नवरात्रि का दूसरा दिन विशेष रूप से मां ब्रह्मचारिणी को समर्पित होता है। इस दिन माता पार्वती के अविवाहित रूप का पूजन किया जाता है। ब्रह्मचारिणी का अर्थ है वह देवी जो ब्रह्म के समान आचरण करती हैं। उनका स्वरूप अत्यंत ज्योतिर्मय और दिव्य माना जाता है। मां ब्रह्मचारिणी श्वेत वस्त्र में सुसज्जित रहती हैं, दाहिने हाथ में जप माला और बाएं हाथ में कमण्डल धारण करती हैं।
ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार, मां ब्रह्मचारिणी मंगल ग्रह को नियंत्रित करती हैं। उनकी पूजा करने से मंगल ग्रह के बुरे प्रभाव कम होते हैं और जीवन में शांति व समृद्धि आती है।
मां ब्रह्मचारिणी की कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार मां ब्रह्मचारिणी ने अपने पूर्व जन्म में पार्वती के रूप में जन्म लिया था। उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठिन तपस्या की थी। माता अपनी तपस्या के दौरान केवल फल-फूल और पत्तों का सेवन करती थीं। उनकी तपस्या इतनी कठिन थी कि उन्हें “ब्रह्मचारिणी” नाम से जाना गया। उनकी निष्ठा और भक्ति से भगवान शिव प्रसन्न हुए और उन्होंने माता को पति रूप में प्राप्त किया।
नवरात्रि दिवस 2: शुभ रंग
इस दिन नीला, हरा और सफेद रंग का विशेष महत्व है। पूजा स्थल और परिधान में इन रंगों का इस्तेमाल जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और शांति लाने में सहायक होता है।
पूजा विधि
- प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- मां ब्रह्मचारिणी का ध्यान करते हुए पूजा का संकल्प लें।
- सफेद फूल, चंदन और अक्षत अर्पित करें।
- मंत्र का जाप करें:
- “ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः”
- “या देवी सर्वभूतेषु ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥”
- आरती करें और मीठा भोग अर्पित करें।
मां ब्रह्मचारिणी की आरती

जय अंबे ब्रह्मचारिणी माता। जय चतुरानन प्रिय सुख दाता।
ब्रह्मा जी के मन भाती हो। ज्ञान सभी को सिखलाती हो।
ब्रह्मा मंत्र है जाप तुम्हारा। जिसको जपे सकल संसारा।
जय गायत्री वेद की माता। जो मन निस दिन तुम्हें ध्याता।
कमी कोई रहने न पाए। कोई भी दुख सहने न पाए।
उसकी विरति रहे ठिकाने। जो तेरी महिमा को जाने।
रुद्राक्ष की माला ले कर। जपे जो मंत्र श्रद्धा दे कर।
आलस छोड़ करे गुणगाना। मां तुम उसको सुख पहुंचाना।
ब्रह्मचारिणी तेरो नाम। पूर्ण करो सब मेरे काम।
भक्त तेरे चरणों का पुजारी। रखना लाज मेरी महतारी।
मां ब्रह्मचारिणी मंत्र
मंत्र:
ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः
या देवी सर्वभूतेषु ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
ध्यान मंत्र:
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
जपमाला कमण्डलु धरा ब्रह्मचारिणी शुभाम्॥
गौरवर्णा स्वाधिष्ठानस्थिता द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
धवल परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालङ्कार भूषिताम्॥
परम वन्दना पल्लवाधरां कान्त कपोला पीन।
पयोधराम् कमनीया लावणयं स्मेरमुखी निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
स्त्रोत तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्।
ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
शङ्करप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी।
शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
कवच मंत्र:
त्रिपुरा में हृदयम् पातु ललाटे पातु शङ्करभामिनी।
अर्पण सदापातु नेत्रो, अर्धरी च कपोलो॥
पञ्चदशी कण्ठे पातु मध्यदेशे पातु महेश्वरी॥
षोडशी सदापातु नाभो गृहो च पादयो।
अङ्ग प्रत्यङ्ग सतत पातु ब्रह्मचारिणी॥
भोग और प्रिय फूल
मां ब्रह्मचारिणी को शक्कर, मिश्री, खीर और दूध से बने मिष्ठान्न अर्पित करें।
उनके प्रिय फूल हैं सफेद गुलाब, चमेली और कमल।
इस पूजा से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है। नवरात्रि के इस पावन अवसर पर माता ब्रह्मचारिणी की कृपा हमेशा आपके साथ रहे।