तिब्बती बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा ने हाल ही में एक ऐसा बयान दिया है जिसने चीन की टेंशन बढ़ा दी है। 2 जुलाई को उनके एक्स (ट्विटर) अकाउंट से एक आधिकारिक स्टेटमेंट जारी हुआ, जिसमें कहा गया कि दलाई लामा परंपरा जारी रहेगी और उनके निधन के बाद भी अगला दलाई लामा चुना जाएगा। यह अधिकार केवल उनके कार्यालय, गार्डल फोहड्रांग के पास होगा। चीन ने इस पर सख्त प्रतिक्रिया दी और कहा कि दलाई लामा के उत्तराधिकारी का चयन चीन की मंजूरी से ही होना चाहिए।
दलाई लामा परंपरा और पुनर्जन्म की प्रक्रिया
दलाई लामा ने बयान में यह भी स्पष्ट किया कि 1969 में ही उन्होंने परंपरा जारी रखने या न रखने का फैसला संबंधित लोगों पर छोड़ दिया था। हालांकि, हाल के वर्षों में मिले पत्रों और अपीलों के बाद उन्होंने तय किया है कि परंपरा जारी रहेगी।
क्यों परेशान है चीन?
इसका सीधा संबंध तिब्बत के इतिहास से है। तिब्बत कभी स्वतंत्र राष्ट्र था, जिसकी अपनी सेना और प्रशासन था। लेकिन 1950 में चीन ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया। तिब्बती लोग आज भी अपने धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए संघर्ष कर रहे हैं। दलाई लामा चीन के लिए हमेशा से सिरदर्द रहे हैं क्योंकि वह तिब्बत की अस्मिता के प्रतीक हैं।
तिब्बत का इतिहास: कैसे बना चीन के लिए सिरदर्द?
14वें दलाई लामा की खोज
1937 में तिब्बत के ताकतसे गांव में जन्मे ल्हामो धुंडुप को तमाम धार्मिक प्रक्रियाओं के बाद 14वें दलाई लामा घोषित किया गया। वह बच्चे जिसने कहा था, “मां, मैं ल्हासा जाऊंगा,” बड़ा होकर तिब्बत का सबसे बड़ा आध्यात्मिक नेता बना।
चीन-तिब्बत टकराव की जड़ें
- 1913: 13वें दलाई लामा ने तिब्बत को स्वतंत्र घोषित किया।
- 1950: माओ की सेना ने तिब्बत पर हमला किया।
- 1951: 17 सूत्रीय समझौता हुआ, लेकिन चीन ने वादे तोड़े।
- 1959: दलाई लामा तिब्बत छोड़कर भारत आए।
भारत में शरण और चीन की नाराजगी
दलाई लामा 1959 में चीन के उत्पीड़न से बचते हुए भारत पहुंचे। भारत ने उन्हें धर्मशाला में रहने और तिब्बती सरकार-इन-एक्ज़ाइल स्थापित करने की अनुमति दी। यही बात चीन को आज तक खटकती है क्योंकि तिब्बत का मुद्दा भारत-चीन सीमा विवाद से गहराई से जुड़ा है।
दलाई लामा, तिब्बती आंदोलन और चीन की चिंता
तिब्बती पहचान और आजादी की मांग
तिब्बत में चीन द्वारा सांस्कृतिक पहचान को मिटाने की लगातार कोशिशें होती रहीं। सैकड़ों बौद्ध मठ तोड़े गए, धर्मगुरुओं पर अत्याचार हुए और आम लोगों को जेल में डाला गया।
पांच सूत्रीय योजना और वैश्विक समर्थन
1979 में दलाई लामा ने चीन से पांच मांगें रखीं:
- बाहरी लोगों को बसाना बंद हो।
- परमाणु कचरा न डंप किया जाए।
- मानवाधिकारों की रक्षा हो।
- तिब्बत में वास्तविक स्वायत्तता दी जाए।
- बातचीत का रास्ता खोला जाए।
लेकिन चीन ने इन पर ध्यान नहीं दिया।
1989 में दलाई लामा को नोबेल शांति पुरस्कार मिला, जिससे उनके आंदोलन को वैश्विक समर्थन मिला।
चीन की नई चिंता: दो दलाई लामा?
विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले समय में दो दलाई लामा हो सकते हैं:
- एक जिसे चीन नियुक्त करेगा।
- दूसरा, जिसे दलाई लामा की परंपरा के अनुसार चुना जाएगा।
यही बात चीन को सबसे ज्यादा परेशान कर रही है क्योंकि इससे तिब्बत में अलगाववादी आंदोलन को बल मिल सकता है।
निष्कर्ष: तिब्बत मुद्दा क्यों बना रहेगा चर्चा में?
दलाई लामा का पुनर्जन्म, चीन की प्रतिक्रिया और भारत-तिब्बत संबंध आने वाले समय में भी अंतरराष्ट्रीय राजनीति का अहम हिस्सा बने रहेंगे। भारत की भूमिका इसमें निर्णायक है, खासकर तब जब सीमा विवाद और जियोपॉलिटिक्स लगातार बदल रही है।