BY: Yoganand Shrivastva
पचमढ़ी प्रशिक्षण शिविर में अनुशासन की परीक्षा
मध्यप्रदेश के पचमढ़ी में बीजेपी का प्रशिक्षण वर्ग इन दिनों चर्चा में है, लेकिन वजह सकारात्मक नहीं, बल्कि विवादास्पद है। जहां केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह मंच से “वाणी पर संयम” की सीख दे रहे थे, वहीं राज्य सरकार में मंत्री विजय शाह खुद संयम खो बैठे।सवाल पर मंत्री जी का गुस्सा इस कदर फूटा कि उन्होंने रिपोर्टर का हाथ झटकते हुए कहा – “अब तुझे पाठ पढ़ाता हूं”।
‘संयम’ पर क्लास, लेकिन गुस्से में ‘पाठ’
प्रशिक्षण शिविर का उद्देश्य नेताओं को संयम, संवाद और शालीनता सिखाना था, लेकिन विजय शाह ने क्लास का असर उल्टा ही दिखाया। जैसे ही पत्रकार ने उनसे सवाल पूछा कि क्या आपने अमित शाह की संयम वाली नसीहत सुनी, विजय शाह तमतमा गए और माइक छीनते हुए बोले – “सुनी है… और अब तुझे पाठ पढ़ाता हूं!”
यह घटना तब और गंभीर हो गई जब मंत्री ने रिपोर्टर का हाथ भी झटक दिया। यह पूरे शिविर के संदेश के विपरीत था, जहां “राजनीतिक मर्यादा और विचारशील संवाद” की शिक्षा दी जा रही थी।
अमित शाह की चेतावनी, लेकिन असर नहीं?
प्रशिक्षण वर्ग के पहले ही दिन गृह मंत्री अमित शाह ने मंच से साफ संदेश दिया था – “गलती हो सकती है, लेकिन उसकी पुनरावृत्ति मत कीजिए। संयम रखें।” कैबिनेट मंत्री करण सिंह वर्मा ने भी इसकी पुष्टि की, लेकिन विजय शाह के व्यवहार से यह संदेश बेअसर दिखाई दिया।
विधायक बोले – संयम है जरूरी
भाजपा विधायक आशीष शर्मा का कहना था कि प्रशिक्षण शिविर जरूरी है ताकि हम खुद को एक बेहतर जनप्रतिनिधि के रूप में पेश कर सकें। उनका कहना था – “वाणी का संयम आवश्यक है, क्योंकि हमारे बयान लाखों लोग सुनते हैं। सवाल पूछने पर जवाब देना चाहिए, हाथ नहीं उठाना चाहिए।”
‘शिक्षा’ को विपक्ष समझ बैठे मंत्री?
बीजेपी नेता प्रहलाद पटेल और कैलाश विजयवर्गीय दोनों ने कहा कि विचारधारा के प्रति प्रतिबद्धता और अनुशासन जरूरी है। विधायक अर्चना चिटनिस ने कहा – “सुधार की कोई सीमा नहीं होती। यही कारण है कि भाजपा समय-समय पर अपने प्रतिनिधियों को प्रशिक्षण देती है।”
लेकिन, विजय शाह का बर्ताव इस विचारधारा से मेल नहीं खाता। ऐसा प्रतीत हुआ मानो वे ‘शिक्षा’ शब्द को किसी विरोधी की तरह देख रहे हों, जिसका मुकाबला ज़रूरी है।
अनुशासन – दिखावे की बात?
यह घटना इस सवाल को जन्म देती है कि क्या प्रशिक्षण सिर्फ दिखावे की औपचारिकता है? जब मंच से संयम की बात की जा रही हो और मैदान में माइक छीने जा रहे हों, तो असली सीख कहां रह जाती है?
विजय शाह जैसे वरिष्ठ नेता से संयम की उम्मीद थी, लेकिन उन्होंने अपने व्यवहार से प्रशिक्षण की पूरी मंशा पर सवाल खड़े कर दिए हैं।