सुलगते सवाल: क्या भारत से चीन के जरिए US गया मामला ?
दिल्ली: शॉर्ट सेलिंग फर्म हिंडेनबर्ग भले ही बंद हो गई हो, लेकिन उसके द्वारा अडानी ग्रुप पर लगाए गए आरोपों की गूंज अभी भी जारी है। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील महेश जेठमलानी ने हाल ही में हिंडेनबर्ग और चीन के बीच संभावित संबंधों को लेकर गंभीर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कुछ तथ्य प्रस्तुत किए हैं, जो इस पूरे मामले को और भी जटिल बना सकते हैं। सवाल उठता है कि क्या अडानी पर यह हमला महज एक कारोबारी रणनीति थी, या इसके पीछे कोई बड़ी साजिश काम कर रही थी? आइए इस पूरे घटनाक्रम की कड़ी से कड़ी जोड़ते हैं।

CHIN और अडानी के बीच प्रतिद्वंद्विता
अडानी ग्रुप न केवल भारत में बल्कि वैश्विक स्तर पर भी विस्तार कर रहा है। विशेष रूप से एशिया-पेसिफिक क्षेत्र में उसकी बढ़ती उपस्थिति चीन के लिए चुनौती बन गई थी।
- ऑस्ट्रेलिया में अडानी की मौजूदगी: अडानी ग्रुप ने ऑस्ट्रेलिया में लगभग 9 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश किया था, जबकि चीन की यानकोल (Yancoal) कंपनी वहाँ अडानी से 20 गुना अधिक कोयला उत्पादन कर रही थी। लेकिन विरोध केवल अडानी के खिलाफ ही क्यों हुआ?
- इज़राइल का हाइफ़ा पोर्ट: अडानी ने 2023 में इस रणनीतिक बंदरगाह का अधिग्रहण किया, जिससे चीन को एक बड़ा झटका लगा।
- श्रीलंका और बांग्लादेश में अडानी का प्रभाव: अडानी ग्रुप इन देशों में भी इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहा है, जो चीन की व्यापारिक योजनाओं में बाधा डाल सकते हैं।
हिंडेनबर्ग रिपोर्ट: साजिश या संयोग?
जनवरी 2023 में आई हिंडेनबर्ग रिपोर्ट ने अडानी ग्रुप को भारी नुकसान पहुँचाया। इस रिपोर्ट के बाद अडानी ग्रुप के शेयरों में तेज़ गिरावट आई और भारत की आर्थिक छवि को भी झटका लगा। लेकिन कुछ जानकारों का मानना है कि यह रिपोर्ट सिर्फ एक वित्तीय विश्लेषण नहीं, बल्कि एक सोची-समझी रणनीति थी।
- अनला चेंग और चीन कनेक्शन: प्रसिद्ध वकील महेश जेठमलानी ने आरोप लगाया कि हिंडेनबर्ग रिपोर्ट के पीछे चीन का हाथ हो सकता है। अनला चेंग और उनके पति मार्क किंगडन ने इस रिपोर्ट को तैयार करवाने में भूमिका निभाई थी।
- कोटक महिंद्रा इंवेस्टमेंट लिमिटेड (KMIL) की भूमिका: इसे अडानी के शेयरों की शॉर्ट-सेलिंग के लिए इस्तेमाल किया गया, जिससे अडानी ग्रुप को बड़ा नुकसान हुआ।
अमेरिका की भूमिका: अडानी के समर्थन में?
हिंडेनबर्ग रिपोर्ट के असर के बावजूद, अमेरिका का रवैया धीरे-धीरे अडानी के पक्ष में बदलता दिख रहा है।
- अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी का दौरा: उन्होंने गुजरात में अडानी के मुंद्रा और खवड़ा प्रोजेक्ट्स का दौरा किया और इसे सोशल मीडिया पर साझा किया, जो स्पष्ट रूप से अमेरिका के समर्थन का संकेत देता है।
- DFC (डिवेलपमेंट फाइनेंस कॉरपोरेशन) का भरोसा: 2023 में हिंडेनबर्ग रिपोर्ट के बावजूद, अमेरिकी संस्था DFC ने अडानी के कोलंबो पोर्ट प्रोजेक्ट के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की।
अमेरिका की रणनीति: अडानी के ज़रिए चीन पर दबाव?
अमेरिका के विभिन्न संस्थानों का अडानी पर मिला-जुला रुख देखा गया। एक तरफ, अमेरिकी न्याय विभाग अडानी की जांच कर रहा है, जबकि दूसरी ओर अमेरिकी प्रशासन और वित्तीय संस्थाएं उनका समर्थन कर रही हैं। इसका एक कारण यह हो सकता है कि अमेरिका चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) को कमजोर करने के लिए अडानी जैसे वैश्विक कारोबारी समूहों को प्रोत्साहित कर रहा है।
- हाइफ़ा पोर्ट: अडानी का इज़राइल में विस्तार चीन के लिए बड़ा झटका था।
- इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप कॉरिडोर (IMEC): यह परियोजना चीन की BRI का एक मजबूत विकल्प बन सकती है।
- कोलंबो पोर्ट: DFC द्वारा अडानी को फंडिंग इस बात का संकेत है कि अमेरिका भारत के कारोबारी प्रभाव को बढ़ावा देकर चीन की पकड़ को कमजोर करना चाहता है।
इस पूरे मामले में चीन, अमेरिका और भारत के आर्थिक और रणनीतिक हित टकरा रहे हैं। अडानी ग्रुप सिर्फ एक कारोबारी संस्था नहीं, बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन का अहम हिस्सा बन चुका है। हिंडेनबर्ग रिपोर्ट एक संयोग थी या साजिश, यह अभी भी बहस का विषय है, लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि अडानी के खिलाफ यह हमला वैश्विक राजनीति से अलग नहीं था।
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