महाराष्ट्र की राजनीति में दो नाम दशकों से गूंजते रहे हैं — ठाकरे और पवार। चाहे वह शिवसेना के संस्थापक बाला साहेब ठाकरे हों या राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के दिग्गज नेता शरद पवार, दोनों की पहचान एक ‘ब्रांड’ के रूप में बन चुकी है। अब इन राजनीतिक विरासतों को खत्म करने की कोशिशें हो रही हैं, लेकिन महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) प्रमुख राज ठाकरे का मानना है कि ये प्रयास कभी सफल नहीं होंगे।
🔹 “ठाकरे और पवार की राजनीतिक विरासत अडिग है”: राज ठाकरे
पुणे में एक मीडिया चैनल को शुक्रवार रात दिए गए इंटरव्यू में राज ठाकरे ने कहा:
“ठाकरे और पवार ब्रांड को खत्म करने की कोशिश की जा रही है, लेकिन ये प्रयास कभी सफल नहीं होंगे। मैं इसे लिखकर दे सकता हूं।”
राज ठाकरे ने स्पष्ट किया कि ठाकरे परिवार की विरासत सिर्फ राजनीति तक सीमित नहीं रही है।
- उनके दादा प्रबोधनकार ठाकरे ने सामाजिक सुधारों की अलख जगाई,
- बाला साहेब ठाकरे ने शिवसेना के माध्यम से मराठी अस्मिता को नई आवाज दी,
- और उनके पिता श्रीकांत ठाकरे संगीत जगत में अपना योगदान दे चुके हैं।
अब ठाकरे परिवार की विरासत को उद्धव ठाकरे और खुद राज ठाकरे आगे बढ़ा रहे हैं।
🔹 “चुनावी नतीजों से ही किसी दल की सफलता नहीं आंक सकते”
हालांकि, राज ठाकरे की पार्टी MNS को पिछले कुछ चुनावों में खास सफलता नहीं मिली, लेकिन उनका कहना है कि:
“सिर्फ चुनावी नतीजों से ही किसी पार्टी की सफलता का आकलन नहीं किया जाना चाहिए। मेरे कार्यकर्ता जनता के मुद्दों को लेकर लगातार काम कर रहे हैं, जिस पर मुझे गर्व है।”
🔹 सुप्रिया सुले ने भी दी समर्थन की आवाज
राज ठाकरे के बयान को समर्थन देते हुए एनसीपी (शरद पवार गुट) की कार्यकारी अध्यक्ष और पवार की बेटी सुप्रिया सुले ने कहा:
“बाला साहेब ठाकरे और मेरे पिता शरद पवार ने देशभर में अपनी एक खास पहचान बनाई है। उनके द्वारा तैयार की गई विरासत आज भी लोगों के दिलों में जीवित है।”
🔹 क्या फिर एकजुट होंगे एनसीपी के दोनों गुट?
राजनीतिक हलकों में इस बात की भी चर्चा जोरों पर है कि:
- एनसीपी के शरद पवार और
- डिप्टी सीएम अजित पवार के नेतृत्व वाले दोनों गुट
आगामी चुनाव से पहले एक बार फिर एकजुट हो सकते हैं।
यह अनुमान इसलिए भी लगाया जा रहा है क्योंकि विपक्ष में बैठने वाले गुटों की चुनावी मजबूरियां और सत्ता की समीकरण लगातार बदल रहे हैं।
🔹 ठाकरे और पवार ब्रांड: सिर्फ नाम नहीं, महाराष्ट्र की पहचान
- ठाकरे नाम मराठी अस्मिता, हिन्दुत्व और जनआंदोलनों से जुड़ा है।
- वहीं पवार नाम ग्रामीण राजनीति, कृषि नीति और सत्ताधारी गठबंधनों की धुरी रहा है।
इन दोनों ब्रांडों को खत्म करना सिर्फ नाम बदलने जितना आसान नहीं, क्योंकि ये महाराष्ट्र की राजनीतिक चेतना का अभिन्न हिस्सा हैं।