पाकिस्तान, जो 14 अगस्त 1947 को भारत के विभाजन के फलस्वरूप एक स्वतंत्र राष्ट्र बना, आज विश्व के उन देशों में शामिल है जो आर्थिक संकट और गरीबी से जूझ रहे हैं। स्वतंत्रता के समय पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में संभावनाएं थीं, लेकिन आज यह देश भारी कर्ज, मुद्रास्फीति, बेरोजगारी और सामाजिक असमानता से ग्रस्त है। इस लेख में हम पाकिस्तान की गरीबी के कारणों, स्वतंत्रता के समय की स्थिति और वर्तमान परिदृश्य की तुलना, और इसके पीछे के ऐतिहासिक, सामाजिक, और राजनीतिक कारकों का विस्तृत विश्लेषण करेंगे। यह लेख ध्रुव राठी और नितीश राजपूत जैसे विश्लेषकों की शैली में तथ्यों, आंकड़ों और कहानियों के साथ प्रस्तुत किया गया है।
स्वतंत्रता के समय पाकिस्तान की स्थिति (1947)
1947 में जब पाकिस्तान ने ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता प्राप्त की, तो यह दो हिस्सों में था: पश्चिमी पाकिस्तान (वर्तमान पाकिस्तान) और पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश)। उस समय की स्थिति को समझने के लिए कुछ प्रमुख बिंदुओं पर नजर डालते हैं:
- आर्थिक आधार:
- स्वतंत्रता के समय पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर आधारित थी। पंजाब और सिंध जैसे क्षेत्र उपजाऊ थे, और सिंधु नदी की सहायक नदियों ने खेती को समृद्ध बनाया।
- औद्योगिक आधार बहुत कमजोर था। भारत के विभाजन के दौरान औद्योगिक केंद्र जैसे कोलकाता और मुंबई भारत के हिस्से में गए, जबकि पाकिस्तान को ज्यादातर कच्चा माल उत्पादन वाले क्षेत्र मिले।
- विभाजन के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच संपत्ति का बंटवारा हुआ, लेकिन पाकिस्तान को अपनी हिस्सेदारी पूरी तरह प्राप्त करने में कठिनाइयां हुईं।
- जनसंख्या और सामाजिक संरचना:
- 1947 में पाकिस्तान की जनसंख्या लगभग 3 करोड़ थी। विभाजन के बाद हुए बड़े पैमाने पर जनसंख्या स्थानांतरण (लगभग 1.45 करोड़ लोग) ने सामाजिक और आर्थिक अस्थिरता पैदा की।
- हिंदू और सिख समुदाय के बड़े पैमाने पर भारत की ओर पलायन और भारत से मुस्लिम समुदाय का पाकिस्तान आना, दोनों ने सामाजिक तनाव और आर्थिक बोझ बढ़ाया।
- राजनीतिक और प्रशासनिक चुनौतियां:
- पाकिस्तान को एक नया देश बनाना था, जिसमें प्रशासनिक ढांचा, कानून व्यवस्था और बुनियादी सुविधाएं स्थापित करना शामिल था।
- ब्रिटिश भारत की सेना, नौसेना और सिविल सेवाओं का बंटवारा हुआ, लेकिन पाकिस्तान को अनुभवी प्रशासकों और तकनीकी विशेषज्ञों की कमी का सामना करना पड़ा।
- मुस्लिम लीग, जिसने पाकिस्तान के निर्माण में अहम भूमिका निभाई, के पास देश चलाने का स्पष्ट रोडमैप नहीं था।
- आशावाद और संभावनाएं:
- स्वतंत्रता के समय पाकिस्तान को अपनी भौगोलिक स्थिति (मध्य एशिया, दक्षिण एशिया और मध्य पूर्व के बीच) और प्राकृतिक संसाधनों (उपजाऊ भूमि, खनिज) के कारण आर्थिक विकास की उम्मीद थी।
- कराची, उस समय की राजधानी, एक महत्वपूर्ण बंदरगाह थी और व्यापारिक केंद्र बनने की क्षमता रखती थी।
वर्तमान में पाकिस्तान की गरीबी: आंकड़े और तथ्य
2025 तक, पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति चिंताजनक है। विश्व बैंक और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों के आंकड़ों के आधार पर निम्नलिखित बिंदु सामने आते हैं:
- गरीबी की स्थिति:
