BY: Yoganand Shrivastva
जब एक बच्ची को जन्म के कुछ ही दिनों बाद उसके माता-पिता ने ठुकरा दिया, वह गुमनामी और दर्द में डूबती जा रही थी। थिएटर की सीट के नीचे बेसुध हालत में पड़ी उस बच्ची को चूहे और कीड़े नोच रहे थे, लेकिन किस्मत ने उसके लिए कुछ और ही तय किया था। तभी उसकी जिंदगी में एक ऐसा शख्स आया, जिसने न सिर्फ उसे बचाया बल्कि उसे बेटी बनाकर एक नई पहचान दी। आज वही बच्ची दिशा झा के नाम से फिल्म इंडस्ट्री में नामी प्रोड्यूसर बन चुकी हैं, और इस मुकाम तक पहुंचाने वाले हैं मशहूर निर्देशक प्रकाश झा।
दर्द से भरी शुरुआत, एक मसीहा की दस्तक
यह कहानी शुरू होती है साल 1988 से, जब प्रकाश झा दिल्ली के एक अनाथालय में वॉलंटियर के रूप में काम किया करते थे। एक दिन उन्हें वहां से एक फोन आया — थिएटर में एक 10 दिन की बच्ची को लावारिस छोड़ दिया गया था। बच्ची की हालत इतनी खराब थी कि उसका पूरा शरीर संक्रमित था, चूहे उसे बुरी तरह काट चुके थे।
बिना समय गंवाए उठा लिया गोद
प्रकाश झा ने बिना एक पल की देर किए उस बच्ची को गोद ले लिया और डॉक्टरों की मदद से उसका इलाज शुरू करवाया। उनकी पत्नी दीप्ति नवल ने भी इस मुहिम में उनका पूरा साथ दिया। बच्ची को दवाई, देखभाल और अपार प्यार मिला, और धीरे-धीरे वह ठीक होने लगी। उसे एक नाम मिला — दिशा।
तलाक हुआ, लेकिन रिश्ता नहीं टूटा
हालांकि, बाद में प्रकाश और दीप्ति के निजी जीवन में खटास आ गई और उनका तलाक हो गया। लेकिन इसके बावजूद दोनों का दिशा से जुड़ाव कम नहीं हुआ। प्रकाश झा ने बेटी की परवरिश अकेले की, लेकिन दीप्ति भी समय-समय पर दिशा के जीवन का हिस्सा बनी रहीं।
संघर्षों से सीखा आत्मनिर्भरता का पाठ
एक समय ऐसा भी आया जब दिशा को प्रकाश झा की मां के पास पटना भेज दिया गया, जहां उनकी दादी ने उनकी देखभाल की। दादी के निधन के बाद, प्रकाश उन्हें फिर से अपने पास मुंबई ले आए। दिशा ने अपने पिता के साथ रहते हुए फिल्मी माहौल में काफी कुछ सीखा।
इंडस्ट्री में बनाई खुद की पहचान
2019 में दिशा झा ने अपने पिता के साथ मिलकर ‘फ्रॉड सइयां’ जैसी फिल्म का निर्माण किया। इसके बाद उन्होंने ‘पेन पेपर सीजर एंटरटेनमेंट’ नाम से अपना प्रोडक्शन हाउस शुरू किया, और अब वे नई प्रतिभाओं को अवसर दे रही हैं। दिशा का जीवन इस बात का उदाहरण है कि एक अस्वीकृत बच्ची भी सही मार्गदर्शन और ममता के सहारे आसमान छू सकती है।
एक कहानी, जो प्रेरणा बन गई
दिशा झा की यह यात्रा न सिर्फ दर्द और संघर्ष की मिसाल है, बल्कि यह साबित करती है कि मां-बाप बनने से ज्यादा जरूरी है इंसान बनना। प्रकाश झा ने यह करके दिखाया और आज दिशा अपनी काबिलियत से दुनिया को यह बता रही हैं कि “बेटी बचाओ” सिर्फ नारा नहीं, ज़िम्मेदारी भी है।