मुस्लिम कलाकारों ने निभाए राम और सीता के किरदार
BY: VIJAY NANDAN
- कराची कला परिषद के मंच पर रामायण का भव्य मंचन
- पूरी टीम मुस्लिम कलाकारों की, फिर भी पौराणिक भावों की जीवंत अभिव्यक्ति
- निर्देशक योशेवर करेरा को मिला जबरदस्त समर्थन, मिलीं तारीफ़ें
- आलोचकों ने लाइटिंग, संगीत और अभिनय को बताया “टॉप-नॉच”
- कार्यक्रम ने दिखाया कि पाकिस्तान का समाज अपेक्षा से कहीं अधिक सहिष्णु
कराची में रामायण की रंगीन दस्तक
जब आप “पाकिस्तान में रामायण का मंचन” जैसी हेडलाइन पढ़ते हैं, तो पहला भाव अक्सर हैरानी का होता है। पर कराची के बीचों‑बीच, कला परिषद के सभागार में जो हुआ, उसने इस हैरानी को खुशी में बदल दिया। ‘मौज’ नाम के स्थानीय ड्रामाटिक ग्रुप ने सप्ताहांत पर रामायण को नए सिरे से जिया—और देखते‑देखते यह प्रस्तुति सुर्खियों में छा गई।
Performance of Ramayan in Karachi, Pakistan pic.twitter.com/6kciamWJap
— Sabahat Zakariya (@sabizak) July 13, 2025
मुस्लिम कलाकारों की टोली ने लिखी अनोखी कहानी
सभी कलाकार मुस्लिम पृष्ठभूमि से थे—यही इस शो की सबसे बड़ी यूएसपी बन गई।
- राणा काज़मी ने सीता की कोमलता को बड़े सहज अंदाज़ में जिया।
- अश्मन लालवानी भगवान राम बने, और उनकी दृढ़ मुस्कान पर तालियाँ थमने का नाम नहीं ले रहीं।
इस टीम ने साबित कर दिया कि धर्म और कला की सीमाएँ अलग‑अलग बातें हैं—जहाँ भाव प्रधान है, वहाँ पहचान गौण हो जाती है।

निर्देशक योशेवर करेरा का आत्मविश्वास
कराची के युवा निर्देशक योशेवर करेरा मानते हैं,
“मुझे कभी नहीं लगा कि लोग नापसंद करेंगे या कोई खतरा होगा। इसके उलट, रिस्पॉन्स इतना ऊर्जावान रहा कि हम सब अभिभूत हैं।”
उनके शब्द इस बात का प्रमाण हैं कि पाकिस्तानी समाज में सहिष्णुता की जड़ें गहरी हैं—शायद उतनी ही गहरी, जितनी हमारी धारणाएँ नहीं मानतीं।
आलोचकों की तालियाँ, कला के हर पहलू की सराहना
जाने‑माने फिल्म और कला समीक्षक ओमैर अल्वी ने लिखा:
- “शो की लाइटिंग, संगीत और रंग योजना ने पूरा माहौल दिव्य बना दिया। कहानी कहने की ईमानदारी ने मन जीत लिया।”
सीधे‑सीधे कहें तो इस मंचन ने कला‑प्रेमियों को वही दिलचस्पी और गुणवत्ता दी जिसकी तलाश थी।
क्यों अहम है यह मंचन?
- धार्मिक सौहार्द: बहुसंख्यक मुस्लिम देश में हिंदू महाकाव्य की खुले मंच पर प्रस्तुति एक साहसी और सकारात्मक संदेश देती है।
- संस्कृतिक सेतु: रामायण जैसा महाकाव्य सदियों से दक्षिण‑एशिया की सांझी विरासत रहा है; इस मंचन ने वही साझा धागा फिर से मजबूत किया।
- पाकिस्तान की बदलती छवि: अक्सर सुरक्षा और कट्टरता की खबरों में घिरे पाकिस्तान के लिए यह घटना सहिष्णुता का प्रतीक बन गई।
कला की भाषा सीमा तोड़ने की ताकत
कराची की इस पहल ने साफ कर दिया है कि कला की भाषाएँ सीमाएँ तोड़ सकती हैं। उम्मीद की जा रही है कि ‘मौज’ जल्द ही लाहौर और इस्लामाबाद में भी रामायण ले जाएगा, ताकि और लोग इस सांस्कृतिक संगम का हिस्सा बन सकें।
कराची का यह रामायण‑मंचन सिर्फ एक नाटक नहीं, संभावनाओं का उत्सव है—जहाँ कलाकारों ने साबित किया कि साझा संस्कृति का दीपक चाहे जितनी भी आँधियाँ आए, बुझता नहीं। अगर आप “पाकिस्तान में हिंदू संस्कृति”, “कराची में रामायण”, या “मुस्लिम कलाकारों द्वारा रामायण” जैसे सवाल खोज रहे हैं, तो यह कहानी आपके सारे संदेह मिटा देगी।
और हाँ, अगली बार जब किसी समारोह में “सहिष्णुता” पर बहस छिड़े, तो कराची का यह रंगमंचीय चमत्कार याद करिए—क्योंकि कला जब बोलती है, तो इंसानियत खुलकर तालियाँ बजाती है।