BY: Yoganand Shrivastva
एक ओर जहां पाकिस्तान खुद महंगाई, बेरोजगारी और कर्ज़ के गड्ढे में डूबा हुआ है, वहीं दूसरी ओर उसने अंतरराष्ट्रीय मंच से ऐसी घोषणा कर दी, जिसने सबका ध्यान खींचा। संयुक्त राष्ट्र में बोलते हुए पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार ने इजरायल पर युद्ध अपराधों का आरोप लगाते हुए फलस्तीन के लिए न सिर्फ पूरी तरह से खड़े रहने का दावा किया, बल्कि फलस्तीन को संयुक्त राष्ट्र की पूर्ण सदस्यता दिलाने की मांग भी जोर-शोर से रख दी। लेकिन बड़ा सवाल ये है—क्या पाकिस्तान की ये पहल मानवीय संवेदना से प्रेरित है? या फिर अंतरराष्ट्रीय राजनीति की कोई गहरी चाल?
‘गाजा, अब कानून की कब्रगाह बन चुका है’ — डार का तीखा हमला
डार ने सम्मेलन के मंच से बेहद सख्त शब्दों में कहा,
“गाजा में अब कोई मानवता बाकी नहीं बची। अस्पतालों, राहत शिविरों और शरणार्थी काफिलों पर हमले हो रहे हैं। 58,000 से अधिक फलस्तीनी, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी हैं, मारे जा चुके हैं। क्या यह युद्ध नहीं, नरसंहार नहीं?”
डार ने इजरायल पर अंतरराष्ट्रीय कानून और मानवाधिकारों की धज्जियां उड़ाने का आरोप लगाया और कहा कि यह पूरी दुनिया के लिए शर्म की बात होनी चाहिए।
पाकिस्तान सिर्फ बयान नहीं, असल मदद देगा?
सबसे चौंकाने वाला मोड़ तब आया जब इशाक डार ने मंच से घोषणा की कि पाकिस्तान सिर्फ निंदा या बयानबाजी में नहीं फंसा है, बल्कि वह वास्तविक सहयोग देने को भी तैयार है। उन्होंने कहा:
“हम फलस्तीनी प्रशासन के साथ मिलकर सार्वजनिक प्रशासन, स्वास्थ्य, शिक्षा और सेवा वितरण जैसे क्षेत्रों में तकनीकी सहायता देंगे।”
ये बयान तब आया है जब पाकिस्तान के अपने यहां लोग गेहूं, दवाइयों और बिजली के लिए संघर्ष कर रहे हैं। IMF की सख्त शर्तों और बढ़ते विदेशी कर्ज़ के बीच इस तरह की सहायता का वादा करना कुछ लोगों को रणनीतिक ‘डिप्लोमैटिक शोर’ लग रहा है।
इंसाफ में देरी या राजनीति में चाल?
डार ने अपने भाषण में कहा:
“इंसाफ में देरी नाइंसाफी से भी बदतर होती है। और जब इंसाफ पीढ़ियों तक न पहुंचे, तो वो सिर्फ एक देश नहीं, पूरे क्षेत्र को अस्थिर कर देता है।”
उन्होंने फलस्तीन को आत्मनिर्णय, स्वतंत्रता और अंतरराष्ट्रीय मान्यता दिलाने की अपील करते हुए संयुक्त राष्ट्र की पूर्ण सदस्यता को स्थायी शांति का पहला ठोस कदम बताया।
फलस्तीन को UN में पूर्ण सदस्यता मिल सकती है?
वर्तमान में, फलस्तीन को 2012 से गैर-सदस्य पर्यवेक्षक राज्य का दर्जा प्राप्त है। यदि फलस्तीन को पूर्ण सदस्य बनना है, तो इसे पहले सुरक्षा परिषद से सिफारिश मिलनी चाहिए, और फिर संयुक्त राष्ट्र महासभा में दो-तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पारित होना अनिवार्य होगा।
लेकिन इसमें एक बड़ी बाधा है—अमेरिका।
अतीत में अमेरिका ने सुरक्षा परिषद में कई बार फलस्तीन के खिलाफ वीटो का प्रयोग किया है, खासकर जब बात उसकी सदस्यता की आती है।
पाकिस्तान का इरादा क्या है?
राजनीतिक विश्लेषकों की राय बंटी हुई है:
- कुछ का कहना है कि पाकिस्तान इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंच पर उठाकर मुस्लिम दुनिया में अपनी साख मजबूत करना चाहता है।
- जबकि कुछ इसे घरेलू हालात से ध्यान भटकाने की एक सॉफ्ट पॉवर रणनीति मानते हैं।
- वहीं, एक वर्ग यह भी मानता है कि यह कोशिश पाकिस्तान को वैश्विक नेतृत्वकर्ता के रूप में पेश करने की शुरुआती कवायद हो सकती है—हालांकि उसकी आर्थिक स्थिति इसे मुश्किल बना सकती है।
इस पूरी घटना ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर फिर एक बार फलस्तीन-इजरायल विवाद को गर्म कर दिया है। पाकिस्तान का बयान संवेदनशीलता से भरा हो सकता है, लेकिन इसकी टाइमिंग, इसकी भाषा और इसमें शामिल वादे—सभी कुछ इस पर सस्पेंस पैदा करते हैं कि क्या ये मानवीय समर्थन है, या फिर कूटनीतिक चाल?