बरेली मंडल के जनपद बदायूँ में लगने वाला मिनी कुंभ के नाम से प्रसिद्ध मेला ककोड़ा इस बार भी चर्चा में है। परंपरागत रूप से गंगा मैया के तट पर लगने वाले इस मेले की तैयारियां जोरों पर हैं। जिला प्रशासन और पंचायत विभाग ने दावा किया है कि 29 अक्टूबर को झंडी पूजन के साथ मेला विधिवत रूप से प्रारंभ हो जाएगा।
लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। हमारी टीम ने जब मौके पर जाकर स्थिति का जायज़ा लिया तो पता चला कि इस बार मेला ऐसे स्थान पर लगाया जा रहा है जहां बहती गंगा नहीं है, बल्कि रुके हुए जल पर मेला आयोजित किया जा रहा है। यही नहीं, महंत बाबा नन्हे दास का कहना है कि पिछले वर्ष भी इसी स्थान पर मेला लगाया गया था, जिससे आस्था से जुड़े लोगों में असंतोष देखने को मिला था।
बाबा नन्हे दास ने बताया कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन यहां अपार भीड़ उमड़ती है। ऐसे में यदि पानी का स्तर बढ़ा या बहाव तेज हुआ, तो श्रद्धालुओं के लिए स्नान करना बेहद मुश्किल हो जाएगा। स्थानीय लोगों का कहना है कि सत्ता पक्ष के नेता और प्रशासन इस ओर ध्यान नहीं दे रहे, जिससे गंगा स्नान करने आने वाले लाखों श्रद्धालुओं की सुरक्षा पर प्रश्नचिह्न लग गया है।
मेला ककोड़ा कादर चौक से लगभग 7 किलोमीटर आगे गंगा किनारे लगाया जाता है। फिलहाल जिला पंचायत द्वारा टेंट, तंबू और सुरक्षा व्यवस्था की तैयारी की जा रही है। मेले के क्षेत्र में अस्थायी कोतवाली भी स्थापित कर दी गई है ताकि किसी भी आपात स्थिति में त्वरित कार्रवाई की जा सके।
हालांकि स्थानीय सूत्रों के अनुसार, पंचायत की धीमी कार्यप्रणाली के कारण संभावना जताई जा रही है कि कार्तिक माह की पूर्णिमा तक सभी तैयारियां पूरी नहीं हो सकेंगी।
हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा पर यहां ‘रेट की चादर’ (रेतीले मैदान) पर तंबुओं का शहर बसता है, जहां लाखों श्रद्धालु गंगा मैया का आशीर्वाद लेने आते हैं। लेकिन इस बार की परिस्थितियां यह सवाल खड़ा कर रही हैं कि क्या गंगा मैया की आस्था से खिलवाड़ करते हुए मेला परंपराओं के अनुरूप संपन्न हो पाएगा?





