ईरान और इजराइल युद्ध का भारत पर असर
by: vijay nandan
वर्ष 2025 के मध्य में पश्चिम एशिया फिर से युद्ध की चपेट में है। इस बार सीधा टकराव ईरान और इज़राइल के बीच हो गया है। दोनों देशों के बीच पहले से ही कूटनीतिक और वैचारिक दुश्मनी रही है, लेकिन अब यह दुश्मनी मिसाइलों और ड्रोन हमलों के जरिए ज़मीन पर उतर चुकी है।
किस-किस देश के बीच है तनाव और क्यों?
पश्चिम एशिया (Middle East) का नक्शा लगातार अस्थिर बना हुआ है। वर्तमान समय में निम्नलिखित देश आपसी या क्षेत्रीय तनावों में उलझे हुए हैं:
1. ईरान बनाम इज़राइल
- मुख्य कारण: ईरान की परमाणु महत्वाकांक्षा, हिज़बुल्ला जैसे संगठनों को समर्थन और इज़राइल पर ईरान समर्थित समूहों के हमले।
- स्थिति: दोनों देशों में अब सीधा सैन्य संघर्ष शुरू हो गया है। मिसाइल और ड्रोन हमले हो रहे हैं।
2. सऊदी अरब बनाम ईरान
- मुख्य कारण: शिया-सुन्नी संघर्ष, यमन युद्ध, धार्मिक नेतृत्व की होड़।
- स्थिति: शांति प्रयासों के बावजूद गहरा अविश्वास बना हुआ है।
3. सीरिया में रूस-अमेरिका प्रभाव की लड़ाई
- मुख्य कारण: बशर अल-असद को रूस का समर्थन और अमेरिका का विरोध।
- स्थिति: सीरिया अब भी कई वैश्विक ताकतों का युद्धक्षेत्र बना हुआ है।
4. तुर्की बनाम कुर्द
- मुख्य कारण: कुर्दों की स्वतंत्रता की मांग और तुर्की की सुरक्षा नीति।
- स्थिति: सीमित सैन्य कार्रवाई जारी।
क्या अमेरिका और रूस का ‘शीत युद्ध 2.0’ इसकी जड़ में है?
बिलकुल। पश्चिम एशिया वर्तमान समय में अमेरिका और रूस के बीच अप्रत्यक्ष युद्धभूमि बन गया है:
- रूस ईरान, सीरिया और कुछ हद तक तुर्की के साथ जुड़ा हुआ है।
- अमेरिका इज़राइल, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों का रणनीतिक सहयोगी है।
इस क्षेत्र में शीत युद्ध के नए संस्करण की यह लड़ाई न केवल वैचारिक है, बल्कि ऊर्जा संसाधनों और हथियारों की बिक्री से भी जुड़ी हुई है।

क्या हथियारों का बाज़ार भी कारण है?
हां, यह एक महत्वपूर्ण कारक है:
- पश्चिम एशिया विश्व का सबसे बड़ा हथियार आयातक क्षेत्र है।
- अमेरिका, रूस, चीन और यूरोपीय देश अपने हथियारों के लिए इस क्षेत्र को सबसे बड़ा उपभोक्ता मानते हैं।
- युद्ध और तनाव जितना बढ़ेगा, हथियारों की मांग उतनी बढ़ेगी — और इससे इन शक्तियों को आर्थिक लाभ होगा।
भारत पर क्या पड़ेगा असर?
ईरान-इज़राइल युद्ध का भारत पर बहुआयामी असर पड़ सकता है:
1. तेल की कीमतें बढ़ेंगी
भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों का लगभग 80% आयात करता है। पश्चिम एशिया में तनाव का सीधा असर कच्चे तेल की कीमतों पर पड़ेगा, जिससे महंगाई बढ़ सकती है।
2. खाड़ी देशों में भारतीय कामगार संकट
सऊदी अरब, यूएई, कतर जैसे देशों में लाखों भारतीय काम कर रहे हैं। क्षेत्रीय अस्थिरता से उनका भविष्य खतरे में पड़ सकता है।
3. रणनीतिक संतुलन की चुनौती
भारत के अच्छे रिश्ते ईरान और इज़राइल दोनों से हैं। ऐसे में भारत को बेहद संतुलित और संयमित कूटनीति अपनानी होगी।
4. चाबहार पोर्ट परियोजना पर खतरा
ईरान के चाबहार पोर्ट में भारत की भारी निवेश है। युद्ध की स्थिति से इस परियोजना पर भी असर पड़ सकता है।
पश्चिम एशिया की यह लड़ाई केवल ईरान और इज़राइल के बीच नहीं है — यह अमेरिका और रूस के दबे शीत युद्ध, हथियारों की दौड़ और ऊर्जा वर्चस्व की लड़ाई है। यह एक ऐसा ‘ग्लोबल गेम’ बन चुका है, जिसमें हर बड़ा खिलाड़ी अपने मोहरे चला रहा है।
भारत जैसे देश के लिए यह समय अत्यंत सतर्कता का है — उसे न केवल आर्थिक रूप से खुद को तैयार रखना होगा, बल्कि कूटनीतिक संतुलन, रणनीतिक साझेदारी और सुरक्षा नीति को भी मजबूत करना होगा. अगर यह युद्ध लंबा चला, तो इसका असर सिर्फ पश्चिम एशिया नहीं, बल्कि पूरी दुनिया पर पड़ेगा। भारत जैसे उभरते राष्ट्र के लिए यह आग के दरिया को पार करने जैसा समय होगा — जहाँ हर क़दम फूँक-फूँक कर रखना होगा।