बॉलीवुड में कई ऐसे अभिनेता और निर्देशक हुए हैं, जिन्होंने अपने अनोखे अंदाज़ से फिल्म इंडस्ट्री में एक अलग पहचान बनाई। उन्हीं में से एक थे फिरोज़ खान। फिरोज़ खान न सिर्फ एक स्टाइलिश अभिनेता थे, बल्कि एक शानदार निर्देशक भी माने जाते थे। लेकिन उनकी फिल्मों की एक खासियत थी, जो उन्हें बाकी फिल्ममेकर्स से अलग बनाती थी—उनकी अधिकतर फिल्मों में लीड हीरो की मौत हो जाती थी।
फिरोज़ खान: एक अलग सोच वाले निर्देशक
फिरोज़ खान अपने चार भाइयों में सबसे बड़े थे और फिल्म इंडस्ट्री में उनके कई भाई भी सक्रिय रहे। उनके छोटे भाई संजय खान को भी दर्शकों ने खूब पसंद किया। हालांकि, फिरोज़ खान की पहचान उनकी फिल्मों की स्टोरीलाइन और स्टाइलिश अंदाज़ के लिए थी।
उनकी फिल्मों में आमतौर पर एक पैटर्न देखने को मिलता था—फिल्म के अंत में नायक की मौत। यह उनकी फिल्मों की एक खास ‘यूएसपी’ थी, जिसे दर्शक धीरे-धीरे पहचानने लगे थे। चाहे फिल्म का हीरो कितना भी ताकतवर क्यों न हो, अंत में उसकी मौत लगभग तय होती थी।
स्टाइल के लिए दीवाने थे लोग
फिरोज़ खान सिर्फ एक डायरेक्टर नहीं, बल्कि ट्रेंडसेटर थे। उनके कपड़े, स्टाइल, हेयरकट और यहां तक कि उनकी चाल-ढाल भी युवा वर्ग में काफी लोकप्रिय थी। वेस्टर्न टच वाली उनकी फिल्मों में एक अलग तरह की भव्यता होती थी। लेकिन उस भव्यता के बीच एक कॉमन ट्रैजिक एंड जरूर होता था—हीरो का अंत।
इन फिल्मों में दिखा हीरो की मौत का ट्रेंड
फिरोज़ खान ने कई यादगार फिल्मों का निर्देशन किया, और इनमें से कई में लीड किरदार का अंत दुखद होता है। आइए, कुछ ऐसी फिल्मों पर नजर डालते हैं:
- कुर्बानी (1980)
इस फिल्म में फिरोज़ खान के साथ विनोद खन्ना और जीनत अमान नजर आए थे। फिल्म सुपरहिट रही, लेकिन क्लाइमैक्स में विनोद खन्ना का किरदार मारा जाता है। - दयावान (1988)
विनोद खन्ना इस फिल्म में भी मुख्य भूमिका में थे। फिल्म के अंत में उनका किरदार मारा जाता है, जो कहानी का एक अहम मोड़ बनता है। - जांबाज़ (1986)
अनिल कपूर और फिरोज़ खान के अभिनय से सजी इस फिल्म में भी अंत में नायक की मौत दिखाई जाती है। - यलगार (1992)
इस फिल्म में संजय दत्त और फिरोज़ खान ने मुख्य भूमिकाएं निभाईं। फिल्म का अंत फिर उसी ट्रैजेडी के साथ होता है—हीरो की मौत।
दमदार अदाकारी और निर्देशन की छाप
फिरोज़ खान ने अपने करियर में करीब 60 से ज्यादा फिल्मों में अभिनय किया और कई बेहतरीन फिल्मों का निर्देशन भी किया। उनकी कुछ यादगार फिल्में हैं:
आरजू, मेला, सफर, अपराध, काला सोना, धर्मात्मा, नागिन, कुर्बानी, जांबाज़ और वेलकम।
2009 में अप्रैल महीने में फिरोज़ खान ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया, लेकिन उनके काम को आज भी याद किया जाता है।
करियर की शुरुआत
फिरोज़ खान ने 1960 में फिल्म ‘दीदी’ से अपने करियर की शुरुआत की थी, जिसमें उन्होंने एक छोटा सा रोल निभाया। बाद में ‘हम सब चोर हैं’, ‘बड़े सरकार’ जैसी फिल्मों में सेकेंड लीड में नजर आए।
बतौर लीड एक्टर उनकी पहली फिल्म थी ‘घर की लाज’, जिसमें उनके अपोजिट निरूपा रॉय थीं। ‘ऊंचे लोग’ उनकी पहली बड़ी हिट फिल्म मानी जाती है।
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