BY: Yoganand Shrivastva
लखनऊ, उत्तर प्रदेश में सरकारी स्कूलों के विलय (मर्जर) को लेकर उठे विवाद ने नया मोड़ ले लिया है। हाईकोर्ट द्वारा इस फैसले पर रोक लगाने से इनकार करने के बाद, आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की घोषणा की है। उनका कहना है कि यह मामला सीधे शिक्षा के अधिकार से जुड़ा है, जिसे वह अंतिम स्तर तक लड़ेंगे।
क्या है मामला?
प्रदेश सरकार ने जून 2025 में एक आदेश जारी कर लगभग 5000 सरकारी प्राइमरी स्कूलों को मर्ज करने का निर्णय लिया था। इसके पीछे तर्क यह दिया गया कि कई स्कूलों में छात्रों की संख्या न के बराबर है—कुछ में तो एक भी छात्र दर्ज नहीं है। सरकार का मानना है कि ऐसे स्कूलों को पास के उच्च प्राथमिक या अन्य सरकारी स्कूलों में समायोजित कर शिक्षकों और संसाधनों का बेहतर उपयोग किया जा सकता है।
सरकार के मुताबिक, इससे न केवल शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा बल्कि शिक्षकों की संख्या में भी इजाफा होगा, जिससे छात्रों को अधिक लाभ मिलेगा।
संजय सिंह का विरोध
सांसद संजय सिंह ने इस निर्णय का विरोध करते हुए सोशल मीडिया पर लिखा,
“हाईकोर्ट के फैसले से मैं स्तब्ध हूं। यूपी के बच्चों ने न्याय की उम्मीद की थी, लेकिन अब स्कूल भी गया और उम्मीद भी। क्या यही है शिक्षा का अधिकार? अब यह लड़ाई सुप्रीम कोर्ट तक जाएगी।”
याचिकाओं पर हाईकोर्ट का रुख
सरकारी फैसले को चुनौती देते हुए सीतापुर और पीलीभीत के छात्रों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में दो अलग-अलग याचिकाएं दायर की थीं। याचिकाकर्ताओं का दावा था कि यह मर्जर बच्चों के 6 से 14 वर्ष की उम्र तक मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन करता है।
हालांकि, कोर्ट ने यह कहते हुए याचिकाएं खारिज कर दीं कि मर्जर का उद्देश्य शिक्षा व्यवस्था को ज्यादा प्रभावी बनाना है, न कि छात्रों को शिक्षा से वंचित करना।
सरकार का पक्ष
उत्तर प्रदेश सरकार ने स्पष्ट किया कि यह कदम शैक्षिक दक्षता और संसाधनों के बेहतर प्रबंधन के लिए उठाया गया है। जिन स्कूलों में छात्रों की संख्या बेहद कम है या बिल्कुल नहीं है, उन्हें मर्ज करके सर्वश्रेष्ठ शैक्षिक वातावरण तैयार करने की दिशा में प्रयास किया जा रहा है।
अब आगे क्या?
हाईकोर्ट के फैसले के बाद अब मामला सुप्रीम कोर्ट की चौखट तक पहुंच गया है। संजय सिंह और शिक्षा से जुड़े कई सामाजिक कार्यकर्ता इस मुद्दे को राष्ट्रीय बहस का विषय बनाना चाहते हैं। उनकी मांग है कि छोटे बच्चों की पहुंच में स्कूल रहें और शिक्षा के अधिकार को किसी भी हाल में सीमित न किया जाए।