आंध्र प्रदेश के डिप्टी सीएम और फिल्म अभिनेता पवन कल्याण ने हाल ही में हिंदी भाषा को लेकर ऐसा बयान दिया, जिसने दक्षिण भारत में एक नई बहस को जन्म दे दिया है। पवन कल्याण ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि हिंदी हमारी ‘बड़ी मां’ जैसी है और हमें इसे अपनाना चाहिए। इस बयान पर अभिनेता प्रकाश राज ने तीखी प्रतिक्रिया दी और पवन कल्याण की नीयत पर सवाल उठाए।
प्रकाश राज का तीखा हमला: “किस कीमत पर खुद को बेचा?”
प्रकाश राज ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर पवन कल्याण का वीडियो शेयर करते हुए लिखा:
“बस पूछ रहा हूं… किस कीमत पर खुद को बेचा? शर्मनाक है।”
उन्होंने इस पोस्ट के साथ तेलुगु में भी प्रतिक्रिया दी और कहा:
“ఈ range కి అమ్ముకోవడమా ….ఛి…ఛీ…” (क्या इतनी सस्ती कीमत पर खुद को बेच दिया?)
यह ट्वीट सोशल मीडिया पर वायरल हो गया और हजारों लोगों ने इस पर अपनी राय रखी।
क्या कहा था पवन कल्याण ने?
पवन कल्याण ने हैदराबाद में आयोजित ‘दक्षिण संवाद’ कार्यक्रम में कहा:
- “तेलुगु हमारी मातृभाषा है, लेकिन हिंदी राष्ट्रीय एकता की भाषा है।”
- “जब हम घर में होते हैं, तो तेलुगु बोलते हैं, लेकिन जब बॉर्डर पार करते हैं, तो हिंदी हमारे साथ होती है।”
- “हिंदी जोड़ने वाली भाषा है, यह हमारी कमजोरी नहीं बल्कि ताकत है।”
- “हिंदी हमारी बड़ी मां जैसी है। हमें मलयालम, तमिल, तेलुगु जैसी भाषाओं का सम्मान करना चाहिए।”
यह बयान गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग द्वारा आयोजित कार्यक्रम में दिया गया था।
पुराना विवाद फिर से गर्माया
यह पहला मौका नहीं है जब पवन कल्याण और प्रकाश राज आमने-सामने आए हैं।
इससे पहले मई 2025 में पवन कल्याण ने तमिलनाडु के नेताओं पर हिंदी भाषा का विरोध करने पर सवाल उठाए थे, जिस पर प्रकाश राज ने प्रतिक्रिया दी थी:
“पवन कल्याण अपनी हिंदी हम पर न थोपें। यह हमारे कल्चर और स्वाभिमान की रक्षा की बात है।”
सोशल मीडिया पर लोगों की प्रतिक्रियाएं
- कुछ लोग पवन कल्याण के विचारों का समर्थन कर रहे हैं और मानते हैं कि भारत में एक कॉमन भाषा की जरूरत है।
- दूसरी ओर, कुछ लोग इसे हिंदी थोपने की कोशिश मान रहे हैं और क्षेत्रीय भाषाओं की स्वतंत्रता को प्राथमिकता देने की मांग कर रहे हैं।
निष्कर्ष: भाषा से जुड़ी राजनीति या राष्ट्रीय एकता की बात?
पवन कल्याण का यह बयान सिर्फ एक भाषण नहीं था, बल्कि यह राजनीतिक और सांस्कृतिक विमर्श की एक नई परत को खोलता है।
भारत जैसे विविधता भरे देश में भाषा का मुद्दा हमेशा संवेदनशील रहा है।
जहां एक ओर हिंदी को एकता की भाषा बताया जाता है, वहीं दूसरी ओर दक्षिण भारत में इसे थोपे जाने का डर भी बना रहता है।
प्रकाश राज का सवाल और पवन कल्याण का जवाब — यह विवाद आने वाले समय में और बड़ा रूप ले सकता है।