BY: MOHIT JAIN
सुप्रीम कोर्ट ने गौतम अडानी के बड़े भाई,अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड के एमडी राजेश अडानी और कंपनी के वाइस प्रेसिडेंट समीर वोरा को नोटिस जारी किया है। यह नोटिस सीमा शुल्क विभाग की याचिका पर आया है, जिसमें सर्विस टैक्स ट्रिब्यूनल के हालिया आदेश को चुनौती दी गई थी। ट्रिब्यूनल ने विभाग के नोटिस और कंपनी के खिलाफ कार्यवाही को रद्द कर दिया था।
याचिका में क्या आरोप लगाए गए हैं?

सीमा शुल्क विभाग ने आरोप लगाया है कि अडानी एंटरप्राइजेज ने 2008 और 2010 के बीच ड्यूटी का भुगतान किए बिना लगभग 31,219.79 किलोग्राम चांदी और 25,432.84 किलोग्राम सोने की छड़ें आयात कीं। इससे लगभग 49.77 करोड़ रुपए का शुल्क घाटा हुआ।
दिव्य विभाग ने कहा कि अडानी एंटरप्राइजेज ने इंक्रीमेंटल एक्सपोर्ट प्रमोशन स्कीम का गलत इस्तेमाल किया। डीजीएफटी से शुल्क-मुक्त ऋण पात्रता प्रमाणपत्र (DFCE) लिया गया, जबकि उनका निर्यात सोने और चांदी से संबंधित नहीं था।
किस तरह किया गया फ्रॉड?
डीजीएफटी ने 2003-04 में इंक्रीमेंटल एक्सपोर्ट प्रमोशन स्कीम शुरू की थी। इसके तहत निर्यातकों को उनके कुल इंक्रीमेंटल एक्सपोर्ट के 10% तक शुल्क क्रेडिट मिलता था, बशर्ते पिछले वर्ष की तुलना में निर्यात में कम से कम 25% की वृद्धि हो।
सीमा शुल्क विभाग का कहना है कि अडानी एंटरप्राइजेज ने DFCE लाइसेंस का इस्तेमाल करते हुए ड्यूटी-फ्री उत्पाद आयात किए, लेकिन उनके निर्यात उत्पादों का सोने और चांदी से कोई संबंध नहीं था। विभाग ने स्पष्ट किया कि ऐसी छड़ें हीरे के निर्यात के लिए इनपुट या पुनःपूर्ति के रूप में नहीं मानी जा सकतीं।

सुप्रीम कोर्ट में पेश हुई याचिका
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एन. वेंकटरमन ने कोर्ट में बताया कि न्यायाधिकरण ने अडानी के खिलाफ कार्यवाही रद्द कर दी थी, जो गलत है। उन्होंने आगे कहा कि अडानी ने जानबूझकर गलत बयानी और तथ्यों को छिपाकर डीजीएफटी से DFCE प्रमाणपत्र प्राप्त किए।
विभाग का तर्क
सीमा शुल्क विभाग का तर्क है कि अडानी एंटरप्राइजेज ने योजना का दुरुपयोग कर सोने और चांदी की छड़ें ड्यूटी फ्री आयात कीं, जबकि उनका निर्यात उत्पाद इनसे संबंधित नहीं था। इसलिए उन्हें शुल्क का भुगतान करना था।