संस्कृति संचालनालय मध्यप्रदेश शासन और भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के सहयोग से आयोजित हुआ।
BY: VIJAY NANDAN
भारत की पहचान उसकी समृद्ध संस्कृति, सभ्यता और आध्यात्मिक धरोहर से है। यही वजह है कि हमारी परंपराएं और धार्मिक कथाएं सिर्फ भारत तक सीमित नहीं रहीं, बल्कि दुनिया के कई देशों में आज भी उतनी ही श्रद्धा और उत्साह के साथ जीवंत की जाती हैं। इसका ताजा उदाहरण भोपाल के रवींद्र भवन में 23 से 29 सितंबर तक आयोजित अंतरराष्ट्रीय रामलीला महोत्सव है। इस सात दिवसीय आयोजन ने न केवल दर्शकों को भगवान श्रीराम की लीला का अद्भुत अनुभव कराया, बल्कि यह भी साबित किया कि भारतीय सनातन संस्कृति की जड़ें कितनी गहरी और व्यापक हैं।
नवरात्रि पर संस्कृति का उत्सव
नवरात्रि का पर्व भारत में देवी भक्ति, साधना और सांस्कृतिक उत्सव का प्रतीक है। इसी अवसर पर भोपाल में आयोजित रामलीला महोत्सव ने पूरे शहर को आस्था और उत्साह से भर दिया। मंच पर प्रस्तुत श्रीराम की जीवनगाथा ने यह संदेश दिया कि मर्यादा, धर्म और न्याय के आदर्श किसी एक देश तक सीमित नहीं, बल्कि यह समूची मानवता के लिए प्रेरणा हैं।
इस उत्सव का खास आकर्षण यह था कि भारत के कलाकारों के साथ-साथ इंडोनेशिया, वियतनाम और मलेशिया से आए दलों ने भी रामकथा का मंचन किया। विभिन्न देशों के कलाकारों द्वारा रामलीला का प्रस्तुतीकरण इस बात का जीवंत प्रमाण है कि भारतीय संस्कृति की खुशबू पूरी दुनिया में फैली हुई है।

अंतरराष्ट्रीय रामलीला के मुख्य आकर्षण
महोत्सव का उद्घाटन 23 सितंबर को हुआ, जहां शुरुआती मंचन में माता सती का पुनर्जन्म, भगवान शंकर-पार्वती विवाह और नारद मोह जैसे प्रसंग प्रस्तुत किए गए। इसके बाद हर दिन अलग-अलग देशों और कलाकारों ने रामकथा के प्रसंगों को नृत्य, संगीत और अभिनय के माध्यम से जीवंत किया।
- इंडोनेशिया के कलाकारों ने श्रीराम जन्म, ताड़का वध, अहिल्या उद्धार और सीता स्वयंवर जैसे प्रसंगों को पारंपरिक नृत्य और अद्भुत शारीरिक मुद्राओं से सजाया।
- वियतनाम से आए दल ने श्रीराम वनवास, केवट प्रसंग, भरत-कैकयी संवाद और राम-भरत मिलाप जैसे प्रसंग प्रस्तुत किए।
- मलेशिया के कलाकारों ने शबरी प्रसंग, सुग्रीव मैत्री, बाली वध और हनुमानजी का लंका गमन मंचित कर दर्शकों को रोमांचित कर दिया।
आखिरी दिन 29 सितंबर को रावण वध और श्रीराम राज्याभिषेक का भव्य मंचन हुआ।

