रिपोर्ट- अरुण कुमार, एडिट- विजय नंदन
गोरखपुर: विजयदशमी के अवसर पर मुख्यमंत्री और गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ आज परंपरागत विशेष परिधान में गोरखनाथ मंदिर पहुंचे। यहाँ उन्होंने श्रीनाथ जी का विशेष पूजन-अनुष्ठान कर प्रदेश की सुख-समृद्धि की कामना की।
नाथपंथ की परंपरा का पालन करते हुए योगी आदित्यनाथ ने पूरे विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना की। इस दौरान मंदिर परिसर में स्थापित सभी प्रतिष्ठित देव विग्रहों का भी विशेष पूजन किया गया। गोरखनाथ मंदिर परिसर विजयदशमी के इस अवसर पर भक्तों और श्रद्धालुओं से भरा रहा। परंपरागत अनुष्ठान के साक्षी बनने के लिए सुबह से ही भारी संख्या में लोग मंदिर पहुंचे।

गोरखपीठ मठ: आध्यात्मिक शक्ति और नाथपंथ की धरोहर
गोरखपीठ मठ, जिसे आमतौर पर गोरखनाथ मंदिर कहा जाता है, उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में स्थित है। यह नाथपंथ का प्रमुख केंद्र है और इसकी स्थापना योगियों के आदिगुरु गुरु गोरखनाथ से जुड़ी मानी जाती है। यह मठ केवल एक धार्मिक स्थल ही नहीं बल्कि शिक्षा, सेवा और समाज सुधार की परंपरा का भी प्रतीक है। गोरखपीठ का महत्व इसलिए भी विशेष है क्योंकि यहाँ के पीठाधीश्वर को न केवल धार्मिक गुरु माना जाता है, बल्कि वे सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के केंद्र भी होते हैं। वर्तमान में इस मठ के पीठाधीश्वर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं।

- गोरखपीठ में विजयादशमी की परंपराएँ
गोरखनाथ मंदिर में विजयादशमी (दशहरा) का पर्व बेहद धूमधाम और पारंपरिक विधि-विधान से मनाया जाता है। यहाँ दशहरा केवल रावण-दहन तक सीमित नहीं है, बल्कि इसकी अपनी विशिष्ट परंपराएँ हैं। - विजयादशमी के दिन गोरक्षपीठाधीश्वर (मठाधीश) विशेष परिधान धारण करते हैं और श्रीनाथ जी के साथ-साथ मंदिर परिसर में स्थापित सभी देव विग्रहों का पूजन-अर्चन करते हैं। इस दौरान पूरे विधि-विधान और मंत्रोच्चार से पूजा संपन्न होती है।
- नाथपंथ की परंपरा के अनुसार, इस दिन शस्त्र पूजन भी किया जाता है। इसे धर्म और न्याय की रक्षा का प्रतीक माना जाता है।
- विजयादशमी के अवसर पर मंदिर परिसर में विशेष शोभायात्रा निकाली जाती है। भक्त और श्रद्धालु बड़ी संख्या में इसमें शामिल होते हैं।
यहाँ की दशहरा परंपरा बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक तो है ही, साथ ही यह नाथपंथ की शक्ति साधना, तपस्या और धर्म रक्षा की परंपरा को भी जीवित रखती है। यहाँ दशहरा धार्मिक अनुष्ठानों और नाथपंथ की परंपराओं पर आधारित है। मुख्यमंत्री और गोरक्षपीठाधीश्वर स्वयं इसमें शामिल होकर इसे और भी विशेष बना देते हैं। शस्त्र पूजन और विशेष अनुष्ठान इसे सामान्य दशहरे से अलग पहचान देते हैं।