नई दिल्ली: चर्चित फिल्म निर्माता अनुराग कश्यप ने आगामी फिल्म ‘फुले’ को लेकर उठे विवाद पर सेंसर बोर्ड (CBFC) और एक विशेष वर्ग के विरोध पर कड़ा प्रहार किया है। उन्होंने सीधे सवाल उठाते हुए कहा, “अगर समाज में जाति नहीं है, तो फिर कुछ लोगों को ‘फुले’ फिल्म से आपत्ति क्यों हो रही है?”
‘फुले’, जो कि समाज सुधारक ज्योतिराव फुले और सावित्रीबाई फुले की बायोपिक है, पहले 11 अप्रैल को रिलीज़ होने वाली थी, लेकिन विरोध के चलते अब इसे 25 अप्रैल तक टाल दिया गया है। इस फिल्म का निर्देशन आनंत महादेवन ने किया है और इसमें प्रतिक गांधी और पतरालेखा ने मुख्य भूमिकाएं निभाई हैं।
CBFC ने फिल्म को 7 अप्रैल को ‘U’ सर्टिफिकेट तो दे दिया, लेकिन साथ ही कई बदलावों की मांग की। इनमें ‘महार’, ‘मांग’, ‘पेशवाई’ जैसे जातिगत शब्दों को हटाने और “3000 साल पुरानी गुलामी” को बदलकर “कई साल पुरानी गुलामी” करने जैसी शर्तें शामिल थीं। निर्देशक महादेवन ने पुष्टि की कि सभी मांगे मान ली गई हैं।
अनुराग कश्यप ने इस पर इंस्टाग्राम पोस्ट के ज़रिए तीखा हमला बोला। उन्होंने लिखा, “पंजाब 95, टीस, धड़क 2, फुले — न जाने कितनी फिल्में रोकी जा रही हैं… ये जातिवादी, क्षेत्रवादी, नस्लवादी सरकार अपने चेहरे को आईने में देखने से शर्माती है।” उन्होंने मौजूदा व्यवस्था को ‘धांधलीपूर्ण’ बताते हुए इसे अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला करार दिया।
कश्यप ने आगे कहा, “जो चीज़ असहज कर रही है, वो खुलकर बताने की हिम्मत भी नहीं है। सिर्फ डर और सेंसर के जरिए चुप कराने की कोशिश की जा रही है।”
इस विवाद ने एक बार फिर भारतीय सिनेमा में जातिगत मुद्दों और सेंसरशिप की स्वतंत्रता पर बहस को हवा दे दी है। अनुराग कश्यप के बयानों ने यह सवाल खड़ा किया है कि क्या फिल्में आज भी समाज के आइने के रूप में काम कर सकती हैं, या उन्हें ‘संवेदनशीलता’ के नाम पर रोका जाएगा?