छत्तीसगढ़ सरकार जहां एक ओर शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए कई योजनाएं चला रही है, वहीं दूसरी ओर कांकेर जिले के कोयलाइबेड़ा ब्लॉक के अंदरूनी गांवों की हकीकत सरकार की उन दावों की पोल खोल रही है। गांव आलपरस, मर्राम, पानीडोबीर, अलवर जैसे कई स्थानों पर शिक्षा की स्थिति इतनी खराब है कि बच्चों का स्कूल जाना किसी संघर्ष से कम नहीं है।
स्कूल तक पहुंचने का रास्ता ही बना चुनौती
इन गांवों में स्थित स्कूलों तक पहुंचने के लिए विद्यार्थियों और शिक्षकों को नदी-नालों और कीचड़ भरी पगडंडियों से होकर गुजरना पड़ता है। बरसात के दिनों में हालात और भी गंभीर हो जाते हैं, जब न तो शिक्षक स्कूल पहुंचते हैं और न ही बच्चे। परिणामस्वरूप, स्कूलों में ताले लटके रहते हैं और शिक्षा पूरी तरह ठप हो जाती है।
खुले आसमान के नीचे शिक्षा, जर्जर भवन बना खतरा
अगर किसी तरह स्कूल खुल भी जाए तो भवन की हालत ऐसी है कि छत कभी भी गिर सकती है। बरसात में छत से टपकता पानी, फटी दीवारें और कमजोर खंभे स्कूलों को खंडहर में तब्दील कर चुके हैं। इन हालात में पढ़ाई कर रहे बच्चों की जान जोखिम में है।
गैर जरूरी सुविधाएं बनी मजाक
नियद नेल्लानार कार्यक्रम के तहत शिक्षा विभाग ने इन स्कूलों में वाटर कूलर, टीवी जैसी सुविधाएं भेजी हैं, लेकिन जब छत से पानी टपक रहा हो और बिजली की व्यवस्था न हो, तो ये सुविधाएं बच्चों का भला कैसे करेंगी? यह व्यवस्था अब व्यवस्था पर ही सवाल खड़े कर रही है। लगता है कि योजनाएं जमीनी जरूरतों को देखे बिना सिर्फ कागजों में बनाई जा रही हैं।
तीन लाख रुपये की मरम्मत राशि, लेकिन काफी नहीं
शिक्षा विभाग कांकेर द्वारा स्कूल भवनों की मरम्मत के लिए तीन-तीन लाख रुपये की राशि स्वीकृत की गई है, लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि इतनी राशि से छतों की मरम्मत कर पाना असंभव है। इससे स्पष्ट है कि योजनाएं सिर्फ खानापूर्ति के लिए चलाई जा रही हैं।