हिमालय में आंदोलन नेपाल का संकेत या संयोग ?
BY: VIJAY NANDAN
भारत के लद्दाख क्षेत्र में हाल ही में जो अशांति फैली है, जिसमें राज्य का दर्जा, नौकरियों के कोटा, स्थानीय स्वशासन आदि की मांग की जा रही है, वह सिर्फ एक स्थानीय आंदोलन नहीं बल्कि एक संकेत हो सकता है कि देश में युवा वर्ग, विशेषकर Gen Z, राजनीतिक व सामाजिक अधिकारों के प्रति सजग हो रहा है। इस लेख में हम लद्दाख, नेपाल तथा अन्य देशोँ के Gen Z आंदोलनों का तुलनात्मक दृश्य पेश करेंगे कि क्या ये आंदोलन एक दूसरे से प्रेरित हैं, उनकी समानताएँ और भिन्नताएँ क्या हैं।
लद्दाख का हाल और उत्पत्ति
- मामला क्या है: लद्दाख, जिसे 2019 में जम्मू-कश्मीर से अलग केंद्रीय शासित प्रदेश बनाया गया था, वहां के लोग अब राज्य का दर्जा देने तथा छठी अनुसूची (Sixth Schedule) के अंतर्गत स्वायत्त स्थानीय शासन की माँग कर रहे हैं।
- हिंसक संघर्ष: विरोध प्रदर्शन शांतिपूर्ण शुरुआत के बाद हिंसक हो गया। सरकारी कार्यालयों को आग लगाने, वाहनों को नुकसान पहुँचाने, पुलिस के साथ भिड़ंत आदि के मामलों में चार लोगों की मौत हुई, दर्जनों घायल हुए। संवेदनशील जगहों पर कर्फ्यू लगाया गया, सामाजिक गतिविधियाँ ठप पड़ीं।
- मांगें: राज्य का दर्जा, स्थानीय जनप्रतिनिधियों को अधिक अधिकार, नौकरी और विकास के अवसर, पर्यावरण संरक्षण आदि।
नेपाल में Gen Z आंदोलन, प्रेरणा या समान कारण ?
- ट्रिगर: नेपाल में हालिया “Gen Z आंदोलन” की शुरुआत सरकार द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स (जैसे फेसबुक, इंस्टाग्राम, X, WhatsApp आदि) को बंद करने के फैसले से हुई। ये निर्णय युवा वर्ग द्वारा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर नियंत्रण के रूप में देखा गया।
- विस्तार: बंदी विरोध प्रदर्शनों से बढ़कर पूजास्थलों, सरकारी भवनों और राजनीतिक प्रतिष्ठानों पर विरोध और हिंसा में तब्दील हुए। लाखों युवा सड़कों पर आये, छात्रों ने यूनिफॉर्म पहन कर आंदोलन में भाग लिया।
- मांगें: सोशल मीडिया खोलने की माँग, भ्रष्टाचार और राजनीति में पारदर्शिता की उम्मीद, नौकरियों और अवसरों की कमी आदि मुद्दे मुख्य थे।
#WATCH | Ladakh: Main market of Leh wears a deserted look and shops remain closed a day after violence in the city. Prohibitions under Section 163 of BNSS have been imposed in Leh, the assembly of five or more persons is banned. pic.twitter.com/GHH3IMuHDK
— ANI (@ANI) September 25, 2025
समानताएँ और अंतर
- युवा नेतृत्व और Gen Z की भागीदारी
नेपाल की तरह लद्दाख में भी युवा सक्रिय रूप से प्रदर्शन कर रहे हैं। Sonam Wangchuk जैसे युवा नेता प्रमुख हैं। इंटरनेट, सोशल मीडिया और डिजिटल सूचना संसाधन आंदोलन को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। - कार्य और अवसरों की कमी
