BY: Yoganand Shrivastava
अब बिना चीरफाड़ कैंसर की पहचान संभव
कैंसर से जुड़ी एक बड़ी उपलब्धि सामने आई है। एम्स दिल्ली के वैज्ञानिकों ने एक नई, गैर-आक्रामक जांच तकनीक विकसित की है, जो शरीर में घूम रही कैंसर कोशिकाओं की पहचान कर सकती है। शुरुआत में यह तकनीक स्तन कैंसर के शुरुआती चरणों में पहचान के लिए उपयोगी साबित हो रही है।
कैसे काम करती है यह तकनीक?
इस तकनीक को एम्स के बायोफिजिक्स और मेडिकल ऑन्कोलॉजी विभाग ने मिलकर विकसित किया है। शोध दल का नेतृत्व प्रो. सरोज कुमार, डॉ. पीयूष रंजन और डॉ. अभय मिश्रा ने किया, जिसमें डॉ. अतुल बत्रा का भी सहयोग रहा।
इसमें मरीज के रक्त प्लाज्मा में मौजूद सूक्ष्म कणों – जिन्हें स्मॉल एक्स्ट्रासेल्यूलर वेसीकल्स (sEVs) कहा जाता है – का विश्लेषण किया गया।
इन कणों में मौजूद लिपिड्स की संरचना को इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रोस्कोपी के माध्यम से जांचा गया। यह तकनीक किसी प्रकार की सर्जरी या चीरफाड़ के बिना भी शरीर में सक्रिय कैंसर कोशिकाओं की जानकारी दे सकती है।
शोध में 104 प्रतिभागी शामिल
- इस अध्ययन में 74 स्तन कैंसर मरीज और 30 स्वस्थ महिलाएं शामिल थीं।
- एफटीआईआर (FTIR) स्पेक्ट्रोस्कोपी से दोनों समूहों के रक्त प्लाज्मा के स्मॉल एक्स्ट्रासेल्यूलर वेसीकल्स की जाँच की गई।
- टीईएम, एनटीए और वेस्टर्न ब्लॉटिंग जैसी तकनीकों से इन वेसीकल्स के आकार और प्रोटीन मार्कर्स (जैसे TSG101, CD9, CD81, CD63) की पुष्टि की गई।
- परिणामस्वरूप, लिपिड पैटर्न में एक स्पष्ट अंतर देखा गया, जिससे कैंसरग्रस्त और स्वस्थ व्यक्तियों के बीच पहचान आसान हो गई।
क्यों है यह तकनीक महत्वपूर्ण?
- यह तकनीक वर्तमान जांच विधियों की तुलना में कम खर्चीली, ज्यादा सटीक और प्रारंभिक पहचान में सहायक है।
- शुरुआती स्टेज में कैंसर की पहचान होने से मरीज का इलाज अधिक प्रभावी हो सकता है और जीवन दर बढ़ाई जा सकती है।
- यह उन मामलों में भी उपयोगी हो सकती है जहां मरीज इलाज के बाद भी दोबारा कैंसर के जोखिम में हो।
स्तन कैंसर की भयावह स्थिति
भारत में हर साल करीब दो लाख स्तन कैंसर के नए मामले सामने आते हैं।
इनमें से अधिकतर महिलाएं एडवांस स्टेज में ही डॉक्टरों तक पहुंच पाती हैं, जिससे उपचार की संभावना सीमित हो जाती है।
इस नई तकनीक से रोग की समय रहते पहचान और सटीक इलाज की दिशा में नया रास्ता खुल सकता है।
एम्स की यह खोज कैंसर निदान के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी कदम है।
शुरुआती और गैर-आक्रामक जांच के जरिए कैंसर की रोकथाम और उपचार पहले से अधिक कारगर बन सकता है। आने वाले समय में यह तकनीक अन्य प्रकार के कैंसर के लिए भी उपयोगी साबित हो सकती है।