by: vijay nandan
TamilNadu: तिरुपरंकुंद्रम पहाड़ी पर कार्तिगई दीपम प्रज्वलन को लेकर चल रहे विवाद पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत का महत्वपूर्ण बयान सामने आया है। उन्होंने साफ कहा कि राज्य के हिंदू इस मुद्दे को खुद सुलझाने की क्षमता रखते हैं और हालात की मांग होने पर ही आरएसएस दखल देगा। आरएसएस के स्थापना शताब्दी कार्यक्रम के दौरान पत्रकारों ने जब पूछा कि क्या इस मामले को राष्ट्रीय स्तर पर उठाने की आवश्यकता है, तो भागवत ने कहा कि यह मामला फिलहाल न्यायालय में है। उसे कानूनी रूप से सुलझने दीजिए। अगर आवश्यकता पड़ी तो संगठन अवश्य विचार करेगा।
TamilNadu:हिंदू समाज में जागृति बढ़ रही है: संघ प्रमुख
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने यह भी कहा कि तमिलनाडु में हिंदू समाज में जागृति बढ़ रही है और वही इस विवाद में निर्णायक भूमिका निभाएगा। उनके अनुसार, “राज्य के हिंदुओं का जागरण अपने आप में समाधान का मार्ग प्रशस्त कर रहा है। मुझे विश्वास है कि परिणाम हिंदू समुदाय के पक्ष में ही आएगा। यदि आगे जरूरत होगी तो स्थानीय संगठन हमें अवगत कराएंगे।”

विवाद क्या है?
तिरुपरंकुंद्रम पहाड़ी पर स्थित पत्थर के दीपस्तंभ पर कार्तिगई दीपम जलाने की अनुमति मद्रास हाई कोर्ट की मदुरै पीठ ने दी थी। लेकिन डीएमके सरकार ने इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है। विपक्षी दलों ने इस फैसले को लेकर जस्टिस जी.आर. स्वामीनाथन के खिलाफ महाभियोग का नोटिस भी दिया है। यह विवाद स्थानीय धार्मिक परंपराओं, प्रशासनिक अनुमति और राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप के कारण लगातार बढ़ता जा रहा है।
2025 में संघ प्रमुख के बड़े बयान: समाज, राष्ट्र और संस्कृति पर व्यापक संकेत
वर्ष 2025 राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण रहा, क्योंकि संगठन अपने शताब्दी वर्ष के करीब है और देश के सामाजिक–राजनीतिक वातावरण में अनेक नई बहसें आकार ले रही हैं। इस दौरान संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कई ऐसे बड़े बयान दिए, जिनकी चर्चा राष्ट्रीय स्तर पर होती रही और जिनसे संघ की आगामी दिशा का संकेत भी मिलता है।
सबसे चर्चित बयान तमिलनाडु के कार्तिगई दीपम विवाद पर आया, जिसमें भागवत ने कहा कि तमिलनाडु के हिंदू अब स्वयं जागृत हैं और अपनी परंपराओं की रक्षा करने में सक्षम हैं। उनका स्पष्ट संदेश था कि जहाँ समाज स्वयं खड़ा हो रहा है, वहाँ आरएसएस केवल आवश्यकता पड़ने पर ही हस्तक्षेप करेगा। उन्होंने यह भी जोड़ा कि यह विवाद अंततः हिंदू समाज के पक्ष में ही सुलझेगा। इस बयान को दक्षिण भारत में बढ़ती सामाजिक चेतना और धार्मिक–सांस्कृतिक दावों के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण संकेत माना गया।
इसके अलावा, भागवत ने वर्ष 2025 में शिक्षा, सामाजिक समरसता और राष्ट्रवाद पर भी कई प्रमुख वक्तव्य दिए। उन्होंने नई पीढ़ी में “व्यावहारिक राष्ट्रधर्म” को विकसित करने पर जोर देते हुए कहा कि भारत की शक्ति उसकी विविधता और एकता के सहअस्तित्व में निहित है। उन्होंने यह भी कहा कि वैचारिक मतभेद लोकतंत्र की जीवंतता का हिस्सा हैं, लेकिन समाज को टकराव नहीं, संवाद की राह चुननी चाहिए।
महिला सुरक्षा और भागीदारी पर भी भागवत का रुख स्पष्ट रहा। उन्होंने कहा कि भारतीय समाज तब तक संतुलित नहीं हो सकता जब तक महिलाओं को हर क्षेत्र में समान अवसर न मिले। स्वावलंबन और सम्मान आधारित सामाजिक संरचना बनाने का संदेश उन्होंने कई मंचों पर दोहराया।
पर्यावरण और जल संरक्षण के मुद्दे पर भी उन्होंने संघ की भूमिका को रेखांकित किया। भागवत के अनुसार, विकास तभी टिकाऊ है जब प्रकृति के साथ संतुलन कायम रखा जाए और समाज को “उपभोग आधारित जीवनशैली” से बचते हुए “जिम्मेदार जीवनशैली” अपनानी चाहिए।
साल 2025 में दिए गए ये बयान इस बात को दर्शाते हैं कि संघ प्रमुख केवल राजनीतिक घटनाओं पर टिप्पणी नहीं कर रहे, बल्कि भारतीय समाज के दीर्घकालिक भविष्य को ध्यान में रखते हुए एक व्यापक सामाजिक–सांस्कृतिक दृष्टि प्रस्तुत कर रहे हैं।





