उत्तराखंड सरकार ने एक अहम शैक्षिक सुधार की दिशा में कदम बढ़ाते हुए राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में भगवद् गीता पढ़ाने का निर्णय लिया है। यह फैसला मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की अध्यक्षता में आयोजित शिक्षा विभाग की समीक्षा बैठक में लिया गया। अब राज्य के 17,000 से अधिक सरकारी स्कूलों में यह धार्मिक और नैतिक शिक्षा का हिस्सा होगा।
फैसले का उद्देश्य क्या है?
मुख्यमंत्री धामी के अनुसार, भगवद् गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला सिखाने वाला ज्ञान है। इस निर्णय के पीछे बच्चों को नैतिक मूल्यों, आध्यात्मिक जागरूकता और जीवन के वास्तविक उद्देश्यों से जोड़ने का विचार है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने क्या कहा?
सीएम धामी ने कहा:
“भगवद् गीता एक पवित्र ग्रंथ है जिसमें भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया ज्ञान समाहित है। यह जीवन के हर मोड़ पर व्यक्ति के लिए मार्गदर्शक बन सकता है। हमने समीक्षा बैठक में तय किया है कि राज्य के सभी स्कूलों में गीता पढ़ाई जाएगी और इसकी प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।”
उन्होंने यह भी बताया कि प्रधानमंत्री से मुलाकात के दौरान उत्तराखंड की धार्मिक यात्राओं—चार धाम यात्रा, आदि कैलाश और मानसरोवर यात्रा—को लेकर महत्वपूर्ण मार्गदर्शन भी प्राप्त हुआ है।
शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत का बयान
उत्तराखंड के शिक्षा मंत्री डॉ. धन सिंह रावत ने कहा:
- NCERT को यह जिम्मेदारी दी गई है कि वह भगवद् गीता और रामायण को स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल करे।
- जब तक पाठ्यक्रम लागू नहीं होता, तब तक स्कूलों में रोज़ाना की प्रार्थना सभा में गीता और रामायण के श्लोक पढ़े जाएंगे।
प्रभावित होंगे 17,000 स्कूल
- राज्यभर के 17,000 से अधिक सरकारी स्कूलों में गीता की शिक्षा दी जाएगी।
- यह पहल छात्रों को भारतीय संस्कृति और नैतिक शिक्षा से जोड़ने की दिशा में बड़ा कदम मानी जा रही है।
क्यों यह फैसला महत्वपूर्ण है?
- भगवद् गीता केवल धार्मिक शिक्षा नहीं, बल्कि नैतिक मूल्यों, नेतृत्व और आत्म-विकास की प्रेरणा भी देती है।
- उत्तराखंड सरकार का यह कदम विद्यार्थियों के चरणबद्ध मानसिक और आध्यात्मिक विकास में सहायक सिद्ध हो सकता है।