क्यों है यह आयोजन महत्वपूर्ण?
रामलीला महोत्सव केवल धार्मिक आयोजन भर नहीं है, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक कूटनीति (Cultural Diplomacy) का भी हिस्सा है। जब विदेशी कलाकार भारत आकर श्रीराम की गाथा प्रस्तुत करते हैं, तो यह इस बात का प्रमाण है कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर कितनी दूर-दूर तक फैल चुकी है।
1. सनातन संस्कृति की वैश्विक जड़ें
- इंडोनेशिया में रामायण और महाभारत आज भी कला और नृत्य का हिस्सा हैं। वहां की रामलीला को “काकविन रामायण” कहा जाता है।
- वियतनाम की लोककथाओं में भी रामायण के कई प्रसंग पाए जाते हैं।
- मलेशिया में हनुमान और रामायण की कथाएं लोकगीतों और लोकनाट्यों का अहम हिस्सा हैं।
इन देशों में पीढ़ी-दर-पीढ़ी भारतीय संस्कृति को संजोकर रखा गया है, जो दर्शाता है कि श्रीराम और सनातन धर्म की जड़ें केवल भारत तक सीमित नहीं।
2. सांस्कृतिक एकता का संदेश
इस आयोजन ने यह संदेश दिया कि भले ही हमारी भाषाएं, परिधान और अभिव्यक्ति अलग हों, लेकिन आस्था और संस्कृति हमें एक सूत्र में बांधती है। रामलीला के मंचन ने दर्शकों को यह एहसास कराया कि भारतीय संस्कृति की आत्मा पूरी दुनिया को जोड़ने की क्षमता रखती है।
3. युवाओं के लिए प्रेरणा
रामलीला देखने आए हजारों युवाओं ने भारतीय संस्कृति की गहराई को महसूस किया। आधुनिक दौर में जहां पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव बढ़ रहा है, वहीं इस तरह के आयोजन युवाओं को अपनी जड़ों से जोड़ने का काम करते हैं।
भारतीय संस्कृति: जीवन का मार्गदर्शन
भारत की संस्कृति केवल त्योहारों और धार्मिक आयोजनों तक सीमित नहीं, बल्कि यह जीवन जीने की कला है। इसमें धर्म (कर्तव्य), अर्थ (जीवनयापन), काम (इच्छा) और मोक्ष (मुक्ति) के सिद्धांत शामिल हैं। रामकथा इसी दर्शन का जीवंत रूप है।
- श्रीराम मर्यादा और धर्म के प्रतीक हैं।
- सीता माता त्याग और पवित्रता का आदर्श हैं।
- हनुमानजी भक्ति और समर्पण का स्वरूप हैं।
रामलीला महोत्सव ने इन आदर्शों को आधुनिक समाज में प्रासंगिक बनाकर प्रस्तुत किया।

सनातन संस्कृति का संरक्षण और प्रसार
भारत सरकार और राज्य सरकारें ऐसे आयोजनों के माध्यम से सांस्कृतिक संरक्षण का कार्य कर रही हैं। भोपाल का यह महोत्सव संस्कृति संचालनालय मध्यप्रदेश शासन और भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICCR) के सहयोग से आयोजित हुआ।
इससे न केवल भारत की सांस्कृतिक धरोहर का संरक्षण हुआ, बल्कि विदेशों में रह रहे भारतीय मूल के लोग और स्थानीय नागरिक भी इससे जुड़कर भारतीय परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं।
भोपाल का अंतरराष्ट्रीय रामलीला महोत्सव केवल एक सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं था, बल्कि यह भारत की सनातन सभ्यता का वैश्विक उत्सव था। इसमें मंचित प्रसंगों ने यह सिद्ध किया कि श्रीराम की कथा किसी एक देश की कहानी नहीं, बल्कि पूरी मानवता के लिए मार्गदर्शन है। विदेशी कलाकारों की सहभागिता ने यह साबित किया कि भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म की जड़ें विश्वभर में गहरी हैं। आज भी इंडोनेशिया, वियतनाम, मलेशिया जैसे देश इस सांस्कृतिक धरोहर का संरक्षण कर रहे हैं। रामलीला महोत्सव का यह अद्भुत संगम आने वाली पीढ़ियों को यह संदेश देता है कि संस्कृति ही वह धरोहर है, जो हमें जोड़ती है, हमारी पहचान बनाती है और हमें पूरी दुनिया में सम्मान दिलाती है।