रिपोर्टर: आज़ाद सक्सेना
छत्तीसगढ़ के बैलाडीला स्थित लौह अयस्क खदान क्रमांक 11सी में पिछले साल 21 जुलाई को आई भीषण बारिश ने तबाही मचा दी थी। खदान का बंड टूटने से लौह अयस्क का महीन चूर्ण — जिसे ब्लू डस्ट कहा जाता है — नगर की ओर बहकर भारी नुकसान का कारण बना था। एनएमडीसी को इस घटना के बाद करीब 4.50 करोड़ रुपये का मुआवजा देना पड़ा था और सफाई कार्य के लिए सैकड़ों मजदूरों को लगाया गया था।
लेकिन इस बार कहानी कुछ और है। एनएमडीसी प्रबंधन ने पिछली आपदा से सबक लेते हुए युद्धस्तर पर तैयारियाँ शुरू कर दी हैं। खदान को दो हिस्सों में बाँटा गया है ताकि वर्षाजल के बहाव को नियंत्रित किया जा सके। जगह-जगह लंबे-चौड़े नाले, 40 और 15 मीटर के कलवर्ट बॉक्स, और इंटेक वेल तक डायवर्शन की व्यवस्था की गई है ताकि 65% पानी धोभिघाट और हरीघाटी होते हुए इंटेक वेल तक पहुँच सके।
जहां से पिछली बार बंड टूटा था, वहाँ अब 50 मीटर चौड़ा और 8 मीटर ऊँचा सुरक्षा वॉल तैयार किया गया है, जिसमें लोहे की जाली और बड़े पत्थरों का इस्तेमाल हुआ है। साथ ही, खदान के नीचे दो तालाब नुमा सम गड्ढे बनाए गए हैं ताकि अगर बारिश के साथ ब्लू डस्ट आता है तो वह वहीं ठहर जाए। जब ये गड्ढे भर जाएँ, तो पानी निकालने के लिए हाई-पावर पंप भी लगाए जा रहे हैं।
चेक डेम नंबर 6 को पूरी तरह खाली कर, उसके नीचे लंबी चौड़ी रिटर्निंग वॉल बनाई गई है ताकि पहाड़ियों से आने वाला लोहा चूर्ण और बड़े पत्थर वहीं रुक सकें।
एनएमडीसी के मुख्य महाप्रबंधक संजीव साही स्वयं इस पूरे कार्य की निगरानी कर रहे हैं। आधा दर्जन से अधिक ठेकेदार और मशीनें दिन-रात काम में जुटी हैं।
एनएमडीसी का कहना है कि भले ही बारिश कब और कितनी होगी, यह इंसान के हाथ में न हो — लेकिन उससे निपटने की तैयारी इंसान के हाथ में जरूर है। इस बार की रणनीति और तैयारी से उम्मीद है कि बैलाडीला क्षेत्र ऐसी तबाही से सुरक्षित रहेगा।