दिल्ली: वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर केंद्र सरकार एक्शन मोड में आ गई है। संसद के शीतकालीन सत्र के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय कैबिनेट की अहम बैठक हुई मोदी कैबिनेट ने इसके प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी है। अगले हफ्ते बिल संसद में पेश किया जा सकता है। सरकार बिल पर आम सहमति बनाना चाहती है। इस बिल पर व्यापक चर्चा के लिए इसे संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजा जा सकता है। माना जा रहा है कि, बिल को मंज़ूरी मिल जाती है तो 2029 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव साथ-साथ होंगे। पीएम मोदी वन नेशन वन इलेक्शन का हमेशा समर्थन करते आए हैं। पीएम मोदी का कहना है कि, चुनाव में काफी वक्त बर्बाद होता है, कुछ महीनों के अंतराल से किसी ना किसी प्रदेश में चुनाव होते हैं। वन नेशन वन इलेक्शन के बाद विकास की गति को भी रफ्तार मिलेगी।
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की समिति ने सौंपी रिपोर्ट
वन नेशन वन इलेक्शन पर विचार के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में 2 सितंबर 2023 को एक पैनल बनाया गया था। इस पैनल ने स्टेकहोल्डर्स- एक्सपर्ट्स से चर्चा करने के बाद 191 दिन की रिसर्च के बाद 14 मार्च को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी।
वन नेशन वन इलेक्शन के लाभ
1. धन और समय की बचत होगी
2.प्रशासनिक व्यवस्था ठीक रहेगी
3.सुरक्षा बलों पर तनाव कम होगा
4.चुनाव प्रचार में ज़्यादा समय मिल सकेगा
5.विकास कार्यों को गति मिल सकेगी
6.चुनाव के कारण सरकारी कार्यों में होने वाली बाधा कम होगी।
भारत में वन नेशन वन इलेक्शन का इतिहास
एक देश एक चुनाव का विचार 1983 से चला आ रहा है, जब चुनाव आयोग ने पहली बार इस पर विचार किया था, हालांकि, 1967 तक, भारत में एक साथ चुनाव कराना एक आदर्श नियम था। लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के लिए पहला आम चुनाव 1951-52 में एक साथ आयोजित किया गया था। यह प्रथा 1957, 1962 और 1967 में हुए तीन आम चुनावों में भी जारी रही। हालांकि, 1968 और 1969 में कुछ विधानसभाओं के समय से पहले भंग होने के कारण यह चक्र बाधित हो गया और उसके बाद ये परंपरा बदल गई।