BY: Yoganand Shrivastva
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन चार वर्ष बाद गुरुवार को भारत पहुँचे। एयरपोर्ट पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनका आलिंगन कर स्वागत किया। इसके बाद दोनों नेता एक ही वाहन से प्रधानमंत्री आवास पहुँचे, जहाँ पुतिन के सम्मान में विशेष रात्रिभोज रखा गया। पुतिन की इस यात्रा को लेकर अंतरराष्ट्रीय मीडिया में लगातार चर्चा चल रही है। अमेरिका, यूरोप और यूक्रेन के कई प्रमुख समाचार संस्थानों ने इस दौरे को सामरिक और राजनीतिक दृष्टि से अहम बताते हुए विस्तृत विश्लेषण प्रकाशित किया है।
ब्रिटेन – BBC का विश्लेषण:
“रूस अब भी वैश्विक मंच से अलग-थलग नहीं”**
BBC की रिपोर्ट के अनुसार पुतिन की भारत यात्रा ऐसे समय हो रही है जब अमेरिका लगातार भारत पर रूस से कच्चे तेल की खरीद कम करने का दबाव बढ़ा रहा है। इसके बावजूद भारत ने पुतिन का गर्मजोशी से स्वागत किया, जो दोनों देशों के बीच पुराने और मजबूत रिश्ते को दर्शाता है।
BBC का कहना है—
- भारत–रूस संबंध दशकों पुराने हैं और दोनों देशों की जरूरतें आज भी एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं।
- तेजी से बढ़ती भारतीय अर्थव्यवस्था रूस के लिए बड़ा बाजार है, खासकर ऊर्जा व्यापार के क्षेत्र में।
- रक्षा सहयोग दोनों देशों की साझेदारी का मजबूत स्तंभ रहा है। भारत लंबे समय से रूसी हथियारों का प्रमुख खरीदार रहा है।
- रूस अब भारत में कुशल श्रमिकों को अवसर देने की दिशा में भी देख रहा है।
- पुतिन का भारत आना यह संदेश देने की कोशिश है कि वह यूक्रेन युद्ध और पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद वैश्विक स्तर पर अलग-थलग नहीं है।
BBC ने यह भी जोड़ा कि पुतिन की हालिया चीन यात्रा और अब भारत दौरा रूस की उस रणनीति का हिस्सा हैं जिसमें वह एशिया के प्रमुख देशों के साथ अपने संबंध और मजबूत करना चाहता है।
यूक्रेन – कीव इंडिपेंडेंट का मत:
“भारत की कूटनीति के लिए कठिन सप्ताह”**
यूक्रेनी समाचार पत्र कीव इंडिपेंडेंट ने इस दौरे को भारत की संतुलन साधने की नीति की बड़ी परीक्षा बताया।
इसने लिखा—
- भारत को रूस के साथ ऊर्जा और रक्षा साझेदारी जारी रखनी है, लेकिन साथ ही यूक्रेन और पश्चिमी देशों की उम्मीदों को भी ध्यान में रखना है।
- पुतिन के लिए यह यात्रा यह दिखाने का अवसर है कि रूस के पास अभी भी ग्लोबल साउथ में प्रभावशाली साझेदार मौजूद हैं।
- यूक्रेन को यह चिंता है कि प्रधानमंत्री मोदी अगस्त 2024 में जेलेंस्की को दिए अपने वादे—युद्ध को रोकने में सहयोग—को किस सीमा तक निभा पाएंगे।
- यूरोप मानता है कि भारत, रूस से बातचीत के दौरान यूरोपीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दों को भी उठाएगा।
रिपोर्ट में यह भी याद दिलाया गया कि भारत–रूस संबंध शीत युद्ध के समय से ही मजबूत रहे हैं और 1971 के भारत–पाक युद्ध में सोवियत संघ ने भारत का समर्थन किया था। यही कारण है कि भारत रूस को पारंपरिक और भरोसेमंद मित्र मानता है। यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद भी भारत ने संयुक्त राष्ट्र में तटस्थ रुख अपनाया और रूस के खिलाफ लाए गए कई प्रस्तावों पर मतदान से दूरी बनाए रखी, जैसा कि उसने 2014 में क्रीमिया मुद्दे पर भी किया था।





