आज हम बात करेंगे एक ऐसी खबर की, जो न सिर्फ हैरान करने वाली है, बल्कि हमें सोचने पर मजबूर करती है कि आखिर धर्म के नाम पर हिंसा क्यों? ये कहानी है पश्चिम बंगाल के एक स्कूल टीचर, साबिर हुसैन की, जिन्होंने पहलगाम आतंकी हमले के बाद एक बड़ा और साहसिक फैसला लिया है—उन्होंने इस्लाम छोड़ने का ऐलान किया है। लेकिन ये फैसला इतना आसान नहीं था, और इसके पीछे की वजहें हमें समाज के कुछ गहरे सवालों की ओर ले जाती हैं। तो चलिए, इस खबर को डिटेल में समझते हैं, जैसे मैं डीटेल में समझाता हूं, बिल्कुल साफ और तथ्यों के साथ।
क्या हुआ पहलगाम में?
सबसे पहले, थोड़ा बैकग्राउंड। 25 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में एक आतंकी हमला हुआ। इस हमले ने पूरे देश को झकझोर दिया। न्यूज18 की रिपोर्ट के मुताबिक, इस हमले में आतंकियों ने न सिर्फ हिंसा की, बल्कि इसे रिकॉर्ड भी किया, जो और भी डरावना है। इस हमले ने कई परिवारों को प्रभावित किया, और देश में एक बार फिर धर्म और हिंसा को लेकर बहस छिड़ गई।
इसी हमले ने साबिर हुसैन को इतना आहत किया कि उन्होंने एक ऐसा कदम उठाया, जो शायद बहुत कम लोग उठाने की हिम्मत करते हैं। साबिर, जो पश्चिम बंगाल के बडूरिया में एक स्कूल टीचर हैं, ने फैसला किया कि वो अब इस्लाम से अपना नाता तोड़ लेंगे और कोर्ट में जाकर अपनी धार्मिक पहचान को पूरी तरह त्याग देंगे।
साबिर हुसैन का फैसला: “मैं सिर्फ इंसान बनना चाहता हूं”
साबिर ने न्यूज18 से बातचीत में अपनी भावनाएं साझा कीं। उन्होंने कहा, “मैं किसी भी धर्म का अपमान नहीं करना चाहता। ये मेरा निजी फैसला है। मैंने बार-बार देखा है कि कैसे कश्मीर में धर्म को हिंसा का हथियार बनाया जाता है। मैं अब इसे स्वीकार नहीं कर सकता। मैं चाहता हूं कि लोग मुझे किसी धार्मिक टैग से नहीं, बल्कि एक इंसान के तौर पर जानें।”
साबिर का कहना है कि वो कोर्ट में अर्जी दाखिल करेंगे ताकि उनकी धार्मिक पहचान को आधिकारिक रूप से हटाया जा सके। उन्होंने ये भी साफ किया कि वो अपने परिवार पर अपनी मान्यताएं नहीं थोपेंगे। उनकी पत्नी और बच्चे जो चाहें, वो धर्म चुन सकते हैं। साबिर ने कहा, “ये मेरा व्यक्तिगत सफर है। मैं अब इस्लाम से खुद को जोड़ना नहीं चाहता।”

धर्म और हिंसा का सवाल
साबिर का ये फैसला सिर्फ एक व्यक्ति की कहानी नहीं है। ये उस बड़े सवाल को उठाता है कि आखिर क्यों धर्म के नाम पर लोग हिंसा करते हैं? साबिर ने कहा, “धर्म के नाम पर किसी की जान क्यों ली जाए? ये बात मुझे बहुत परेशान करती है।” उनकी ये बात हम सबके लिए एक बड़ा सवाल छोड़ती है—क्या धर्म हमें जोड़ने के लिए है, या बांटने के लिए?
साबिर ने ये भी बताया कि उन्हें बार-बार अपनी धार्मिक पहचान को लेकर सवालों का सामना करना पड़ता है, जो उन्हें लगता है कि समाज में बंटवारे को बढ़ावा देता है। उन्होंने कहा, “आजकल हर चीज धर्म के इर्द-गिर्द घूमती है। मैं ऐसी दुनिया में नहीं जीना चाहता।”
कैसे शुरू हुई ये बात?
साबिर ने सबसे पहले अपनी इस भावना को फेसबुक पर साझा किया था। इसके बाद उन्होंने न्यूज18 से बातचीत में अपने फैसले को और पुख्ता किया। उनका कहना है कि पहलगाम हमला उनके लिए आखिरी बिंदु था। वो मानते हैं कि बार-बार धर्म के नाम पर होने वाली हिंसा से वो अब तंग आ चुके हैं।
क्या कहता है समाज?
साबिर का ये फैसला कई लोगों के लिए हैरान करने वाला हो सकता है, लेकिन ये हमें सोचने पर मजबूर करता है। क्या धर्म सिर्फ एक व्यक्तिगत आस्था है, या ये समाज को बांटने का जरिया बन गया है? साबिर का कहना है कि वो सभी धर्मों का सम्मान करते हैं, लेकिन वो अब किसी भी धार्मिक पहचान से बंधना नहीं चाहते।