BY: AJAY NIGAM
आज के दौर में अक्सर “Gen Z” यानी 1997 से 2012 के बीच जन्मी पीढ़ी का ज़िक्र होता है। इस पीढ़ी को तकनीक-प्रेमी, सोशल मीडिया पर सक्रिय और व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर जोर देने वाली माना जाता है। लेकिन सवाल यह है कि क्या भारत में भी वही स्थिति बन सकती है जैसी पश्चिमी देशों में Gen Z को लेकर देखने को मिल रही है? इसका उत्तर है—“नहीं।”
भारत का सामाजिक, सांस्कृतिक और पारिवारिक ढांचा पश्चिम से बिल्कुल अलग है। यहां की जड़ें परंपरा और रिश्तों में गहराई से जुड़ी हुई हैं। भारत में परिवार अब भी सामूहिक रूप से जीने का एक प्रमुख आधार है। जबकि पश्चिम में युवा जल्दी आत्मनिर्भर होकर अलग रहने लगते हैं, भारत में माता-पिता और बच्चों के बीच संबंध लंबे समय तक बने रहते हैं। यही कारण है कि यहां Gen Z जैसी “अलग-थलग” मानसिकता वाली स्थिति नहीं बन सकती।

इसके अलावा भारत की शिक्षा व्यवस्था, आर्थिक हालात और रोजगार के अवसर भी युवाओं की सोच को प्रभावित करते हैं। यहां के युवा सपनों को जरूर देखते हैं लेकिन वे परिस्थितियों के हिसाब से खुद को ढालने में भी सक्षम होते हैं। भारतीय समाज युवाओं को केवल अधिकार नहीं बल्कि कर्तव्य का भी बोध कराता है। यही संतुलन उन्हें पश्चिमी देशों की Gen Z से अलग बनाता है।
भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराएं भी युवाओं को दिशा देती हैं। त्योहार, पारिवारिक जिम्मेदारियां और सामाजिक मर्यादाएं आज की पीढ़ी को भी जोड़कर रखती हैं। यही वजह है कि भारतीय युवा सोशल मीडिया के ग्लैमर से प्रभावित तो होते हैं, लेकिन पूरी तरह उससे नियंत्रित नहीं हो पाते।
निष्कर्षतः, भारत में Gen Z जैसी स्थिति इसलिए नहीं बन सकती क्योंकि यहां की जड़ें परिवार, संस्कृति और सामूहिकता में गहराई से समाई हुई हैं। भारतीय युवा आधुनिकता को अपनाते हैं, लेकिन अपनी परंपरा से भी जुड़े रहते हैं। यही संतुलन उन्हें मजबूती देता है और भारत को बाकी देशों से अलग पहचान दिलाता है।
👉 इस तरह भारत में युवा पीढ़ी नई सोच और तकनीक के साथ आगे बढ़ेगी, परंतु “Gen Z जैसी स्थिति” यहां संभव नहीं है।