भारत में मोटे अनाज: अतीत की पहचान, भविष्य की जरूरत

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Millets in India: Recognition of the past, needs of the future

सिंधु घाटी से आधुनिक भारत तक: मोटे अनाजों की यात्रा

भारत में प्राचीन काल से ही ज्वार, बाजरा, रागी, कोदो, कुटकी, सांवा और अन्य मोटे अनाज का उत्पादन और उपभोग किया जाता रहा है। ये अनाज सिर्फ पोषण से भरपूर ही नहीं, बल्कि जलवायु परिवर्तन के प्रति सहनशील भी होते हैं। लेकिन, 1960-70 के दशक में हरित क्रांति के तहत गेहूं और धान की उपज बढ़ाने पर अधिक ध्यान दिया गया। इसके चलते पारंपरिक मोटे अनाज धीरे-धीरे पीछे छूट गए।

मोटे अनाजों का स्वर्णिम अतीत

  • सिंधु घाटी सभ्यता से लेकर वैदिक काल तक मोटे अनाज भारतीय कृषि और आहार का प्रमुख हिस्सा थे।
  • आयुर्वेद में भी इन अनाजों को स्वास्थ्य के लिए लाभकारी बताया गया है।
  • मध्यकालीन भारत में भी मोटे अनाज व्यापक रूप से उगाए जाते थे, क्योंकि ये कम पानी में भी उपज सकते थे।

हरित क्रांति और लाल गेहूं का आगमन

  • 1960-70 के दशक में हरित क्रांति के चलते अधिक उत्पादन देने वाली फसलों को बढ़ावा मिला।
  • अमेरिका से ‘लाल गेहूं’ (Red Wheat) आयात किया गया और उच्च उपज वाली गेहूं-धान की किस्मों को प्राथमिकता दी गई।
  • मोटे अनाजों की खेती धीरे-धीरे घटने लगी क्योंकि सरकार की नीतियां गेहूं और चावल को बढ़ावा दे रही थीं।

मोटे अनाजों की वापसी क्यों ज़रूरी?

  1. पोषण से भरपूर: इनमें आयरन, कैल्शियम, प्रोटीन और फाइबर अधिक होते हैं, जिससे ये बेहतर स्वास्थ्य विकल्प बनते हैं।
  2. कम पानी की आवश्यकता: मोटे अनाज सूखा-प्रभावित क्षेत्रों में भी आसानी से उगाए जा सकते हैं।
  3. ग्लूटेन-फ्री और डायबिटीज़ फ्रेंडली: मोटे अनाज ग्लूटेन-फ्री होते हैं और रक्त शर्करा को नियंत्रित रखने में मदद करते हैं।
  4. मिट्टी की उर्वरता बनाए रखते हैं: इनकी खेती से मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है और रासायनिक उर्वरकों की जरूरत कम होती है।
  5. जलवायु परिवर्तन के अनुकूल: गेहूं और धान के मुकाबले ये अधिक सहनशील होते हैं और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को झेल सकते हैं।

सरकार और समाज का बदलता नजरिया

  • हाल के वर्षों में सरकार ने मोटे अनाजों को फिर से लोकप्रिय बनाने के लिए कई कदम उठाए हैं।
  • संयुक्त राष्ट्र ने 2023 को ‘अंतर्राष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष’ (International Year of Millets) घोषित किया
  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मोटे अनाजों के उपयोग को बढ़ावा देने की अपील की है।
  • अब मोटे अनाज पोषाहार योजना, मिड-डे मील और सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) में भी शामिल किए जा रहे हैं।

मोटे अनाज हमारी परंपरा, स्वास्थ्य और कृषि के लिए अनमोल धरोहर हैं। हरित क्रांति ने भले ही इन्हें पीछे धकेल दिया था, लेकिन अब यह फिर से मुख्यधारा में लौट रहे हैं। जरूरत है कि हम अपने आहार में इन्हें फिर से शामिल करें और किसानों को इसके उत्पादन के लिए प्रोत्साहित करें।

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