BY: Yoganand shrivastva
जबलपुर, मध्यप्रदेश के बैतूल जिले के रहने वाले 86 वर्षीय मानकराम सूर्यवंशी को आखिरकार वो न्याय मिल गया जिसकी उम्मीद में उन्होंने अपनी जिंदगी के 42 साल अदालतों की चौखट पर बिताए। एक मामूली से 3,596 रुपये के गबन के आरोप में बर्खास्त किए गए इस बुजुर्ग शिक्षक को अब मध्यप्रदेश हाईकोर्ट से राहत मिली है।
1983 में शुरू हुई मुसीबत
मानकराम सूर्यवंशी की नियुक्ति 1972 में शासकीय स्कूल रतेड़ा, बैतूल में शिक्षक के तौर पर हुई थी। इसके साथ ही वह पोस्ट ऑफिस एजेंट का कार्य भी करते थे, जिसके लिए उन्हें कमीशन मिलता था। गांव में डाकघर दूर होने के कारण वह सप्ताह में एक बार ग्रामीणों से एकत्र किए पैसे पोस्ट ऑफिस में जमा करते थे।
शिकायत और एफआईआर का सिलसिला
1984 में किसान कन्हैया साहू ने 3,596 रुपए मानकराम को जमा करने के लिए सौंपे। दो दिन बाद जब कन्हैया ने पैसे की जरूरत पड़ने पर डाकघर से निकासी की कोशिश की, तो पता चला कि पैसे जमा नहीं हुए हैं। उन्होंने तुरंत थाने में गबन की शिकायत दर्ज करवा दी।
जबकि मानकराम ने हमेशा की तरह शनिवार को वह राशि जमा कर दी थी, लेकिन तब तक पुलिस मामला दर्ज कर चुकी थी। पुलिस ने उनके खिलाफ IPC की धारा 409 के तहत केस दर्ज कर लिया।
‘कोर्ट उठने तक’ की सजा और बर्खास्तगी
28 जनवरी 1993 को सेशन कोर्ट ने सुनवाई के बाद मानकराम को ‘कोर्ट उठने तक’ की सजा सुनाई। उन्होंने इसे ADJ कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन वहां भी उन्हें राहत नहीं मिली। इसके बाद 2000 में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
इधर, 1986 में एफआईआर दर्ज होने के बाद ही शिक्षा विभाग ने बिना किसी विभागीय जांच के मानकराम को नौकरी से बर्खास्त कर दिया। उनकी पेंशन, फंड और ग्रेच्युटी तक रोक दी गई। उस वक्त उनकी उम्र 44 वर्ष थी और उनके पास 15 साल का सेवाकाल था।
23 साल तक हाईकोर्ट में लंबित रहा मामला
साल 2000 में दाखिल की गई याचिका 2023 तक लंबित रही। आखिरकार एडवोकेट मोहन शर्मा ने फिर से इस मामले को गंभीरता से उठाया। सुनवाई के दौरान वकील ने तर्क दिया कि ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को बिना ठोस सबूत के दोषी करार दिया।
उन्होंने कहा कि केवल इस आधार पर कि राशि पासबुक और रजिस्टर में दर्ज नहीं की गई, किसी शिक्षक को गुनहगार नहीं ठहराया जा सकता, जबकि राशि बाद में जमा की गई थी। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि मानकराम की आपराधिक मंशा नहीं थी।
हाईकोर्ट ने किया दोषमुक्त
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति एम.एस. भट्टी ने सभी निचली अदालतों के फैसलों को खारिज करते हुए मानकराम सूर्यवंशी को दोषमुक्त करार दिया। इस फैसले के साथ ही मानकराम को 42 वर्षों की लंबी लड़ाई में कानूनी जीत मिली है।
अब शिक्षा विभाग के खिलाफ नई लड़ाई
एडवोकेट मोहन शर्मा ने जानकारी दी है कि अब मानकराम शिक्षा विभाग के खिलाफ याचिका दायर करेंगे। विभाग ने उन्हें न केवल नौकरी से निकाला, बल्कि उनके वित्तीय लाभ भी रोक दिए। अब हाईकोर्ट से दोषमुक्त होने के बाद वह पेंशन, फंड और ग्रेच्युटी के साथ मानसिक क्षतिपूर्ति (कंपनसेशन) की मांग करेंगे।
एक मामूली केस, एक जिंदगी दांव पर
मानकराम सूर्यवंशी की यह कहानी भारतीय न्याय व्यवस्था और सरकारी तंत्र की सुस्त प्रक्रिया और लापरवाही की एक दर्दनाक मिसाल है। एक ईमानदार शिक्षक को सिर्फ प्रक्रिया की चूक और समय से पहले की गई प्रशासनिक कार्रवाई की वजह से जिंदगी भर संघर्ष करना पड़ा। अब देखना यह है कि शिक्षा विभाग उन्हें समय रहते वो न्याय देता है, जिसका इंतज़ार उन्होंने चार दशक तक किया।