- विश्व बैंक के अनुसार, पाकिस्तान की लगभग 24% जनसंख्या (लगभग 5.8 करोड़ लोग) अंतरराष्ट्रीय गरीबी रेखा ($2.15/दिन) से नीचे रहती है।
- बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) के अनुसार, शिक्षा, स्वास्थ्य और जीवन स्तर के अभाव के कारण 40% से अधिक जनसंख्या गरीबी से प्रभावित है।
- ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी शहरी क्षेत्रों की तुलना में अधिक गंभीर है, जहां बुनियादी सुविधाएं जैसे साफ पानी और बिजली तक पहुंच सीमित है।
- आर्थिक संकट:
- 2023 में पाकिस्तान की जीडीपी वृद्धि दर केवल 0.3% थी, और 2024-25 में यह 2-3% के बीच रहने की उम्मीद है, जो जनसंख्या वृद्धि दर (2.1%) से कम है।
- देश का विदेशी कर्ज 2024 तक $130 बिलियन (लगभग 36 लाख करोड़ PKR) से अधिक हो चुका है।
- मुद्रास्फीति की दर 2023 में 30% के आसपास थी, जिसके कारण खाद्य पदार्थों और ईंधन की कीमतें आसमान छू रही हैं।
- बेरोजगारी और असमानता:
- बेरोजगारी दर 8-10% के बीच है, लेकिन युवा बेरोजगारी (15-24 वर्ष) 15% से अधिक है।
- आय असमानता बढ़ रही है, जहां शीर्ष 10% आबादी देश की 40% से अधिक संपत्ति नियंत्रित करती है।
- सामाजिक संकेतक:
- साक्षरता दर 60% के आसपास है, और महिलाओं में यह और भी कम (46%) है।
- यूनिसेफ की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, 4 करोड़ बच्चे अस्वच्छ पानी और खराब स्वच्छता की स्थिति में रह रहे हैं।
- कुपोषण एक गंभीर समस्या है, जहां 40% बच्चे स्टंटिंग (बौनापन) से पीड़ित हैं।
गरीबी के कारण: ऐतिहासिक और समकालीन कारक
पाकिस्तान की गरीबी के पीछे कई ऐतिहासिक, राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक कारक जिम्मेदार हैं। इन्हें विस्तार से समझते हैं:
1. ऐतिहासिक कारक
- विभाजन की विरासत: विभाजन के दौरान हुए नरसंहार, जनसंख्या स्थानांतरण और संसाधनों के असमान बंटवारे ने पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को शुरुआती झटका दिया। औद्योगिक केंद्रों की कमी और प्रशासनिक अनुभव की कमी ने विकास को धीमा किया।
- 1971 का युद्ध और बांग्लादेश का अलगाव: पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) के अलग होने से पाकिस्तान ने अपनी आबादी का 50% और आर्थिक संसाधनों का एक बड़ा हिस्सा खो दिया। यह देश के लिए एक बड़ा आर्थिक और मनोवैज्ञानिक झटका था।
- शीत युद्ध और भू-राजनीति: 1980 के दशक में अफगान युद्ध के दौरान पाकिस्तान अमेरिका का सहयोगी बना, जिससे उसे अरबों डॉलर की सहायता मिली। लेकिन यह सहायता दीर्घकालिक विकास के बजाय सैन्य और आतंकवाद विरोधी गतिविधियों पर खर्च हुई।
2. राजनीतिक अस्थिरता
- सैन्य शासन: पाकिस्तान के इतिहास में कई बार सैन्य तख्तापलट हुए (आयूब खान, याह्या खान, जिया-उल-हक, परवेज मुशर्रफ)। इन शासनों ने लोकतांत्रिक संस्थानों को कमजोर किया और आर्थिक नीतियों में निरंतरता की कमी रही।
- भ्रष्टाचार: ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के अनुसार, पाकिस्तान भ्रष्टाचार सूचकांक में 180 देशों में 140वें स्थान पर है। राजनेताओं और नौकरशाहों द्वारा संसाधनों का दुरुपयोग गरीबी को बढ़ाने का प्रमुख कारण है।
- नीतिगत असफलताएं: लगातार बदलती सरकारों और नीतियों ने दीर्घकालिक आर्थिक योजनाओं को लागू करना मुश्किल बना दिया।
3. आर्थिक नीतियों की कमियां
