दक्षिण अफ्रीका की एक अदालत ने महात्मा गांधी की परपोती और सामाजिक कार्यकर्ता आशीष लता रामगोबिन को धोखाधड़ी के एक गंभीर मामले में 7 साल की जेल की सजा सुनाई है। आरोप साबित होने के बाद यह फैसला देश-विदेश में चर्चा का विषय बन गया है।
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कौन हैं आशीष लता रामगोबिन?
- आशीष लता रामगोबिन महात्मा गांधी की पोती इला गांधी की बेटी हैं।
- इला गांधी भारत और दक्षिण अफ्रीका की जानी-मानी मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं।
- लता खुद भी सामाजिक कार्यों और राजनीतिक बदलाव से जुड़ी रहीं।
- वह इंटरनेशनल सेंटर फॉर नॉन-वायलेंस की संस्थापक रहीं और सामाजिक पहल चलाती थीं।
मामला क्या है?
धोखाधड़ी की शुरुआत
- वर्ष 2015 में आशीष लता की मुलाकात व्यवसायी एस. आर. महाराज से हुई।
- महाराज कपड़े, जूते और लिनन के व्यापारी हैं।
- लता ने उनसे कहा कि भारत से तीन कंटेनरों में लिनन मंगाया गया है और उन्हें कस्टम ड्यूटी चुकाने के लिए पैसों की जरूरत है।
- बदले में उन्होंने लाभ में हिस्सेदारी देने का वादा किया।
नकली दस्तावेजों से फंसाया
लता रामगोबिन ने महाराज को विश्वास में लेने के लिए दिए:
- नकली खरीद आदेश
- फर्जी चालान (नेटकेयर अस्पताल समूह के नाम पर)
- नकली डिलीवरी नोट
- और जाली बैंक कन्फर्मेशन लेटर
इन दस्तावेजों से ऐसा जताया गया कि सामान की डिलीवरी हो चुकी है और अस्पताल समूह भुगतान करेगा।
कैसे हुआ खुलासा?
- महाराज ने लता की बातों पर विश्वास कर 6.2 मिलियन रैंड (लगभग 3.22 करोड़ रुपये) दे दिए।
- बाद में उन्हें शक हुआ और जब जांच की गई, तो सामने आया कि कोई शिपमेंट कभी हुआ ही नहीं।
- सभी दस्तावेज फर्जी पाए गए।
कोर्ट का फैसला
- डरबन की अदालत ने लता रामगोबिन को दोषी पाया।
- उन्हें 7 साल की सश्रम जेल की सजा सुनाई गई।
- कोर्ट ने अपील की अनुमति भी नकार दी।
- जज ने इसे एक गंभीर वित्तीय अपराध बताया जिसमें भरोसे का दुरुपयोग हुआ।
सोशल मीडिया पर गुस्सा और ट्रोलिंग
यह खबर सामने आने के बाद सोशल मीडिया पर लोगों का गुस्सा साफ दिखाई दिया। गांधी परिवार की छवि को लेकर कई तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आईं:
- एक यूजर ने लिखा, “परदादा का नाम मिट्टी में मिला दिया।”
- दूसरे ने तंज कसते हुए कहा, “गांधी परिवार शुरू से भ्रष्टाचारी है।”
- कई यूजर्स ने इसे महात्मा गांधी की नैतिक विरासत पर धब्बा बताया।
क्यों बना यह मामला सुर्खियों में?
- गांधी जी का नाम सत्य और नैतिकता का प्रतीक माना जाता है।
- उनके वंशज से जुड़े इस तरह के घोटाले ने लोगों को झकझोर दिया है।
- यह घटना बताती है कि विरासत केवल नाम से नहीं निभाई जा सकती, बल्कि कर्मों से साबित करनी होती है।
महात्मा गांधी के परिवार से जुड़ा यह मामला न केवल कानूनी दृष्टिकोण से गंभीर है, बल्कि यह सामाजिक और नैतिक बहस का भी विषय बन गया है। इससे स्पष्ट होता है कि किसी भी विरासत की प्रतिष्ठा व्यक्तिगत आचरण से जुड़ी होती है, न कि वंश या उपनाम से।