युवा वर्ग में बेकारी, रोजगार की अनिश्चितता, अवसरों की कमी जैसी समस्याएँ दोनों स्थानों पर सामने आई हैं। ये टीका की तरह स्थानीय प्रशासन और केंद्र सरकार की नीतियों पर असंतोष जगा रही हैं। - मांगों में राजनीतिक प्रतिनिधित्व और पारदर्शिता
लद्दाख के आंदोलन में राज्य दर्जा, स्वशासन की माँग और नौकरियों / स्थानीय प्रशासन में न्याय और हिस्सेदारी पर जोर है। नेपाल में पारदर्शिता, भ्रष्टाचार-रोध और जवाबदेही की माँग प्रमुख हैं। - संभावित हिंसात्मक मोड़
दोनों आंदोलनों में शुरुआत शांतिपूर्ण रूप से हुई, लेकिन जब संवाद नहीं हुआ या माँगें अनसुनी रही, तो हिंसा हुई। लद्दाख में कर्फ्यू लगे, रिपोर्ट में सरकारी मुकदमों का हवाला है। नेपाल में पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच टकराव, बल प्रयोग आदि हुए।

काम करने के तरीके में फर्क
- स्थानीय प्रशासनिक व संवैधानिक संरचना
लद्दाख पहले से ही एक संवेदनशील भू–राजनीतिक क्षेत्र है जहाँ छठी अनुसूची और राज्य दर्जे जैसे संवैधानिक प्रावधान की माँग है। नेपाल में राजनीतिक प्रणाली लोकतांत्रिक है, लेकिन सरकार के लगातार बदलते गठजोड़ों पर जनता की अशांति। - प्रेरणा स्रोत
नेपाल में सोशल मीडिया प्रतिबंध ने युवाओं को आग लगा दी; लद्दाख में यह राज्य योग्यता, संसाधनों की न्यायपूर्ण बाँट और स्थानीय विकास की उम्मीदें हैं। सोशल मीडिया वहाँ भी है, लेकिन ट्रिगर मुख्यतः नौकरी, भूमि अधिकार, पर्यावरण और नागरिक अधिकारों से जुड़ा है। - भौगोलिक/पर्यावरणीय दबाव
लद्दाख जहाँ हिमालय का हिस्सा है, जलवायु परिवर्तन, ग्लेशियर पिघलना, पर्यावरणीय दबाव और सीमावर्ती क्षेत्र होने के कारण बाहरी सुरक्षा, पर्यटन, जीवन जगत की चुनौतियाँ ज्यादा। नेपाल में अधिकांश समस्याएँ शहरी जीवन, युवा बेरोजगारी, असमानता और सरकारी जवाबदेही से जुड़ीं।
क्या ये आंदोलन नेपाल से प्रेरित है?
“प्रेरणा” शब्द थोड़ा जटिल है। अलग-अलग देशों में युवाओं की समान तीव्रता और डिजिटल सशक्तता एक वैश्विक ट्रेंड है। सोशल मीडिया, वैश्वीकरण, सूचना की त्वरित पहुँच ने युवा वर्ग को अधिक जागरूक किया है लेकिन:
- स्थानीय कारणों की अहमियत: हर आंदोलन की उत्पत्ति स्थानीय मुद्दों से होती है। लद्दाख के मामले में राज्य का दर्जा और संविधान की भूमिका, नेपाल में सोशल मीडिया प्रतिबंध और भ्रष्टाचार।
- समय का तालमेल: नेपाल आंदोलन सितंबर 2025 की शुरुआत में हुआ; लद्दाख आंदोलन भी इसी समय है। इसलिए कुछ प्रेरणा हो सकती है कि कैसे एक आंदोलन मीडिया पर कैसे दृश्य बन सकता है। लेकिन यह कहना जल्दी होगा कि लद्दाख ने नेपाल को देखा और उसी तरह किया।
हिमालय से संकेत: क्या देश के यूथ का मन अशांत हो रहा है ?
