पूर्व भारतीय क्रिकेटर और कोच संजय बांगड़ की बेटी अनाया बांगड़ (पूर्व में आर्यन) ने हाल ही में एक इंटरव्यू में अपनी पहचान, ट्रांसजेंडर अनुभव और क्रिकेट छोड़ने के फैसले को लेकर बड़ा खुलासा किया है। अनाया ने बताया कि उन्हें बचपन से ही लड़कियों जैसा महसूस होता था, लेकिन अपने परिवार और खासतौर पर पिता के कारण वे लंबे समय तक अपनी पहचान को छुपाए रहीं।
क्रिकेट से गहरा लगाव, लेकिन मुश्किल फैसला
अनाया ने बताया कि उन्हें बचपन से ही क्रिकेट से बेहद लगाव था और वे इस्लाम जिमखाना क्लब के लिए खेला करती थीं। हालांकि, लिंग परिवर्तन के बाद उन्हें इस खेल को अलविदा कहना पड़ा।
उन्होंने कहा:
“मुझे क्रिकेट से प्यार था। लेकिन मेरे ट्रांज़िशन के बाद, पापा ने कह दिया कि अब क्रिकेट में मेरे लिए कोई जगह नहीं है।”
अनाया का यह बयान इस बात की ओर इशारा करता है कि पारंपरिक सोच और सिस्टम ट्रांसजेंडर खिलाड़ियों को स्पोर्ट्स में पूरी तरह अपनाने के लिए अभी भी तैयार नहीं है।
मानसिक संघर्ष और आत्महत्या के विचार
अपनी बातचीत में अनाया ने बताया कि उन्होंने जीवन के कठिन दौर से गुज़रा है।
उन्होंने कहा:
“मुझे आत्महत्या के ख्याल आने लगे थे। मुझे लगा कि इस सिस्टम में मेरे लिए कोई जगह नहीं बची है, यहां तक कि बुनियादी अधिकार भी नहीं।”
उनका यह बयान ट्रांसजेंडर युवाओं की मानसिक स्थिति और सामाजिक अस्वीकार्यता की गंभीरता को उजागर करता है।
ICC के नियमों ने भी तोड़ी उम्मीदें
आईसीसी (अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद) के नए नियमों के अनुसार, कोई भी खिलाड़ी जिसने पुरुष यौवन से गुजरते हुए लिंग परिवर्तन किया है, वह महिला अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में हिस्सा नहीं ले सकता।
इस फैसले के कारण अनाया के अंतरराष्ट्रीय करियर की संभावनाएं खत्म हो गईं। भले ही उन्होंने क्लब स्तर पर प्रदर्शन किया हो, पर वे अब टीम इंडिया का हिस्सा नहीं बन पाएंगी।
बचपन से महसूस किया था अंतर
अनाया ने बताया कि उन्हें आठ-नौ साल की उम्र में यह अहसास हो गया था कि वे एक लड़की हैं। वे अक्सर मां की अलमारी से कपड़े चुराकर पहनती थीं और आईने में खुद को एक लड़की के रूप में देखती थीं।
उन्होंने कहा:
“मैंने मशहूर खिलाड़ियों जैसे मुशीर खान, सरफराज खान, और यशस्वी जायसवाल के साथ खेला है। लेकिन पापा के प्रोफेशन के कारण मुझे खुद को छुपाना पड़ा।”
अनाया की हिम्मत और समाज से उम्मीद
अनाया बांगड़ की कहानी न केवल एक ट्रांसजेंडर खिलाड़ी की पहचान की लड़ाई है, बल्कि यह समाज और खेल संस्थाओं के लिए एक सवाल भी है – क्या हम वास्तव में सबको समान अवसर देने के लिए तैयार हैं?
उनकी ईमानदारी, संघर्ष और साहस लाखों लोगों के लिए प्रेरणा है। इस समय उन्हें समर्थन की ज़रूरत है, आलोचना की नहीं।