भारत की उपभोक्ता अर्थव्यवस्था में गहराई बढ़ रही है, लेकिन चौड़ाई नहीं—यानी अमीर और अमीर हो रहे हैं, जबकि मध्यम वर्ग ठहराव का शिकार है।
मध्यम वर्ग की आय में ठहराव
मार्सेलस के संस्थापक और मुख्य निवेश अधिकारी सौरभ मुखर्जी के अनुसार, भारत का मध्यम वर्ग, जो सालाना ₹5 लाख से ₹1 करोड़ के बीच कमाता है, पिछले एक दशक से आर्थिक दबाव में है। इस वर्ग की वास्तविक आय में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है, जबकि महंगाई ने उनकी क्रय शक्ति को लगभग 50% तक कम कर दिया है। दूसरी ओर, निम्न-आय वर्ग और अति-धनाढ्य लोगों की कमाई में बढ़ोतरी देखी गई है, जिससे आय असमानता और गहरी हो रही है।

कर्ज के सहारे बढ़ता उपभोग
हालांकि मध्यम वर्ग की आय स्थिर है, फिर भी हवाई अड्डों, शॉपिंग मॉल्स और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर खर्च पिछले पांच सालों में तेजी से बढ़ा है। इसका कारण है कर्ज और उपभोक्ता ऋण में भारी वृद्धि। सौरभ मुखर्जी ने राज शमानी के साथ एक पॉडकास्ट में कहा, “उपभोग में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है, लेकिन पैसा कहां से आया? कर्ज से।” उन्होंने बताया कि भारतीय अपनी जीवनशैली बनाए रखने के लिए बड़े पैमाने पर उधार ले रहे हैं।
AI और ऑटोमेशन से खतरा
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और ऑटोमेशन के बढ़ते इस्तेमाल से नौकरियों पर संकट मंडरा रहा है। मुखर्जी ने चेतावनी दी कि विभिन्न उद्योगों में AI का उपयोग बढ़ने से नौकरियां कम होंगी, भले ही कंपनियां इसे खुलकर न कहें। उन्होंने कहा, “हर सीईओ से बात करने पर वे AI के इस्तेमाल की बात करते हैं। वे यह नहीं बताते कि कितने लोगों को हटाया जाएगा, लेकिन यह साफ है कि AI इंसानों की जगह लेगा तो नौकरियां जाएंगी।” इससे नौकरी की सुरक्षा पर सवाल उठ रहे हैं और यह चिंता बढ़ रही है कि कर्ज का बोझ कौन चुकाएगा।
राजनीति का बदलता फोकस
मुखर्जी के मुताबिक, राजनीति अब निम्न-आय वर्ग पर केंद्रित हो रही है, क्योंकि यही सबसे बड़ा वोट बैंक है। जन धन-आधार-मोबाइल (JAM) ढांचे के जरिए डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT) ने सरकारों के लिए लक्षित वित्तीय सहायता को आसान बना दिया है। उन्होंने कहा, “वोट बैंक की बड़ी राजनीति चल रही है। नकद हस्तांतरण अब बहुत सटीक हो गया है, जिससे सरकारें मध्यम वर्ग के बजाय निम्न-आय वर्ग पर ध्यान दे रही हैं।”
अमीरों की चमक, मध्यम वर्ग की मुश्किल
आयकर डेटा के अनुसार, पिछले एक दशक में ₹1 करोड़ से अधिक कमाने वाला अति-धनाढ्य वर्ग सात गुना बढ़ गया है। मुखर्जी ने टिप्पणी की, “ये भारत के नए राजा-रानी हैं। ये देश चलाते हैं, राजनीतिक व्यवस्था को फंड करते हैं और लक्जरी बाजार को बढ़ावा देते हैं।” लग्जरी घरों, महंगी कारों और प्रीमियम उत्पादों की बिक्री में उछाल आया है, जबकि किफायती आवास और आम उपभोक्ता वस्तुओं की मांग कमजोर पड़ी है।
भविष्य की चुनौतियां
भारत की उपभोक्ता अर्थव्यवस्था में गहराई बढ़ रही है, लेकिन यह व्यापक नहीं हो रही। ब्रांड अब प्रीमियम उत्पादों पर ध्यान दे रहे हैं, न कि आम उपभोक्ताओं पर। घरेलू बचत 50 साल के निचले स्तर पर है, कर्ज बढ़ रहा है और नौकरी की अनिश्चितता मंडरा रही है। आने वाला दशक धनाढ्यों और मध्यम वर्ग के बीच बढ़ती खाई को और स्पष्ट कर सकता है।