यह सच है कि हिमालयी क्षेत्रों से आवाजें उठ रही हैं, चाहे जलवायु परिवर्तन हो, सीमावर्ती सुरक्षा हो, संसाधन अधिकार हों या राज्य व्यवस्था का सवाल। लद्दाख जो कि सीमावर्ती और संवेदनशील क्षेत्र है, वो प्रदर्शित करता है कि जब केन्द्र सरकार या प्रशासन स्थानीय मांगों की अनदेखी करेगा, तो युवा वर्ग आंदोलन की राह अपनाएगा।
“जनक्रांति” शब्द थोड़ा भारी है, मगर ये कहा जा सकता है कि भारत के दूर-दराज़ हिमालयी इलाके, जिनकी आवाज अक्सर कम सुनी जाती है, अब राजनीतिक चेतना और अधिकार की मांग में सक्रिय हो रहे हैं।
चिंताएँ और जोखिम
- हिंसक मोड़: जैसा लद्दाख में हुआ। आंदोलन हिंसक हो गया, कुछ लोग मारे गये। इससे शासन द्वारा बल प्रयोग और नियन्त्रण बढ़ सकता है, और आंदोलन की लोकल सहमति प्रभावित हो सकती है।
- राजनीतिक अस्थिरता: जब केंद्र-राज्य या केंद्र-क्षेत्रीय सरकारों के बीच संवाद न हो, तो आंदोलन और ज्यादा संवेदनशील हो जाते हैं।
- भारत–चीन सीमा/सुरक्षा पहलू: हिमालयी क्षेत्र में सुरक्षा मुद्दे, पर्यावरणीय दबाव और सीमावर्ती आग्रह, ये सब मिलकर आंदोलन को और जटिल बनाते हैं।
प्रेरणा या संकेत?
लद्दाख और नेपाल के उदाहरण दिखाते हैं कि Gen Z सिर्फ देखा गया विषय नहीं हैष यह एक सक्रिय सामाजिक शक्ति है जो अधिकार, न्याय, अवसर और पारदर्शिता की मांग करती है।
नेपाल ने दिखा दिया कि सोशल मीडिया, जनसंख्या वृद्धि और युवाओं के असंतोष को तत्काल मक़सद दिए जाने पर आंदोलन में कैसे बदला जा सकता है। लद्दाख में भी स्थानीय लोगों की दृष्टि, सांस्कृतिक पहचान, राज्यवादी अधिकार आदि मुद्दे अब आक्रामक रूप से सामने आ रहे हैं।
भारत में हिमालयी प्रदेशों से उठती ये आवाज़ें साफ संकेत हैं कि युवा वर्ग कितना संवेदनशील और जागरूक है। लेकिन हर आंदोलन को सफल नहीं माने जा सकता जब तक कि माँगें स्पष्ट हों, संवाद खुला हो, हिंसा से दूरी बनी रहे, और स्थानीय व संवैधानिक तरीके से समाधान खोजे जाएँ।
सुझाव: क्या हो सकता है, बेहतर प्रतिक्रिया?
- संवाद और बातचीत: सरकार और स्थानीय प्रतिनिधियों के बीच स्पष्ट एवं नियमित संवाद हो।
- नौकरी, शिक्षा और अवसर: युवाओं को रोजगार और शिक्षा के अवसर बढ़ाए जाएँ ताकि निराशा कम हो।
- भ्रष्टाचार व पारदर्शिता: सार्वजनिक संस्थाओं में जवाबदेही सुनिश्चित हो।
- संविधान और कानूनी संरचना: यदि राज्य या छठी अनुसूची जैसी माँग हो रही हो, तो संविधान के प्रावधानों को देखें और वाजिब अधिकार दिए जाएँ।
- शांति और अहिंसात्मक आंदोलन: हिंसा से दूरी और शांतिपूर्ण तरीकों की मान्यता।
क्या ये आंदोलन “नेपाल से भारत आया Gen Z आंदोलन” है? दोष नहीं है, प्रेरणा हो सकती है, लेकिन यही कहना कि ऐसी लहर पूरी तरह से नेपाल से आई हो, तर्कसंगत नहीं लगेगा। हर क्षेत्र की अपनी स्थिति है, अपनी पीड़ा है। लेकिन ये ज़रूर है कि युवा वीर हैं । नारा नहीं, कार्रवाई मांग रहे हैं। हिमालय से उठ रही ये आवाज़ शायद भारत के भविष्य का संकेत है । जहाँ युवा संघर्ष कर रहे हैं सिर्फ पहचान और अधिकारों के लिए, न कि सिर्फ ध्यान आकर्षित करने के लिए।