नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश सरकार को एक आरोपी को 5 लाख रुपये का मुआवजा देना पड़ा है। इसकी वजह बनी आरोपी की रिहाई में हुई लापरवाही। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाई और मुआवजा देने का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा कि नागरिक की स्वतंत्रता सर्वोपरि है, उसकी अनदेखी किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
क्या है पूरा मामला?
उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जेल में बंद एक व्यक्ति को सुप्रीम कोर्ट ने 29 अप्रैल 2025 को जमानत दे दी थी। लेकिन इसके बावजूद उसे समय पर जेल से रिहा नहीं किया गया। करीब 28 दिनों तक वह बिना किसी कानूनी आधार के जेल में बंद रहा।
सुप्रीम कोर्ट ने क्यों जताई नाराजगी?
- सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता भारत के संविधान के तहत दिया गया एक बहुत महत्वपूर्ण अधिकार है।
- कोर्ट ने यह भी कहा कि एक मामूली गलती या प्रक्रिया में देरी के कारण किसी की 28 दिनों की आजादी छिन जाना बेहद गंभीर मामला है।
कब हुआ मुआवजा देने का आदेश?
25 जून को सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार के अधिकारियों को फटकार लगाते हुए 5 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया। साथ ही कोर्ट ने कहा कि इस आदेश का पूरी तरह पालन होना चाहिए और इसकी अनुपालन रिपोर्ट पेश की जाए।
सरकार ने क्या सफाई दी?
राज्य सरकार के वकील ने अदालत को बताया कि:
- 27 मई को निचली अदालत ने आरोपी की रिहाई का आदेश जारी किया था।
- हालांकि, आदेश में उत्तर प्रदेश धर्मांतरण निषेध अधिनियम, 2021 की धारा 5(1) से जुड़ी जरूरी जानकारी शामिल नहीं थी।
- इसी कारण जेल प्रशासन ने 28 मई को आदेश में सुधार के लिए याचिका दाखिल की थी।
- जब तक यह मामला स्पष्ट नहीं हुआ, आरोपी को रिहा नहीं किया गया।
आरोपी को आखिर कब मिली रिहाई?
लंबी प्रक्रिया के बाद आखिरकार आरोपी को 24 जून को गाजियाबाद जिला जेल से रिहा कर दिया गया। आरोपी के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में बताया कि मुआवजा भी मिल चुका है।
सुप्रीम कोर्ट ने दिए जांच के आदेश
कोर्ट ने गाजियाबाद के प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश को पूरे मामले की जांच करने के निर्देश दिए हैं। मुख्य फोकस इस बात पर रहेगा कि रिहाई में आखिर देरी क्यों हुई और कौन जिम्मेदार है।