महाकुंभ 2025: सनातन आस्था का महासंगम
by: Vijay Nandan
महाकुंभ 2025: भारत के सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र धार्मिक आयोजनों में से एक है महाकुंभ ये हर 12 वर्षों में भारत के चार स्थानों प्रयागराज (इलाहाबाद), हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में आयोजित होता है। महाकुंभ का मुख्य आकर्षण “अमृत स्नान” है, जिसे “शाही स्नान” भी कहा जाता है। यह स्नान धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। आइए विस्तार से समझते हैं कि महाकुंभ में अमृत स्नान क्या होता है और इसका महत्व क्या है।

अमृत स्नान का पौराणिक महत्व
अमृत स्नान या शाही स्नान की उत्पत्ति समुद्र मंथन की पौराणिक कथा से जुड़ी हुई है। मान्यता है कि देवताओं और दानवों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था, इस मंथन में लक्ष्मी, एरावत, हीरा मोती, रत्न, सोना-चांदी के साथ-साथ अमृत कलश भी निकला था। इस कलश को लेकर देवताओं और असुरों में बड़ा संघर्ष हुआ। यह संघर्ष 12 दिनों और 12 रातों (जो धरती के 12 वर्षों के बराबर है) तक चला। इस दौरान भगवान विष्णु ने अमृत कलश की रक्षा की और उसे चार स्थानों, प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक पर रखा। यही कारण है कि इन स्थानों पर महाकुंभ का आयोजन किया जाता है।
अमृत स्नान का महत्व इस आस्था औल विश्वास पर आधारित है कि इन स्थानों पर पवित्र नदियों में स्नान करने से आत्मा शुद्ध होती है, पापों का नाश होता है, और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

अमृत स्नान का धार्मिक महत्व
महाकुंभ में अमृत स्नान का आयोजन विशेष तिथियों पर होता है, जिन्हें “शाही स्नान की तिथियां” कहा जाता है। इन तिथियों का निर्धारण ज्योतिषीय गणनाओं के आधार पर किया जाता है। यह माना जाता है कि इन शुभ तिथियों पर पवित्र नदियों में स्नान करने से व्यक्ति के पाप धुल जाते हैं और उसे पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति मिलती है।
शाही स्नान के दौरान साधु-संतों और अखाड़ों की शोभायात्रा भी निकाली जाती है। ये शोभायात्रा धूमधाम बड़े तामझाम के साथ अत्यंत भव्य होती है, जिसमें साधु, नागा साधु, और अन्य संत अपने विशिष्ट परिधानों और प्रतीकों के साथ भाग लेते हैं। यह आयोजन महाकुंभ का मुख्य आकर्षण का केंद्र होता है।
अमृत स्नान की प्रक्रिया
तिथि का चयन: अमृत स्नान के लिए शुभ तिथियों का चयन किया जाता है। यह तिथियां ग्रहों-नक्षत्रों की स्थिति और ज्योतिषीय गणनाओं के आधार पर तय की जाती हैं।
स्नान का महत्व: भक्तजन इन शुभ तिथियों और समय पर सूर्योदय से पहले ही पवित्र नदियों में स्नान करते हैं। यह स्नान आत्मा की शुद्धि और ईश्वर की कृपा प्राप्ति और मोक्ष के प्रतीक माने जाते हैं।
आध्यात्मिक साधना: स्नान के बाद भक्त मंदिरों में पूजा-अर्चना करते हैं, भजन-कीर्तन में भाग लेते हैं और संतों का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
अमृत स्नान का वैज्ञानिक दृष्टिकोण
अमृत स्नान का वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी उल्लेखनीय है। यह आयोजन सर्दियों और वसंत ऋतु के बीच होता है, जब नदियों का पानी स्वच्छ और ठंडा होता है। माना जाता है कि इस समय पानी में कई औषधीय गुण होते हैं, जो शरीर और मन को शुद्ध करने में सहायक होते हैं।
सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व
महाकुंभ में अमृत स्नान न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यह आयोजन लोगों को एकता, सहयोग और सामूहिकता का संदेश देता है। देश-विदेश से करोड़ों लोग इस आयोजन में भाग लेते हैं, जिससे भारतीय संस्कृति और परंपरा का प्रचार-प्रसार होता है। महाकुंभ में अमृत स्नान का महत्व केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक दृष्टि से भी गहन है। यह स्नान आत्मा की शुद्धि, पापों के नाश और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रदान करता है। यह आयोजन भारतीय संस्कृति की महानता और विविधता का प्रतीक है, जो मानवता को शांति, समर्पण और आस्था का संदेश देता है।