by: vijay nandan
भोपाल: करवा चौथ का व्रत भारतीय संस्कृति में प्रेम, आस्था और समर्पण का प्रतीक माना जाता है। हर साल कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाने वाला यह पर्व सुहागिन महिलाओं के लिए बेहद विशेष होता है। इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु, सुख-समृद्धि और स्वस्थ जीवन की कामना करते हुए निर्जला उपवास रखती हैं। सुबह सरगी से शुरू होकर शाम को चांद के दर्शन और अर्घ्य देने के बाद व्रत का समापन होता है। करवा चौथ केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह वैवाहिक रिश्ते में प्रेम और विश्वास की अटूट डोर को और मजबूत करने वाला पावन उत्सव है।

इस वर्ष करवा चौथ का व्रत शुक्रवार, 10 अक्टूबर 2025 को रखा जाएगा। सुहागिन महिलाएं इस दिन अपने पति की लंबी आयु, सुख-समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य की कामना करते हुए निर्जला व्रत रखती हैं।
शुभ मुहूर्त और व्रत का समय
- पूजन का शुभ समय: शाम 5:57 बजे से 7:11 बजे तक
- पूजा अवधि: 1 घंटा 14 मिनट
- व्रत का समय: सुबह 6:19 बजे से रात 8:13 बजे तक
- कुल व्रत अवधि: 13 घंटे 54 मिनट
- चंद्रोदय का समय: शाम 8:13 बजे (शहर के अनुसार कुछ मिनट का अंतर संभव)
इस वर्ष करवा चौथ पर ‘सिद्धि योग’ और ‘शिववास योग’ बन रहा है, जिसे पूजा के लिए अत्यंत शुभ माना गया है।
करवा चौथ की पूजा विधि
- सुबह जल्दी स्नान कर नए वस्त्र धारण करें।
- करवा चौथ व्रत का संकल्प लें और यह मंत्र पढ़ें –
“मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये कर्क चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।” - शाम के समय करवा में जल भरकर गणेश जी, भगवान शिव, माता पार्वती और चौथ माता की पूजा करें।
- करवा चौथ की कथा सुनें या पढ़ें।
- माता पार्वती को श्रृंगार की वस्तुएं अर्पित करें।
- चंद्रोदय के बाद चंद्रमा को अर्घ्य दें और पति के हाथ से पानी पीकर व्रत खोलें।
- व्रत के बाद बड़ों का आशीर्वाद अवश्य लें।
- ‘करवा चौथ’ का अर्थ और प्रतीक
“करवा” मिट्टी का बर्तन होता है, जिसमें जल भरा जाता है। यह स्त्री के प्रेम, समर्पण और निष्ठा का प्रतीक माना जाता है। प्राचीन काल से ही मिट्टी के पात्र धार्मिक अनुष्ठानों में पवित्र माने जाते रहे हैं। पूजा में दो करवे बनाए जाते हैं, जिन पर स्वस्तिक चिन्ह बनाकर रक्षा सूत्र बांधा जाता है।
चंद्रमा की पूजा का महत्व
हिंदू मान्यता के अनुसार चंद्रमा आयु, शांति और सौभाग्य का कारक है। इसलिए सुहागिन महिलाएं चंद्रदेव को अर्घ्य देकर अपने पति की दीर्घायु और वैवाहिक सुख की कामना करती हैं।

करवा चौथ की परंपराएं
सोलह श्रृंगार: महिलाएं इस दिन मेहंदी, चूड़ी, बिंदी, सिंदूर, गहने और लाल या गुलाबी वस्त्र पहनती हैं।
कथा वाचन: व्रत के दौरान करवा चौथ की कथा सुनी जाती है, जो नारी शक्ति और प्रेम के प्रतीक की कहानी है।
चंद्र अर्घ्य: चांद को अर्घ्य देने के बाद महिलाएं पति के हाथ से जल ग्रहण कर व्रत का समापन करती हैं।
करवा चौथ की पौराणिक कथा
कहते हैं देव-दानव युद्ध के समय देवताओं की पत्नियों ने अपने पतियों की रक्षा के लिए कर्क चतुर्थी के दिन व्रत रखा था। उनकी सच्ची भावना से प्रसन्न होकर ब्रह्मदेव ने उन्हें आशीर्वाद दिया और देवताओं को विजय प्राप्त हुई। तभी से करवा चौथ व्रत की परंपरा आरंभ हुई।
राशि अनुसार दान के उपाय
राशि | क्या दान करें | लाभ |
---|---|---|
मेष | लाल वस्त्र या रुमाल | मंगल ग्रह मजबूत |
वृषभ | गुलाबी चूड़ियाँ | प्रेम और सौहार्द बढ़ेगा |
मिथुन | मेहंदी | रिश्तों में मिठास |
कर्क | सिंदूर | वैवाहिक स्थिरता |
सिंह | पायल | आत्मविश्वास और सफलता |
कन्या | फूल | सकारात्मक ऊर्जा |
तुला | आलता | सौंदर्य और आकर्षण |
वृश्चिक | लाल चुनरी | शक्ति और सौभाग्य |
धनु | पीली साड़ी | समृद्धि और संतोष |
करवा चौथ सिर्फ व्रत नहीं, बल्कि प्रेम, निष्ठा और आस्था का उत्सव है। यह दिन पति-पत्नी के रिश्ते में विश्वास और समर्पण को गहराता है। चांद के दर्शन के साथ ही हर सुहागिन के चेहरे पर मुस्कान और मन में संतोष झलकता है।