PwC इंडिया के पूर्व चेयरमैन श्यामल मुखर्जी ने अपने रिटायरमेंट लाभ को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है। यह मामला एक हाई-प्रोफाइल कॉरपोरेट विवाद बन चुका है, जिसमें मुखर्जी ने आरोप लगाया है कि उन्हें उनके अनुबंध के अनुसार रिटायरमेंट लाभ नहीं मिले।
यह केस न केवल एक व्यक्तिगत कानूनी लड़ाई है, बल्कि यह भारत में कॉरपोरेट गवर्नेंस और पारदर्शिता से जुड़े कई महत्वपूर्ण सवाल भी उठाता है।
⚖️ मामले की मुख्य बातें
मुखर्जी ने 16 मई 2025 को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने बॉम्बे हाईकोर्ट और कर्नाटक हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी है जिसमें PwC के पक्ष में निर्णय हुआ था।
श्यामल मुखर्जी के मुख्य आरोप:
- PwC ने उनके साथ किए गए रिटायरमेंट एग्रीमेंट का पालन नहीं किया।
- उन्हें LLP (लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप) एग्रीमेंट की कॉपी नहीं दी गई।
- बिना इस दस्तावेज़ के उन्हें समझ नहीं आया कि उनके अनुबंध में कौन-कौन से कानूनी क्लॉज़ शामिल थे।
🏛️ अब तक की कानूनी प्रक्रिया
1. बॉम्बे हाईकोर्ट का रुख (2024)
मुखर्जी ने पहले बॉम्बे हाईकोर्ट में आर्बिट्रेशन की मांग करते हुए याचिका दायर की थी। उन्होंने कोर्ट से हस्तक्षेप की अपील की थी क्योंकि उन्हें लगता था कि PwC ने उनकी शर्तों का उल्लंघन किया है।
2. कर्नाटक हाईकोर्ट में केस क्यों गया?
LLP समझौते में एक ज्यूरिस्डिक्शन क्लॉज़ था, जिसमें लिखा था कि कोई भी विवाद केवल कर्नाटक हाईकोर्ट के अधीन होगा। इसलिए वहां भी केस दायर किया गया।
लेकिन दोनों अदालतों ने PwC के पक्ष में निर्णय दिया, जिसके बाद अब मुखर्जी ने सुप्रीम कोर्ट की शरण ली है।
📌 यह मामला क्यों है अहम?
यह केस कई महत्वपूर्ण मुद्दों को उजागर करता है:
- 🔍 कानूनी पारदर्शिता की जरूरत: क्या कंपनियां अपने वरिष्ठ अधिकारियों को सभी कानूनी दस्तावेज़ देती हैं?
- 👔 वरिष्ठ पदाधिकारियों के अधिकार: क्या रिटायरमेंट के समय उन्हें उचित लाभ और स्पष्टता मिलती है?
- ⚖️ ज्यूरिस्डिक्शन और आर्बिट्रेशन क्लॉज़: अनुबंध में लिखे गए कानूनी क्षेत्राधिकार क्लॉज़ का क्या प्रभाव होता है?
📉 PwC और अन्य कंपनियों पर संभावित प्रभाव
यदि यह केस सुप्रीम कोर्ट में मुखर्जी के पक्ष में जाता है, तो इसके परिणामस्वरूप हो सकते हैं:
- ✔️ कंपनियों में अधिक पारदर्शिता की मांग बढ़ेगी
- ✔️ रिटायरमेंट और एग्जिट पॉलिसियों की समीक्षा की जाएगी
- ✔️ पार्टनरशिप एग्रीमेंट्स को लेकर नए दिशा-निर्देश बन सकते हैं
यह मामला उन लोगों के लिए खास महत्व रखता है जो बड़े प्रोफेशनल फर्म्स में उच्च पदों पर हैं या पार्टनरशिप मॉडल के तहत काम करते हैं।