बांग्ला राष्ट्रवाद से इस्लामी राष्ट्रवाद की ओर बढ़ता ढाका
by: vijay nandan
बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के बाद जिस तरह घटनाएँ तेज़ी से बदली हैं, उसने दक्षिण एशिया की सुरक्षा को हिला दिया है। शेख हसीना सरकार के पतन के बाद अब बांग्लादेश न सिर्फ़ राजनीतिक अस्थिरता बल्कि धार्मिक कट्टरपंथ के सबसे बड़े दौर से गुजर रहा है। अब इस घटनाक्रम से भारत भी अछूता नहीं है। दिल्ली के रेड फोर्ट के पास हुए ब्लास्ट, जिसमें 9 लोगों की मौत हुई, ने बांग्लादेश और पाकिस्तान के कट्टरपंथी गठजोड़ को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
लश्कर कमांडर की धमकी के बाद दिल्ली में धमाका
सिर्फ़ एक हफ्ते पहले पाकिस्तान में लश्कर-ए-तैयबा के कमांडर सैफुल्लाह सैफ ने एक रैली में कहा था, कि बांग्लादेश के रास्ते भारत में घुसपैठ कर हम नए सिरे से जिहाद छेड़ेंगे। यह बयान उस समय दिया गया जब सैफ खुद ढाका में मौलवियों से संपर्क कर रहा था। अब जब दिल्ली में विस्फोट हुआ है, खुफिया एजेंसियां यह जांच कर रही हैं कि क्या इस धमाके की योजना बांग्लादेश से होकर गुजरी थी। जांच सूत्रों का कहना है कि विस्फोट में इस्तेमाल हुआ विस्फोटक वही तकनीक जो पहले लश्कर और जैश जैसे पाकिस्तानी आतंकी गुट इस्तेमाल करते रहे हैं। एजेंसियों को शक है कि लश्कर नेटवर्क ने बांग्लादेश में बने नए ठिकानों से यह साजिश रची हो।

पाकिस्तानी मौलवियों और जमात का गठजोड़
शेख हसीना के बेदखल होने के बाद बांग्लादेश में पाकिस्तान के मौलवियों और कट्टरपंथी संगठनों का जमावड़ा लग गया है। लश्कर-ए-तैयबा का सैफुल्लाह सैफ, हाफिज सईद का करीबी इब्तिसाम इलाही जहीर, लश्कर-ए-झंगवी से जुड़ा अल्लामा औरंगजेब फारूकी, और जल्द आने वाला मौलाना फजलुर रहमान (डीजल) ये सभी इन दिनों ढाका और चटगांव में “इस्लामी राष्ट्रवाद” के नाम पर रैलियां कर रहे हैं। पाकिस्तान और बांग्लादेश की सेनाओं के बीच बढ़ती नज़दीकियाँ, और जमात-ए-इस्लामी का सत्ता पर प्रभाव, इस गठजोड़ को खतरनाक आयाम दे रहे हैं।
सेक्युलरिज़्म पर वार, इस्लामी राष्ट्रवाद की वापसी
अंतरिम प्रधानमंत्री मोहम्मद यूनुस की सरकार ने एक संवैधानिक आयोग गठित किया है, जिसने बांग्लादेश के संविधान से “सेक्युलरिज़्म” शब्द हटाने की सिफारिश की है। इस आयोग को खुला समर्थन मिला है जमात-ए-इस्लामी का, वही जमात जो 1971 के मुक्ति युद्ध में पाकिस्तान के साथ थी। जमात अब “इस्लामी जनसंख्या आधारित प्रतिनिधित्व प्रणाली” की मांग कर रही है, जिससे मुस्लिमों को संसद में ज्यादा सीटें और हिंदू अल्पसंख्यकों को कम प्रतिनिधित्व मिलेगा। अगर यह लागू होता है तो हिंदुओं का असर 35-40 सीटों से घटकर महज 20-22 सीटों तक सिमट जाएगा। यह बांग्लादेश की धर्मनिरपेक्ष राजनीति के लिए सीधा खतरा है।

