत की कूटनीतिक विफलता की ओर इशारा करता है।
इतना ही नहीं, भारत को जिस तरह का अंतरराष्ट्रीय समर्थन मिलना चाहिए था, वह भी नजर नहीं आया। इससे मोदी की विदेश नीति और छवि पर सवाल उठने लगे हैं।
2024 के चुनाव ने खोल दी पोल
2014 और 2019 में प्रचंड बहुमत हासिल करने वाली बीजेपी 2024 के लोकसभा चुनाव में बहुमत से दूर रह गई। नतीजा यह हुआ कि सरकार को सहयोगियों के सहारे बनाना पड़ा। यही बात आरएसएस को नागवार गुजर रही है।
4 जून 2024 को नतीजों के दिन आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का बयान भी इसी नाराजगी का संकेत था।
आरएसएस की नजर में मोदी-शाह की कमजोरी
आरएसएस मानता है कि:
- मोदी-शाह की जोड़ी ने संगठन को कमजोर किया
- पार्टी में व्यक्तिवाद हावी हो गया
- आंतरिक लोकतंत्र को नजरअंदाज किया गया
- फैसले कुछ गिने-चुने लोगों की मर्जी से लिए जा रहे हैं
ऑपरेशन सिंदूर से उम्मीद, लेकिन नतीजा निराशाजनक
पहलगाम आतंकी हमले के बाद हुए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ से माना जा रहा था कि मोदी अपनी लोकप्रियता वापस हासिल कर लेंगे। लेकिन अपेक्षित लाभ नहीं मिला। इससे आरएसएस और नाराज हो गया।
बीजेपी अध्यक्ष पद पर रस्साकशी
जेपी नड्डा का कार्यकाल जनवरी 2023 में खत्म हो गया, लेकिन डेढ़ साल से ज्यादा वक्त गुजर जाने के बाद भी बीजेपी नया अध्यक्ष नहीं चुन पाई। इसकी मुख्य वजह यही मानी जा रही है कि:
- मोदी-शाह अपनी पसंद का अध्यक्ष चाहते हैं
- आरएसएस संगठन पर नियंत्रण वापस चाहता है
सूत्रों के अनुसार, आरएसएस देवेंद्र फडणवीस का नाम आगे बढ़ा रहा है, जबकि मोदी-शाह खेमे में इसे लेकर असहजता है।
योगी आदित्यनाथ का चेहरा भी बना विवाद की वजह
योगी आदित्यनाथ का नाम राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए सामने आया तो मोदी-शाह खेमे में बेचैनी बढ़ गई। माना जाता है कि अमित शाह नहीं चाहते कि योगी का चेहरा राष्ट्रीय राजनीति में प्रमुखता से उभरे, जिससे उनका खुद का कद कम हो सकता है।
इतिहास में भी दिखती है देरी और खींचतान
बीजेपी में अध्यक्ष पद को लेकर खींचतान नई बात नहीं है। उदाहरण:
- 2009 में राजनाथ सिंह का कार्यकाल खत्म होने के बाद भी अध्यक्ष चयन में देरी हुई
- नितिन गडकरी के चयन पर भी अंदरूनी संघर्ष चला
- 2013 में गडकरी पर लगे घोटाले के आरोपों के चलते उन्हें हटाया गया
ऐसी ही स्थिति आज भी बनी हुई है, फर्क बस इतना है कि इस बार टकराव खुलकर सामने आ चुका है।
आरएसएस और बीजेपी: एक ही सिक्के के दो पहलू
बीजेपी भले ही खुद को लोकतांत्रिक पार्टी बताए, लेकिन असल में:
- आरएसएस संगठन के हर बड़े फैसले में दखल देता है
- नेताओं की नियुक्ति से लेकर यूनिवर्सिटी के वीसी और न्यायपालिका तक में आरएसएस की भूमिका रहती है
- बीजेपी के जरिए आरएसएस अपनी विचारधारा लागू करता है
क्या मोदी की कुर्सी खतरे में?
आरएसएस ने ’75 साल की सीमा’ का फार्मूला लागू किया, जिससे संकेत मिल रहे हैं कि:
- 2025 में 75 साल के होने जा रहे मोदी पर दबाव डाला जा सकता है
- नए नेतृत्व के लिए आरएसएस जमीन तैयार कर सकता है
- अमित शाह की स्थिति भी कमजोर होती दिख रही है
निष्कर्ष: बीजेपी में सब कुछ ठीक नहीं
बीजेपी का आंतरिक लोकतंत्र, संगठनात्मक ढांचा और नेतृत्व चयन — सब कुछ सवालों के घेरे में है। मोदी-शाह बनाम आरएसएस की यह खींचतान पार्टी के भविष्य के लिए बड़ा संकट बन सकती है।
आपके सवाल:
- क्या मोदी 5 साल का कार्यकाल पूरा कर पाएंगे?
- क्या बीजेपी नया राष्ट्रीय अध्यक्ष तय कर पाएगी?
- क्या आरएसएस मोदी पर लगाम कसने में सफल होगा?
अपना विचार नीचे कमेंट में जरूर साझा करें।