- कर्ज पर निर्भरता: पाकिस्तान ने 1950 के दशक से ही आईएमएफ, विश्व बैंक और अन्य देशों (चीन, सऊदी अरब) से भारी कर्ज लिया। 2023 में आईएमएफ से बेलआउट पैकेज लेने के लिए कठोर शर्तें (ईंधन और बिजली की कीमतों में वृद्धि) स्वीकार की गईं, जिसने आम जनता पर बोझ बढ़ाया।
- कम कर संग्रह: पाकिस्तान का टैक्स-टू-जीडीपी अनुपात केवल 10% है, जो दक्षिण एशिया में सबसे कम है। कुल करदाताओं में से 80% व्यक्तिगत आयकर के बजाय अप्रत्यक्ष कर (जैसे जीएसटी) से आता है, जो गरीबों पर अधिक बोझ डालता है।
- औद्योगिक पिछड़ापन: कपड़ा उद्योग, जो पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था का आधार है, ऊर्जा संकट और पुरानी तकनीक के कारण प्रतिस्पर्धा में पिछड़ रहा है।
4. सामाजिक और सांस्कृतिक कारक
- शिक्षा और स्वास्थ्य में कमी: कम साक्षरता दर और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी ने मानव पूंजी के विकास को रोका। केवल 2% जीडीपी शिक्षा पर और 1% स्वास्थ्य पर खर्च होती है।
- जनसंख्या वृद्धि: 1947 में 3 करोड़ की आबादी 2025 तक 24 करोड़ से अधिक हो चुकी है। उच्च प्रजनन दर (3.6 बच्चे प्रति महिला) और परिवार नियोजन की कमी ने संसाधनों पर दबाव बढ़ाया।
- लैंगिक असमानता: महिलाओं की कार्यबल भागीदारी केवल 22% है, जो आर्थिक विकास को सीमित करता है।
5. बाहरी कारक
- आतंकवाद और अस्थिरता: 2001 के बाद अफगानिस्तान में युद्ध और पाकिस्तान में आतंकवादी गतिविधियों ने निवेश को हतोत्साहित किया। 2008 के मुंबई हमले जैसे घटनाओं ने भारत-पाकिस्तान संबंधों को खराब किया, जिससे व्यापार और क्षेत्रीय सहयोग प्रभावित हुआ।
- प्राकृतिक आपदाएं: 2010 और 2022 की बाढ़ ने लाखों लोगों को बेघर किया और कृषि को भारी नुकसान पहुंचाया।
- वैश्विक आर्थिक दबाव: कोविड-19 महामारी और यूक्रेन-रूस युद्ध ने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को प्रभावित किया, जिससे पाकिस्तान जैसे आयात-निर्भर देशों में मुद्रास्फीति बढ़ी।

स्वतंत्रता के समय और अब की तुलना
पहलू | 1947 (स्वतंत्रता के समय) | 2025 (वर्तमान) |
---|---|---|
जनसंख्या | ~3 करोड़ | ~24.1 करोड़ |
जीडीपी (प्रति व्यक्ति) | ~$50 (आज के मूल्य में समायोजित) | ~$1,500 |
आर्थिक आधार | कृषि-प्रधान, सीमित उद्योग | कृषि, कपड़ा, और सेवा क्षेत्र; कर्ज पर निर्भर |
साक्षरता दर | ~15% | ~60% |
प्रमुख चुनौतियां | विभाजन, जनसंख्या स्थानांतरण, प्रशासनिक ढांचा | कर्ज, मुद्रास्फीति, बेरोजगारी, आतंकवाद |
वैश्विक स्थिति | नया राष्ट्र, भू-राजनीतिक महत्व | आर्थिक संकट, आईएमएफ पर निर्भर, क्षेत्रीय अस्थिरता |
विश्लेषण:
- आर्थिक विकास: स्वतंत्रता के समय पाकिस्तान की प्रति व्यक्ति आय भारत के बराबर थी। 1960 के दशक में आयूब खान के शासन में कुछ औद्योगिक विकास हुआ, लेकिन बाद की नीतियों ने इसे बनाए नहीं रखा। भारत ने 1991 के उदारीकरण के बाद तेजी से प्रगति की, जबकि पाकिस्तान कर्ज और सैन्य खर्च में उलझा रहा।
- सामाजिक प्रगति: साक्षरता और स्वास्थ्य में सुधार हुआ, लेकिन यह भारत (75% साक्षरता) और अन्य पड़ोसियों से पीछे है।
- राजनीतिक स्थिरता: 1947 में पाकिस्तान के पास एक नई शुरुआत का अवसर था, लेकिन बार-बार सैन्य हस्तक्षेप और भ्रष्टाचार ने दीर्घकालिक विकास को रोका।
ध्रुव राठी और नितीश राजपूत की शैली में विश्लेषण