कट्टरपंथ का नया अड्डा बनता बांग्लादेश
खुफिया रिपोर्टों के मुताबिक बांग्लादेश में नए आतंकी ठिकाने तैयार किए जा रहे हैं, खासकर सिलहट और चटगांव क्षेत्रों में। यहीं से भारत में घुसपैठ कराने की योजना बन रही है। लश्कर, जैश और जमात से जुड़े कार्यकर्ता फर्जी शरणार्थियों या ट्रक रूट के ज़रिए सीमा पार भेजे जा रहे हैं। रेड फोर्ट ब्लास्ट की प्राथमिक जांच में भी इसी रूट की भूमिका की आशंका जताई गई है। एजेंसियां अब देख रही हैं कि क्या बांग्लादेश से जुड़े कोई मोबाइल नंबर या बैंक ट्रांजैक्शन दिल्ली ब्लास्ट से संबंधित हैं।
सोशल मीडिया पर नफरत और #TMD ट्रेंड
इस्लामी कट्टरपंथ के साथ सोशल मीडिया पर भी जहर फैलाया जा रहा है। बांग्लादेशी यूज़र्स के बीच #TMD (Total Maloon Death) जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं, जिनका सीधा निशाना हिंदू समुदाय है। ढाका की हिंदू-बौद्ध-क्रिश्चियन यूनिटी काउंसिल ने कहा है कि मंदिरों पर फिर से हमले की धमकियाँ दी जा रही हैं और स्कूलों में हिंदू बच्चों को प्रताड़ित किया जा रहा है।
भारत के लिए खतरे की घंटी
- भारत के सुरक्षा तंत्र के लिए अब यह स्थिति “हॉट अलर्ट” बन गई है।
- पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच आतंकी नेटवर्क का पुनर्गठन हो रहा है।
- लश्कर और जमात-ए-इस्लामी के बीच रणनीतिक सहयोग बढ़ रहा है।
- और अब रेड फोर्ट जैसे हमले यह संकेत दे रहे हैं कि भारत फिर से सीमापार आतंक के निशाने पर है।
रणनीतिक मामलों के विशेषज्ञों का मानना है कि अगर बांग्लादेश “इस्लामी गणराज्य” की दिशा में बढ़ता है, तो यह भारत के पूर्वी सीमांत को अस्थिर कर सकता है। ठीक उसी तरह जैसे पाकिस्तान ने पश्चिमी सीमा पर आतंक का जाल फैलाया था।

क्या बांग्लादेशी समाज फिर कट्टरपंथ के खिलाफ खड़ा होगा?
हालाँकि कई बुद्धिजीवी मानते हैं कि बांग्लादेश की जनता अभी भी कट्टरपंथ को स्वीकार नहीं करेगी। ढाका यूनिवर्सिटी में वैज्ञानिक सत्येंद्रनाथ बोस की जयंती का आयोजन, महिलाओं की सामाजिक भागीदारी, और शहरी युवाओं का उदार रुख ये सभी संकेत देते हैं कि बांग्लादेश का समाज अब भी प्रगतिशीलता की जड़ें थामे हुए है। लेकिन राजनीतिक अस्थिरता, जमात का उभार और पाकिस्तानी मौलवियों की घुसपैठ ने खतरे की रेखा को पहले से कहीं ज़्यादा गहरा कर दिया है।
रेड फोर्ट विस्फोट के बाद अब यह सवाल उठना लाजिमी है। क्या यह सिर्फ़ आतंकी हमला था या बांग्लादेश में पनप रहे नए इस्लामी गठजोड़ की पहली कार्रवाई? अगर बांग्लादेश “बांग्ला राष्ट्रवाद” से हटकर “इस्लामी राष्ट्रवाद” की तरफ बढ़ता रहा, तो दक्षिण एशिया एक नए चरमपंथी त्रिकोण पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के घेरे में आ सकता है। भारत को इस चुनौती के लिए तैयार रहना होगा, क्योंकि अब जिहाद सिर्फ़ पश्चिमी सीमा से नहीं, पूर्वी सीमा से भी दस्तक दे रहा है।





