🔵 भूमिका: दोस्ती के पीछे की रणनीति
चीन और पाकिस्तान के रिश्ते को अक्सर ‘आयरन ब्रदरहुड’ कहा जाता है। लेकिन क्या वाकई यह रिश्ता बराबरी का है?
अगर पिछले कुछ दशकों की घटनाओं को देखें तो साफ समझ आता है कि चीन इस दोस्ती का फायदा उठाकर पाकिस्तान को एक रणनीतिक मोहरे की तरह इस्तेमाल कर रहा है।
भारत के नजरिए से यह गठबंधन एक बड़ी चुनौती बन चुका है।
🔵 इतिहास में झांकते हुए: कब और कैसे बना चीन-पाकिस्तान गठजोड़?
- 1963 में पाकिस्तान ने पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर (PoK) का एक हिस्सा चीन को सौंप दिया था (शक्सगाम घाटी)।
- 1970 के दशक में जब अमेरिका ने चीन से संपर्क साधना शुरू किया, तब पाकिस्तान ने मध्यस्थ की भूमिका निभाई थी।
- 1990 के दशक में चीन ने पाकिस्तान को परमाणु तकनीक और मिसाइल तकनीक में मदद दी, जिससे भारत के लिए खतरा कई गुना बढ़ गया।
👉 इन घटनाओं ने चीन और पाकिस्तान के बीच “स्ट्रैटेजिक रिलेशनशिप” को मजबूती दी, जिसमें चीन को फायदा और पाकिस्तान को सहारा मिलता रहा।
🔵 आर्थिक गुलामी: CPEC के जरिये चीन की पकड़
चीन ने पाकिस्तान में लगभग 62 अरब डॉलर का निवेश किया है चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) के तहत।
CPEC का मकसद क्या है?
- चीन को अरब सागर तक सीधा रास्ता मिल जाए।
- ग्वादर पोर्ट के जरिये चीन अपने तेल और व्यापारिक माल को तेजी से ला सके।
- भारत को सामरिक रूप से घेर सके।
CPEC से पाकिस्तान को क्या मिला?
- अस्थायी रोजगार।
- बढ़ते कर्ज़ और आर्थिक निर्भरता।
👉 स्टडी के अनुसार: पाकिस्तान का विदेशी कर्ज़ 2024 में जीडीपी के 77% तक पहुंच चुका है, जिसमें एक बड़ा हिस्सा चीन का है।
(Source: IMF Report 2024)
स्पष्ट निष्कर्ष: पाकिस्तान धीरे-धीरे चीन का आर्थिक उपनिवेश बनता जा रहा है।
🔵 सैन्य और तकनीकी मदद: पाकिस्तान को साधने की चाल
चीन ने पाकिस्तान को:
- अत्याधुनिक ड्रोन (Wing Loong II) दिए।
- JF-17 थंडर फाइटर जेट्स की तकनीक दी।
- बुनियादी ढांचे से लेकर साइबर निगरानी तक में मदद दी।
👉 इससे पाकिस्तान को भारत के खिलाफ अपनी सैन्य ताकत बढ़ाने में मदद मिली, लेकिन असली नियंत्रण चीन के पास रहा।

🔵 कूटनीतिक संरक्षण: आतंकवाद पर चीन का दोहरा रवैया
- जब भी भारत संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान-समर्थित आतंकियों के खिलाफ प्रस्ताव लाता है (जैसे मसूद अजहर का मामला), चीन वीटो कर देता है।
- FATF (Financial Action Task Force) में भी चीन ने कई बार पाकिस्तान को “ब्लैक लिस्ट” होने से बचाया है।
👉 इसका सीधा मतलब है: पाकिस्तान के आतंकियों को अंतरराष्ट्रीय दबाव से बचाने में चीन की भूमिका अहम है।
(Source: United Nations Reports, FATF Proceedings)
🔵 भारत के लिए क्या खतरे हैं?
- सीमा पर दोहरी चुनौती:
एक ओर चीन (लद्दाख, अरुणाचल), दूसरी ओर पाकिस्तान (कश्मीर)। दोनों फ्रंट पर सेना का दबाव। - रणनीतिक घेराव:
पाकिस्तान के बंदरगाहों का इस्तेमाल चीन अपने नौसैनिक हितों के लिए कर रहा है, जिससे भारतीय नौसेना को खतरा बढ़ रहा है। - आर्थिक और राजनीतिक दबाव:
चीन-पाक गठबंधन वैश्विक मंचों पर भारत के खिलाफ लॉबिंग कर रहा है।
🔵 क्या हालिया घटनाएं इसे साबित करती हैं?
हाल ही में भारत में गलवान घाटी झड़प (2020) और पाकिस्तान की ओर से सीमा पर बढ़ती घुसपैठ इसी दोतरफा दबाव की मिसाल हैं।
इसके अलावा:
- चीन द्वारा नेपाल और श्रीलंका में भी दखल बढ़ाना।
- पाकिस्तान के जरिये भारत के खिलाफ साइबर अटैक और प्रॉक्सी वार छेड़ना।
👉 सब कुछ एक बड़ी रणनीति का हिस्सा लगता है — भारत को थकाना और कमजोर करना।
🔵 निष्कर्ष: भारत के लिए आगे का रास्ता
भारत को इस चुनौती का मुकाबला तीन मोर्चों पर करना होगा:
- सुरक्षा क्षेत्र में: सीमाओं पर रक्षा तैयारियों को और मजबूत बनाना।
- कूटनीति में: Quad जैसे अंतरराष्ट्रीय समूहों के माध्यम से चीन को बैलेंस करना।
- आर्थिक मोर्चे पर: आत्मनिर्भर भारत अभियान और पड़ोसी देशों को आर्थिक समर्थन देना, ताकि वे चीन के प्रभाव से बाहर रहें।
🔴 अंतिम शब्द
चीन और पाकिस्तान का गठजोड़ दिखाता है कि किस तरह एक महाशक्ति अपने छोटे साझेदार का इस्तेमाल अपने बड़े हित साधने के लिए करती है।
भारत को चाहिए कि वह इसे केवल एक द्विपक्षीय दोस्ती न माने, बल्कि एक व्यापक रणनीतिक योजना के रूप में देखे — और उसी हिसाब से अपनी नीति तैयार करे।