ध्रुव राठी और नितीश राजपूत जैसे विश्लेषक तथ्यों को कहानी के रूप में पेश करते हैं, जिसमें ऐतिहासिक घटनाएं, आंकड़े और सामाजिक प्रभाव शामिल होते हैं। आइए, इसे उनके अंदाज में देखें:
कहानी: “पाकिस्तान का सपना और हकीकत”
1947 में, जब जिन्ना ने पाकिस्तान का सपना देखा, तो यह एक ऐसा देश था जहां मुस्लिम समुदाय समृद्धि और स्वतंत्रता के साथ रह सके। कराची के बंदरगाह से व्यापार की उम्मीद थी, पंजाब की उपजाऊ भूमि से खाद्य सुरक्षा थी। लेकिन जल्द ही यह सपना टूटने लगा।
- पहला झटका: विभाजन की हिंसा और संसाधनों की कमी ने शुरुआती वर्षों को अस्थिर किया। 1958 में पहला सैन्य तख्तापलट हुआ, और लोकतंत्र कमजोर पड़ने लगा।
- 1971 का घाव: पूर्वी पाकिस्तान का अलग होना न केवल आर्थिक नुकसान था, बल्कि यह पाकिस्तान की एकता के लिए बड़ा झटका था।
- 1980 का जाल: अफगान युद्ध में अमेरिकी सहायता ने पाकिस्तान को अरबों डॉलर दिए, लेकिन यह पैसा विकास के बजाय हथियारों और जिहादी समूहों पर खर्च हुआ। नतीजा? आतंकवाद और अस्थिरता।
- 2020 का संकट: कोविड-19 और 2022 की बाढ़ ने अर्थव्यवस्था को और कमजोर किया। आज, एक आम पाकिस्तानी के लिए रोटी, बिजली और शिक्षा तक पहुंच एक चुनौती है।
आंकड़ों की कहानी:
- 1947: पाकिस्तान की जीडीपी भारत की तुलना में समान थी।
- 1980: प्रति व्यक्ति आय में भारत और पाकिस्तान बराबर थे (~$300)।
- 2025: भारत की प्रति व्यक्ति आय ~$2,800, जबकि पाकिस्तान की ~$1,500।
सवाल:
- अगर पाकिस्तान ने शिक्षा और उद्योग पर ध्यान दिया होता, तो क्या आज वह भारत या दक्षिण कोरिया की तरह उभर सकता था?
- क्या सैन्य शासन और भ्रष्टाचार ने पाकिस्तान को गरीबी के चक्र में धकेल दिया?
समाधान और भविष्य की राह
पाकिस्तान की गरीबी को कम करने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:
- आर्थिक सुधार:
- कर आधार को बढ़ाना और अप्रत्यक्ष करों पर निर्भरता कम करना।
- कपड़ा और आईटी जैसे क्षेत्रों में निवेश को प्रोत्साहित करना।
- कर्ज के बोझ को कम करने के लिए दीर्घकालिक योजना बनाना।
- शिक्षा और स्वास्थ्य:
- शिक्षा पर जीडीपी का कम से कम 4% और स्वास्थ्य पर 3% खर्च करना।
- महिलाओं की शिक्षा और कार्यबल भागीदारी को बढ़ावा देना।
- राजनीतिक स्थिरता:
- लोकतांत्रिक संस्थानों को मजबूत करना और सैन्य हस्तक्षेप को रोकना।
- भ्रष्टाचार पर सख्त कार्रवाई और पारदर्शिता बढ़ाना।
- क्षेत्रीय सहयोग:
- भारत और अन्य पड़ोसियों के साथ व्यापार और कनेक्टिविटी बढ़ाना।
- आतंकवाद पर नियंत्रण और क्षेत्रीय शांति को प्राथमिकता देना।
- जनसंख्या नियंत्रण:
- परिवार नियोजन कार्यक्रमों को प्रभावी बनाना और प्रजनन दर को कम करना।
निष्कर्ष
पाकिस्तान की गरीबी की कहानी केवल आंकड़ों की नहीं, बल्कि नीतिगत असफलताओं, ऐतिहासिक घावों और सामाजिक चुनौतियों की है। स्वतंत्रता के समय जो देश एक नई शुरुआत की उम्मीद में था, वह आज कर्ज, अस्थिरता और गरीबी के चक्र में फंसा है। लेकिन उम्मीद अभी बाकी है। अगर पाकिस्तान अपनी नीतियों को सुधारता है, शिक्षा और उद्योग पर ध्यान देता है, और क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देता है, तो वह न केवल गरीबी से बाहर निकल सकता है, बल्कि दक्षिण एशिया में एक मजबूत अर्थव्यवस्था बन सकता है।
आईपीएल पैसे कैसे कमाता है? टीवी राइट्स, स्पॉन्सरशिप और ब्रांड डील्स की पूरी जानकारी