BY: Yoganand Shrivastva
लखनऊ, उत्तर प्रदेश में 5000 से अधिक स्कूलों को मर्ज करने के योगी सरकार के फैसले को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने वैध करार दिया है। कोर्ट ने सीतापुर जिले के 51 छात्रों द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें स्कूल मर्जर योजना पर रोक लगाने की मांग की गई थी।
क्या है मामला?
उत्तर प्रदेश सरकार ने उन स्कूलों की पहचान की है जहां छात्रों की संख्या अत्यंत कम है। इन स्कूलों को नजदीकी प्राथमिक या उच्च प्राथमिक विद्यालयों में विलय (मर्ज) किया जाएगा और खाली स्कूल भवनों को बंद किया जाएगा। सरकार का तर्क है कि इससे संसाधनों का बेहतर उपयोग हो सकेगा और छात्रों को बेहतर शैक्षणिक माहौल मिलेगा।
कोर्ट का फैसला
न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की एकल पीठ ने इस मामले में 4 जुलाई को सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया था। 7 जुलाई को दिए गए निर्णय में कोर्ट ने सरकार के निर्णय को वाजिब और व्यावहारिक बताया। कोर्ट ने कहा कि कम छात्र संख्या वाले स्कूलों का विलय शिक्षा प्रणाली को मजबूत करने की दिशा में एक संरचनात्मक सुधार है।
याचिकाकर्ताओं की आपत्तियाँ
सीतापुर जिले के 51 छात्रों और अभिभावकों की ओर से दायर याचिका में कहा गया था कि स्कूल मर्जर से बच्चों के शिक्षा के अधिकार (Right to Education) का उल्लंघन होता है। उन्होंने तर्क दिया कि इससे खासकर ग्रामीण इलाकों के बच्चों को लंबी दूरी तय कर स्कूल जाना पड़ेगा, जिससे छात्र संख्या में और गिरावट आ सकती है। याचिका में यह भी कहा गया कि यह निर्णय 6 से 14 वर्ष की उम्र के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के संवैधानिक अधिकार का हनन करता है।
सरकार की दलील
सरकारी पक्ष ने अपने बचाव में बताया कि यह निर्णय नीति आधारित और डेटा-समर्थित है। सरकार ने उदाहरण देते हुए कहा कि प्रदेश के कुछ स्कूलों में तो एक भी छात्र नामांकित नहीं है, फिर भी वहां शिक्षक नियुक्त हैं और भवनों का रखरखाव किया जा रहा है, जिससे राजकोषीय और शैक्षणिक संसाधनों की बर्बादी हो रही है।
सरकार ने यह भी कहा कि बच्चों को पास के स्कूलों में समायोजित किया जाएगा और स्कूल बस/वाहन सुविधाएं भी मुहैया कराई जाएंगी, जिससे आने-जाने में असुविधा न हो।